भारत में हर चीज को मुगलों, और उर्दू की देन बताया जाता है। इसी तरह अब महाभारत के संवादों को भी राही मासूम रजा की देन बताया जाता है। इसी क्रम में उर्दू वेबसाइट रेख़्ता ने तो यहाँ तक लिख दिया कि राही मासूम रजा ने पिताश्री और मामाश्री जैसे शब्द गढ़े, जो उन्होंने उर्दू से अपनाया था। उदाहरण दिया गया कि उर्दू में अब्बाजान और चाचाजान जैसे शब्दों से प्रेरणा लेकर महाभारत के ये संवाद लिखे गए। क्या आप पंडित नरेंद्र शर्मा को जानते हैं?
रेख़्ता का ये वायरल ट्वीट मार्च 15, 2016 का है। ये अब इसीलिए वायरल हो रहा है क्योंकि अब लोगों को उर्दू वेबसाइट का प्रोपेगंडा समझ में आ रहा है और सच्चाई भी धीरे-धीरे बाहर आ रही है। सबसे पहली बात तो ये कि बीआर चोपड़ा की महाभारत से पहले ही रामानंद सागर की रामायण बन चुकी थी और इसका प्रसारण भी पूरा हो चुका था। ऐसे में ये कहना कि राही मासूम रजा ने ये शब्द ईजाद कर दिए, समझ से परे है। महान लेखक प्रेमचंद तक ने इन शब्दों का प्रयोग किया है।
पिछले दिनों ‘दैनिक जागरण’ में लिखे अपने लेख में वरिष्ठ लेखक अनंत विजय ने ध्यान दिलाया था कि ये बात एकदम से दब गई है कि महाभारत के संवादों को लिखने में राही मासूम रजा के साथ-साथ नरेंद्र शर्मा का भी नाम है, जिन्हें आज लोग भूल गए हैं। पंडित नरेंद्र शर्मा ने क़दम-क़दम पर राही मासूम रजा की महाभारत के संवाद लिखने में मदद की थी। चाहे पटकथा हो या संवाद, दोनों ही लेखकों की भूमिका अहम थी।
WRONG
— True Indology (@TIinExile) May 4, 2020
Rahi Masoom Raza did NOT coin the word “Pita Shri”.
It was already used by Premchand and other Hindi poets EVEN BEFORE Masoom Raza was born (cf. Roothi Rani)
At this rate, they will soon claim that they first brought water to India from Arabia pic.twitter.com/ydvbMVWaPi
अगर आप रामायण देखेंगे तो उसमें मेघनाद अपने पिता रावण को ‘पिताश्री’ कह कर सम्बोधित करता है, तो क्या राही मासूम रजा ने इन शब्दों को ईजाद किया, ऐसा उर्दू के पैरोकार कैसे कह सकते हैं? रामानंद सागर ने रामायण के संवाद ख़ुद लिखे थे, ऐसे में इन शब्दों को गढ़ना तो नहीं लेकिन लोकप्रिय बनाने का श्रेय उन्हें क्यों नहीं मिलना चाहिए? पंडित नरेंद्र शर्मा वो व्यक्ति हैं, जिन्होंने ‘द्रोपदी’ नामक काव्य पहले ही लिख रखा था, ऐसे में महाभारत को लेकर उनका ज्ञान भी प्रभावी था।
ख़ुद राही मासूम रजा कहते थे कि वो महाभारत की भूल-भुलैया वाली गलियों में पंडित जी की ऊँगली पकड़ कर आगे बढ़ते थे। राही जो भी लिखा करते थे, उसे नरेंद्र शर्मा की सहमति के बाद ही आगे भेजा जाता था। बीआर चोपड़ा के घनिष्ठ मित्र शर्मा महाभारत के हर पहलू को लेकर अपनी राय देते थे। उनकी लिखी “शंखनाद ने कर दिया, समारोह का अंत, अंत यही ले जाएगा, कुरुक्षेत्र पर्यन्त” ही उनकी अंतिम रचना है।
यूँ तो नरेंद्र शर्मा संस्कृतनिष्ठ थे और हिंदी में लिखते थे लेकिन उनकी उर्दू की समझ भी अच्छी थी। दरअसल, हिंदी और उर्दू को मिला कर के उसे हिंदुस्तानी कह कर ‘आज की भाषा’ बताते हुए प्रचारित किया जाता है लेकिन जब-जब शुद्ध हिंदी में संवाद लिखे गए, उन्हें जनता ने पसंद किया है। लेकिन, उर्दू को जबरन थोपने के लिए बॉलीवुड के वामपंथी गैंग ने सारा तिकड़म आजमाया। अनंत विजय इसके बारे में लिखते हैं कि ये सब ‘गंगा जमुनी तहजीब’ के नाम पर किया गया।
नरेंद्र शर्मा की बेटी लावण्या लिखती हैं कि उनके पिता सांस्कृतिक इतिहास और एस्ट्रोलॉजी में भी पारंगत थे। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य से मास्टर्स किया था। वो बताती हैं कि उनके गीतों में न सिर्फ़ देशभक्ति की भावना होती थी बल्कि मानवीय दृष्टिकोण भी होता था। बीते जमाने के गायक मुकेश ने उनकी ही निगरानी में रामचरितमानस गाकर रिकॉर्ड किया था। अनुराधा पौडवाल भी ‘दुर्गा सप्तशती’ गाने के लिए उन्हें श्रेय देती हैं।
अब वो समय है, जब महाभारत के लेखन के लिए राही मासूम रजा ही नहीं बल्कि नरेंद्र शर्मा को भी उनके बराबर का श्रेय मिलना चाहिए। लता मंगेशकर की आवाज़ में राज कपूर द्वारा निर्देशित ‘सत्य शिवम् सुंदरम’ गीत को उन्होंने ही हिंदी में लिखा था और इसे खूब पसंद किया गया, ये आज भी लोकप्रिय है। कृत्यों को नाटकीय और भ्रामक बनाने के लिए ही वामपंथी गैंग ने पंडित नरेंद्र शर्मा के योगदान को भुलाने के लिए जी-तोड़ मेहनत की है।