बुंदेलखंड साम्राज्य की स्थापना और इसे मुगलों के चंगुल से निकालने का श्रेय जाता है महाराजा छत्रसाल को। आपने इनके बारे में इतिहास की पाठ्य-पुस्तकों में नहीं पढ़ा होगा, लेकिन औरंगज़ेब को ज़रूर पढ़ा होगा। 4 मई, 1649 को जन्मे महाराजा छत्रसाल 56 वर्षों तक बुंदेलखंड पर शासन किया। उनका निधन 20 दिसंबर, 1731 को हुआ था। वो बुंदेला राजपूत थे। राजकाज उनके खून में था, क्योंकि वो ओरछा के राजा रूद्र प्रताप सिंह के वंशज थे।
दिल्ली में था औरंगज़ेब का शासन, इधर बुंदेलखंड में धधकी एक ज्वाला
जब औरंगज़ेब ने उनके पिता चंपत राय की हत्या करवा दी थी, तब महाराजा छत्रसाल की उम्र मात्र 12 वर्ष ही थी। ये वो समय था, जब पूरे देश में छत्रपति शिवाजी के कारनामे गूँज रहे थे। वो आततायी अफ़ज़ल खान का वध कर चुके थे और पवन खिंड के युद्ध में जिस तरह की बहादुरी का परिचय मराठा सेना ने दिया था, उससे बड़े-बड़े लोग हैरान थे। अतः, छत्रसाल ने महाराष्ट्र जाकर शिवाजी का दिशानिर्देश प्राप्त किया।
महाराजा छत्रसाल ने 1671 में मात्र 22 वर्ष की उम्र में विशाल और क्रूर मुग़ल साम्राज्य के खिलाफ स्वतंत्रता का बिगुल फूँक दिया। उस समय उनके पास मात्र 5 घुड़सवारों और 25 तलवारबाजों की सेना थी। लेकिन, उनकी वीरता और साहस का प्रभाव था कि ये संख्या बढ़ती चली गई और अगले एक दशक में पूर्व में चित्रकूट, छत्तरपुर व पन्ना और पश्चिम में ग्वालियर तक उनका शासन हो गया। उत्तर में कालपी से लेकर दक्षिण में सागर, घरकोटा, शाहगढ़ और दमोह तक उन्होंने अपने साम्राज्य का विस्तार किया।
जब 1671 में शिवाजी से सीख कर छत्रसाल बुंदेलखंड लौटे थे, तब उनके पास कोई सेना नहीं थी। उन्होंने ओरछा के राजा सुजान सिंह से मदद माँगी तो उन्होंने इनकार कर दिया। लेकिन, तभी औरंगज़ेब ने मंदिरों के ध्वंस के क्रम में ओरछा अपनी सेना भेजी। तब सुजान सिंह को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने छत्रसाल की तरफ मैत्री का हाथ बढ़ाया। सबसे पहले उन्होंने अपने पिता की हत्या करने वाे धन्धेरों पर आक्रमण कर उन्हें हराया।
इसके बाद उन्होंने सिरोंज, चंद्रपुर और मैहर पर विजय प्राप्त की। धामोनी के बाद उन्होंने सागर को जीता। 1673 में औरंगज़ेब ने रुहल्ला खान को धामोनी का फौजदार नियुक्त किया, जिसने 22 सरदारों को छत्रसाल का दमन करने के लिए भेजा। ओरछा, दतिया और चंदेरी की सेना को साथ लेकर भी वो छत्रसाल को नहीं हरा सका। उसे पीछे हटना पड़ा। फिर छत्रसाल ने नरहर और फिर सुजान सिंह की मृत्यु के बाद ओरछा पर आक्रमण किया।
बुंदेलखंड के महाराजा छत्रसाल से काँपती थी औरंगज़ेब की फौज
राजा छत्रसाल ने तत्पश्चात पन्ना को जीत कर अपनी राजधानी बनाया। महोबा और मऊ को उन्होंने अपनी सैनिक छावनी में तब्दील किया। बुंदेलखंड के 70 छोटे-बड़े जमींदारों ने उन्हें अपना राजा मान लिया। कई हिन्दू राजाओं ने भी मुगलों का गुट बना कर छत्रसाल पर आक्रमण किया, लेकिन उनका हौसला नहीं डिगा। औरंगज़ेब ने इख़्लासा खान को धामोनी भेजा। छत्रसाल ने एक रणनीति के तहत मुगलों से संधि में ही अपनी भलाई समझी, क्योंकि उनका लक्ष्य बड़ा था।
लेकिन, जब उन्होंने देखा कि उनके पीठ पीछे मुग़ल उनसे धोखा करते हुए बुंदेलखंड के हिस्सों को फिर गुलाम बना रहे हैं तो उन्होंने मुगलों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। अंत में फिर संधि हुई और औरंगज़ेब ने छत्रसाल को ‘राजा’ की उपाधि दी। छत्रसाल ने अपने बेटे को भेजे गए एक पत्र में एक संत का जिक्र किया था। वो संत उन्हें पन्ना जाते समय मिले थे। उनका नाम था – प्राणनाथ। उन्होंने उन्हें आशीर्वाद दिया था कि उन्हें एक बड़े साम्राज्य का राजा बनना है।
