अयोध्या में सोमवार (22 जनवरी, 2024) को एक भव्य समारोह के बीच भगवान राम के विग्रह की प्राण प्रतिष्ठा उनकी जन्मभूमि पर बन रहे मंदिर के गर्भगृह में हो गई। इस अवसर पर देश और दुनिया भर के हिन्दू समाज ने उन तमाम ज्ञात-अज्ञात बलिदानियों को शीश नवाया जिन्होंने राम मंदिर के लिए मुगल से मुलायम काल तक चले संघर्ष में अपने आप को स्वाहा कर दिया। इन तमाम अमर बलिदानियों में अम्बेडकरनगर के हंसवर राजपरिवार का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
यहाँ के राजा रणविजय सिंह ने मुगल फ़ौज से लोहा लिया था और वीरगति पाई थी। ऑपइंडिया की टीम हंसवर के उस महल तक पहुँची जहाँ बलिदानी राजा अपनी सेना के साथ जन्मभूमि बचाने निकले तो लेकिन लौट कर वापस नहीं आ पाए।
खंडहर में तब्दील हो चुका है महल
हंसवर पहुँच कर ऑपइंडिया ने यह पाया कि राजा रणविजय सिंह का महल खँडहर जैसा हो चुका है। लम्बे समय से यहाँ रंग-रोशन नहीं हुआ। बाहर की दीवालों में भी दरारें आ चुकी हैं। महल के आसपास मुस्लिम आबादी बहुलता में बस चुकी है। जहाँ कभी महल की बाउंड्री थी, वहाँ अब तमाम दुकानें खुल चुकी हैं। मैदान में आसपास के बच्चे क्रिकेट खेलते हैं। बाहरी हिस्से में चारों तरफ गंदगी का अम्बार दिखा। एक हिस्से पर तो कालिख भी पुती हुई है। महल के आंतरिक हिस्से में वो चबूतरा अभी भी मौजूद है जहाँ कभी राजा रणविजय पूजा-पाठ करते थे।
राजा रणविजय सिंह के वंशज संजय फ़िलहाल भारतीय जनता पार्टी के नेता है। वो इस समय हंसवर के ब्लॉक प्रमुख हैं। जब हम पहुँचे तब वो महल पर मौजूद नहीं थे। राम जन्मभूमि प्राण प्रतिष्ठा में संजय सिंह भी मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किए गए थे। संजय सिंह राजा रणविजय की 7वीं पीढ़ी हैं।
महताब सिंह और देवीदीन के बाद तीसरा आक्रमण रणविजय सिंह का
अम्बेडकरनगर के इतिहासकार और सामाजिक कार्यकर्ता बलराम मिश्रा हमें हंसवर महल पर ही मिल गए। वो राम जन्मभूमि के लिए किए गए हिन्दुओं के संघर्ष पर लम्बे समय से शोध कर रहे हैं। बलराम मिश्रा ने हमें बताया कि महाराज रणविजय सिंह बाबर की फ़ौज द्वारा हिन्दुओं के नरसंहार, राम मंदिर पर हमला और राजा महताब के साथ पंडित देवीदीन की हत्या से काफी व्यथित थे। इसी बीच अयोध्या से स्वामी महेश्वरनंद हंसवर आए और उन्होंने राजा रणविजय सिंह से तब तक युद्ध न छेड़ने को ले कर सवाल किया।
इस पर राजा रणविजय सिंह ने आँखों में आँसू भर के कहा, “महात्मा जी। मैं मुगल फ़ौज के खिलाफ पूरी तैयारी में जुटा हूँ क्योंकि मैं कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहता।” यह समय काल सन 1526-27 का था।
भाई और साले भी थे संघर्ष में शामिल
बलराम मिश्रा आगे बताते हैं कि आखिरकार राजा रणविजय सिंह अपनी सेना के साथ अयोध्या की तरफ कूच कर गए। राजा रणविजय सिंह की सेना में उनकी ससुराल के सैनिक ले कर उनके साले कुँवर वीरभानु प्रताप भी शामिल हुए थे। राजा रणविजय की ससुराल गोरखपुर के पास जयराज नगर में थी। तब यह स्थान एक छोटा सा रजवाड़ा हुआ करता था। इसी जगह के नाम पर राजा रणविजय सिंह की पत्नी का नाम रानी जयराज कुँवर पड़ा था।
