बनारस शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर बभनियॉंव गॉंव में चल रही खुदाई के दौरान सैकड़ों वर्ष पुराना शिवलिंग मिला है। जानकारी के मुताबिक काशी हिन्दू विश्वविद्यालय यानी BHU के प्राचीन इतिहास विभाग की एक टीम यहाँ पुरातात्विक खुदाई में जुटी है। इसी दौरान उन्हें यहाँ से ये अवशेष मिले। इस खोज के साथ ही गुप्तकालीन ईंटों से बने मंदिरों के शहरों की लिस्ट में अब उत्तर प्रदेश का बनारस शहर भी शुमार हो गया।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, वाराणसी हेरिटेज प्रोजेक्ट्स के अंतर्गत पंचकोस परिक्रमा के लिए आस-पास के क्षेत्रों में सर्वे का काम शुरू किया गया था। उसी दौरान बभनियॉंव गाँव में कई सौ साल पुराने अवशेष मिले। यहाँ ताम्र पाषाण काल के मिट्टी के बर्तनों और कुषाण काल की ब्राह्मी स्क्रिप्ट के मिलने के बाद जब बीएचयू के पुरातत्व विभाग ने खुदाई शुरू की तो 3500 वर्ष पुराना गुप्तकालीन शिवलिंग मिला। BHU के प्राचीन इतिहास के प्रोफेसर मानते हैं यह स्थान गुप्त काल के दौरान लोगों का उपासना स्थल रहा होगा।
हिंंदुस्तान की रिपोर्ट के अनुसार, उत्खनन के निदेशक प्रो. एके सिंह ने इस शिवलिंग के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यह एक जीवंत मंदिर रहा होगा। इस पर बहुत सालों तक जल चढ़ाया गया होगा जिससे कि यह घिस गया है। इसका अरघा एक वर्ग मीटर का है। उत्तर की ओर से आए पानी के बहाव ने मंदिर को ज्यादा क्षतिग्रस्त किया है। मंदिर का मलबा गिरने से अरघा उत्तर की ओर झुक गया होगा। अब तक इसके आधे भाग का उत्खनन हुआ है। इस मंदिर का गर्भगृह दो वर्ग मीटर से बड़ा है। गुप्तकाल की ईटों से बने मंदिर कम मिलते हैं। बभनियॉंव का यह मंदिर उनमें से एक है।
बता दें बीएचयू के पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाई में मिट्टी के बर्तन और कई तरह की मूर्तियाँ भी मिली हैं। इसके अलावा ब्लैक एंड रेड बर्तन भी मिले हैं। इन बर्तनों का बाहरी हिस्सा काला और अंदरूनी हिस्सा लाल है। इसे देख बीएचयू के इतिहासकारों का कहना है कि ऐसे बर्तन ताम्र पाषाण काल में यानी आज से 1500 ईसापूर्व (3500 वर्ष पहले) बनते थे।
गौरतलब है कि इसी खोज के साथ भारतीय इतिहास का स्वर्णकाल कहे जाने वाले गुप्तकाल के दौर में काशी का भी एकमंदिर शुमार हो गया है। इससे पहले प्रदेश में कानपुर व सैदपुर भितरी में गुप्तकालीन मंदिर के अवशेष मिल चुके हैं। अब यब मंदिर गुप्तकाल की संस्कृति को हमेशा याद दिलाता रहेगा।