मुगलों ने समय-समय पर रोहिल्ला खान, कलिक, मुनव्वर खान, सदरुद्दीन, शेख अनवर, सैयद लतीफ़, बहलोल खान और अब्दुस अहमद जैसे सैन्य कमांडरों को भेजा, लेकिन इन सभी को छत्रसाल के हाथों हार झेलनी पड़ी। उन्होंने बुंदेलखंड में 25,000 लोगों की सेना तैयार कर ली। दिसंबर 1728 में किस तरह 79 वर्ष की उम्र में उन्होंने मुहम्मद खान बंगश के खिलाफ सेना का नेतृत्व किया था, ये आज भी इतिहास में दर्ज हैं।
बुंदेलखंड को बचाने के लिए दौड़े आए थे बाजीराव, महाराजा छत्रसाल का वो पत्र
ये बहुत मशहूर किस्सा है कि किस तरह मराठा क्षत्रप बाजीराव पेशवा तब वृद्ध राजा की मदद के लिए आए थे। उन्होंने बाजीराव को पत्र में लिखा था, “क्या आपको पता है बाजीराव, मैं अभी ठीक उसी स्थिति में हूँ जिसमें वो हाथी था, जब मगरमच्छ ने उसके पाँव अपने जबड़े में जकड़ लिए थे। मेरा वीर वंश ख़त्म होने की ओर है। आइए, मेरी प्रतिष्ठा बचा लीजिए।” इसके बाद बाजीराव वहाँ पहुँचे और बुंदेलखंड व मराठा सेना ने आक्रांता को वहाँ से निकाल बाहर किया।
प्राणनाथ ने ये भी भविष्यवाणी की कि छत्रसाल 100 वर्ष के करीब जिएँगे और अपने पोते-पोतियों का मुँह देखेंगे। उस समय छत्रसाल का कोई बेटा नहीं था, लेकिन प्राणनाथ ने भविष्यवाणी की कि उन्हें एक बहादुर बेटा होगा। उनकी शुरू से इच्छा थी कि वो एक साम्राज्य की नींव रखें। उनके साम्राज्य के बारे में एक साहित्य में कहा गया है, “इत जमना उत नर्मदा इत चंबल उत टोंस। छत्रसाल से लरन की रही न काह होंस।”
इसका अर्थ है कि यमुना से लेकर नर्मदा तक और चम्बल नदी से लेकर टोंस तक राजा छत्रसाल का राज्य है। उनसे लड़ने का हौसला अब किसी में नहीं बचा। 1707 में मुग़ल बादशाह औरंगज़ेब की मौत के बाद बुंदेलखंड को राहत मिली। कोई और मुग़ल इसे जीत न पाया। लेकिन, वृद्धावस्था में बंगश खान ने उन पर आक्रमण किया। लेकिन, जीत के खुमार में डूबे खान को जब बाजीराव के आने की बात पता चली तो उसके होश उड़ गए।
विंन्ध्य प्रदेश को जाने – बुंदेलखंड
— Virendra Singh Gaharwar (@VirendraSG1) July 30, 2021
छत्रसाल जी की यादें ,प्राचीन जैन मूर्तियाँ ,प्रसिद्ध धुबेला म्यूजियम के सौजन्य से@vindhya_pradesh pic.twitter.com/dUA45mMuYZ
अपने जीवन में कभी कोई युद्ध न हारने वाले बाजीराव की सेना चपल गति से चलती थी। इससे पहले कि बंगश को खतरे का एहसास हुआ, उसकी फ़ौज चारों तरफ से घिर चुकी थी और रसद-पानी बंद होने से अफरातफरी का माहौल था। बंगश को आत्म-समर्पण करना पड़ा। छत्रसाल ने बाजीराव को बेटे की तरह सम्मान दिया। अपनी पुत्री मस्तानी की शादी बाजीराव से की। उनके निधन के धुबेला में उनके बेटों और मराठों ने मिल कर उनका स्मारक बनवाया।
वो कला एवं संगीत के प्रेमी थे। उन्होंने अपने राज्य में कई कवियों को शरण दे रखी थी। संत प्राणनाथ ने ही छत्रसाल को बताया था कि पन्ना में हीरा मिलने के कारण उनका साम्राज्य समृद्ध होगा। कवि भूषण, लाल कवि और बख्शी हंसराज जैसे कवियों ने महाराजा छत्रसाल के बारे में लिखा है। अंतिम समय में छत्रसाल ने अपने राज्य का एक हिस्सा बाजीराव को देकर बाकियों की जिम्मेदारी अपने बेटों में बाँट दी थी।