राम के नाम पर संघर्ष करने के लिए हंसवर से सटे मकरही रजवाड़े के राजा संग्राम सिंह भी रणविजय सिंह के साथ अपने सैनिक ले कर महल छोड़ कर निकल चल पड़े थे। संग्राम सिंह राजा रणविजय के ही पारिवारिक सदस्य थे।
8 दिनों तक चले युद्ध में वापस ली थी रामजन्मभूमि
बलराम मिश्रा के साथ स्वर्गीय राम गोपाल ‘शरद’ द्वारा लिखी गई पुस्तक में भी राजा रणविजय सिंह के बलिदान का उल्लेख मिलता है। अयोध्या से हंसवर की दूरी लगभग 80 किलोमीटर है। जब तक राजा रणविजय सिंह अपनी सेना के साथ अयोध्या धर्मक्षेत्र की सीमाओं पर पहुँचे तब तक वहाँ मुगल फ़ौज रामजन्मभूमि पर अपनी छावनी बना चुकी थी। अयोध्या पहुँच कर राजा रणविजय ने जन्मभूमि पर काबिज़ मुगल फ़ौज पर हमला किया। यह युद्ध लगभग 7 दिनों तक चला था।
8वें दिन राजा रणविजय सिंह की सेना ने जन्मभूमि परिसर पर अपना अधिकार जमा लिया था। तब मुगल फ़ौज को पीछे खिसकना पड़ा था। मुगल सेनापति मीर बाकी तब भाग खड़ा हुआ था।
राजा रणविजय जन्मभूमि को बनाना चाहते थे अभेद्य
इतिहासकार बलराम मिश्रा जब हमें यह इतिहास बता रहे थे तब वहाँ आसपास हंसवर के तमाम हिन्दू संगठन के लोग भी जमा हो गए थे। इसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े अशोक कुमार भी शामिल हैं। हंसवर महल से जुड़े कई अन्य लोग भी वहाँ मौजूद थे। वो सभी इन ऐतिहासिक तथ्यों से पूरी तरह से सहमत थे। बलराम मिश्रा ने आगे बताया कि जन्मभूमि को वापस पाने के बाद राजा रणविजय सिंह और उनके साथ हिन्दू योद्धाओं की सेना ने वहाँ आसपास के संतों-महंतों को बुलवाया। इस जगह फिर पूजा-पाठ शुरू हो गई।
हालाँकि राजा रणविजय सिंह को मुगलों की क्रूरता और धूर्तता का पूरा आभास पहले से था। रणविजय सिंह रामजन्मभूमि को अभेद्य बनाना चाहते थे। उन्होंने परिसर के चारों तरफ बाड़ बनवाई। गहरी खाइयाँ भी खुदवानी शुरू कर दी। कम समय और संसाधन में उन्होंने अधिकतम प्रयास किए कि मीर बाकी फिर से जन्मभूमि के आसपास न फटक सके।
मुगलों फ़ौज ने फिर किया तोपों से हमला
इतिहासकार बलराम मिश्रा बताते हैं कि राजा रणविजय सिंह का अनुमान सही साबित हुआ। 10 दिनों बाद ही मुगल फ़ौज फिर से लौट कर आई। दिल्ली से भी बैकअप सिपाही भेजे गए जो कहीं अधिक क्रूर थे। मुगल फ़ौज ने तोपों से सबसे पहले बाउंड्री बाड़ों को तोड़ा। फिर जन्मभूमि परिसर में घुस गई। महाराजा रणविजय सिंह अपने रिश्तेदारों और सैनिकों के साथ अधिकतम सामर्थ्य से इस हमले का मुकाबला करते रहे। आखिरकार संख्या बल अधिक होने और अधर्म पूर्वक से लड़ने की वजह से मुगल फ़ौज की जीत हुई।
गर्भगृह पर ही मिला था राजा रणविजय का पार्थिव शव
बलराम मिश्रा बताते हैं कि गर्भगृह के जिस स्थान पर आज रामलला विराजमान हैं उसी जगह राजा रणविजय सिंह का शव क्षत-विक्षत हालत में मिला था। उनके साले वीरभानु प्रताप और भाई संग्राम सिंह को पहले ही वीरगति मिल गई थी। भगवान राम से अत्यधिक प्रेम करने की वजह से राजा रणविजय सिंह ने गर्भगृह की रखवाली के लिए खुद को तैनात किया था। यहीं पर उन्होंने अंतिम साँस ली थी। हालाँकि, वीरगति से पहले राजा और उनके साथियों ने कई मुगल कमांडर और सैनिक मार गिराए थे।
मुगल फ़ौज छीनना चाहती थी राजा की लाश
