अहोम साम्राज्य (Ahom Dynasty)। लाचित बरपुखान/लाचित बोड़फुकन (Lachit Borphukan)। ये वे नाम हैं जिन्हें दफन कर इतिहास को मुगलिया पन्नों से रंग दिया गया। जबकि लाचित बरपुखान ने पूर्वोत्तर की जमीन पर मुगलों की बर्बर विस्तारवादी मंसूबों को ही दफन कर दिया। उनके पराक्रम में इतना बल था कि उससे टकराने के बाद मुगलों ने कभी पूर्वोत्तर पर काबिज होने का स्वप्न भी न देखा।
24 नवंबर 1622 को पैदा हुए लाचित बरपुखान को उनके युद्ध लड़ने की अद्भुत क्षमता के लिए ‘पूर्वोत्तर का शिवाजी’ भी कहा जाता है। उन्होंने 1671 में हुए सराईघाट के युद्ध (Battle of Saraighat) में मुगलों की विशाल सेना को अपनी रणनीति और जलीय युद्ध लड़ने की क्षमता की वजह से घुटनों पर ला दिया। मुगल जब पराजित हुए थे, तब लाचित पूरी तरह से स्वस्थ भी नहीं थे। पर राष्ट्रभक्ति का जज्बा ऐसा था कि बीमार होते हुए भी मातृभूमि की रक्षा के प्रण से नहीं डिगे। मुस्लिम आक्रांताओं से लड़े। अपनी सेना को विजय दिलाई।
1228 से 1826 के बीच लगभग 600 वर्षों तक अहोम ने असम के प्रमुख हिस्सों पर शासन किया था। इस साम्राज्य पर तुर्क, अफगान और मुगलों ने कई बार हमला किया। मुगलों का पहला हमला लाचित के जन्म से सात साल पहले 1615 में हुआ था।
1663 में मुगलों से अहोम पराजित हो गए। इसके बाद घिलाजरीघाट की संधि हुई। संधि के अनुसार अहोम राजा जयध्वज सिंह को अपनी बेटी और भतीजी को मुगल हरम में भेजना पड़ा। मुगलों को 82 हाथी, 3 लाख सोने-चाँदी के सिक्के, 675 बड़ी बंदूकें 1000 जहाज मिले। राज्य का एक बड़ा हिस्सा भी चला गया।
जयध्वज सिंह इसे सह नहीं सके और जल्द ही चल बसे। उनके उत्तराधिकारी चक्रध्वज सिंह ने इस अपमान का बदला लेने की कसम खाई। अहोम सम्मान को वापस पाने के लिए उन्होंने अगस्त 1667 में लाचित बरपुखान को सेनापति नियुक्त किया। बरपुखान को मानविकी और शास्त्रों के बारे में अच्छी जानकारी थी। वे सैन्य कौशल में पारंगत थे। सेनापति बनने से पहले अहोम साम्राज्य में कई अन्य अहम जिम्मेदारी भी निभा चुके थे।
4 नवंबर 1667 को बरपुखान के सैनिकों ने गुवाहाटी पर कब्जा कर लिया। मुगलों से युद्ध होने पर गुवाहाटी रणनीतिक तौर पर महत्वपूर्ण जगह थी। इस हार के बाद मुगल शासक औरंगजेब ने गुवाहाटी को फिर से हासिल करने के लिए अंबर के राजा मिर्जा राजा जय सिंह के पुत्र राजा राम सिंह की कमान में एक बड़ी सेना भेजी। हालाँकि इस दौरान अहोमों औए मुगलों के बीच कई बार संघर्ष हुए और एक रणनीति के तहत लाचित ने मुगलों को पानी की तरफ धकेलने का प्रयास किया और अंततः 1671 में सराईघाट का युद्ध लड़ा गया।
50,000 से भी अधिक संख्या में आई मुगल फौज को घेरने के लिए बरपुखान ने जलयुद्ध की रणनीति अपनाई। ब्रह्मपुत्र नदी और आसपास के पहाड़ी क्षेत्र को अपनी मजबूती बना कर मुगलों को नाकों चने चबवा दिए। उन्हें पता था कि जमीन पर मुगलिया फौज चाहे कितनी भी मजबूत हो, लेकिन पानी में वे घुटने टेकने को मजबूर होंगे। इस युद्ध में जीत के एक साल बाद वीर योद्धा बरपुखान का निधन हो गया।
लाचित बरपुखान का पराक्रम ऐसा था कि राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (National Defence Academy) के सर्वश्रेष्ठ कैडेट को उन्हीं के नाम पर स्वर्ण पदक (The Lachit Borphukan Gold Medal) प्रदान किया जाता है। असम सरकार ने भी 2000 में लाचित बरपुखान अवॉर्ड की शुरुआत की थी।
Honoured to pay floral tributes to our great national hero Lachit Barphukan in presence of Hon Union FM Smt @nsitharaman ji during inauguration of the 3-day special celebration of #400YearsofLachitBarphukan at Vigyan Bhawan, New Delhi. pic.twitter.com/RF8GwGaKpt
— Himanta Biswa Sarma (@himantabiswa) November 23, 2022
यह अच्छी बात है कि इतिहास ने जिन योद्धाओं के साथ अन्याय किया, केंद्र की मोदी सरकार उनको उनका गौरव लौटाने के प्रयास में लगी है। इसी कड़ी में बरपुखान की 400वीं जयंती पर दिल्ली के विज्ञान भवन में 23 नवंबर 2022 से एक तीन दिवसीय आयोजन की शुरुआत की गई है।