राजा रणविजय सिंह के बलिदान का उल्लेख अयोध्या के उस स्थान पर भी मिलता है जहाँ राम मंदिर निर्माण के लिए तराशे गए पत्थरों की कार्यशाला मौजूद है। तमाम गुमनाम बलिदानियों की याद दिलाने वाली इस कार्यशाला का संचालन ‘विश्व हिन्दू परिषद’ (VHP) द्वारा किया जाता है। राजा की वीरगति के बाद मुगल फ़ौज ने वहाँ बने पूजा स्थल को छिन्न-भिन्न कर डाला। मंदिर क्षेत्र को पाशविक हरकतों से अपवित्र भी किया गया। इसी के साथ एक बार फिर से हिन्दुओं के इस तीर्थस्थल पर पूजा-पाठ बंद हो गई।
इतिहासकार बलराम मिश्रा आगे बताते हैं कि मुगल फ़ौज किसी भी हालत में राजा रणविजय सिंह के शव को छीनना चाहती थी। ऐसा करने के पीछे उनका मकसद शव के साथ निर्ममता कर के उसकी प्रदर्शनी बना कर हिन्दुओं का मनोबल गिराने की थी। साथ ही वो लगातार लड़ कर मारी जा रही अपनी फ़ौज को नई ताकत देना चाहते थे।
सरयू नदी में कूद गए अपने राजा शव ले कर बचे-खुचे सैनिक
इतिहासकार बलराम मिश्रा भी जल्द ही अयोध्या रामजन्मभूमि पर लिखी अपनी एक नई पुस्तक को सार्वजनिक करेंगे। उन्होंने ऑपइंडिया को आगे बताया कि हंसवर से युद्ध करने गए राजा के महज मुट्ठी भर सैनिक वापस अपने राज्य लौट पाए थे। अपने राजा के बलिदान के बाद हंसवर राज्य के सैनिकों ने उनके शव की तरफ मुगल फ़ौज को बढ़ते देखा। बहुत कम संख्या में बचे होने के बावजूद उन सैनिकों में से कुछ ने मुगलों को थोड़े समय के लिए रोका। कुछ सैनिकों ने इतना समय पा कर अपने राजा का शव ले कर सरयू नदी में छलाँग लगा दी। वो काफी दूर तक तैर कर गए और बाद में कहीं किनारे सुरक्षित स्थान पर निकले।
उधर मुगलों को रोके सैनिक एक-एक कर के बलिदान हो गए। अपने राजा के शव के साथ नदी में कूदे सैनिकों ने किसी सुरक्षित जगह पहुँच कर एक नाव का प्रबंध किया। यहाँ से वो जल मार्ग से अधिक से अधिक दूरी तक राज रणविजय सिंह का शव ले कर गए। बाद में वो सड़क मार्ग से कई खतरों को मोल लेते हुए हंसवर पहुँचे। उनके शव को देखते ही प्रजा में थोड़े समय के लिए कोहराम मच गया था। बाद में परिजनों ने शव का विधि-विधान से अंतिम संस्कार किया।
हंसवर के हर परिवार से बलिदान हुआ था एक रामभक्त सिपाही
हंसवर महल पर मौजूद हिन्दू संगठन के सदस्यों ने हमें बताया कि राजा रणविजय के शव को देखते ही पूरे हंसवर में पहले दुःख और बाद में आक्रोश की लहर दौड़ गई थी। इस आक्रोश की वजह यह थी कि अपने राजा के साथ रामजन्मभूमि की रक्षा के लिए हंसवर के हर घर से कम से कम एक जवान सैनिक अयोध्या गया था। इस युद्ध के चलते हर घर से एक चिराग बुझा था। हंसवर के निवासियों ने वामपंथी इतिहासकारों द्वारा गढ़े गए जातिवाद के जाल को भी साजिश बताया।
उन्होंने कहा कि राजा रणविजय के सैनिक सभी जातियों के साथ जिन्हें एक साथ एक तरह का सम्मान मिलता था। उन सभी ने सामूहिक तौर पर बताया कि तब जातिगत या वर्णगत घृणा जैसा कभी कुछ भी नहीं था।
आज भी हंसवर के कुछ लोग पुराने श्लोकों की पंक्तियों को याद करते हैं। इन्ही में से एक श्लोक है, “हंसवरराज्ये राजा सिद्धिरामो यद्धिती राजत, चिंतने रामो रामराज्यम वय वीर प्रज्ञा समन्वितः”। (सम्भवतः श्लोक सुनने में कुछ सुधार सम्भव)। अर्थात, “हंसवर राजा के हृदय में स्वयं भगवान राम विराजते थे। उन प्रज्ञावान राजा रणविजय के चिंतन में रामराज्य था।” यह पंक्तियाँ 500 साल पहले की हैं जब किसी समकालीन विद्वान ने राजा रणविजय सिंह के लिए लिखीं थीं।