Saturday, November 16, 2024
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Engineer’s Day पर जानिए उस बाँध के बारे में, जो 2000 वर्षों से कर रहा काम: प्राचीन भारत की करिश्माई तकनीक, 10 लाख एकड़ की करता है सिंचाई

कल्लानाई बाँध सचमुच में ही एक 'Engineering Marvel' है। Mass और Gravity बढ़ाने के लिए नदी में सबसे पहले बड़े-बड़े पत्थरों को डाला गया, जिसके बाद उनके ऊपर छोटे-छोटे पत्थरों से चिनाई के के एक आधार तैयार किया गया, तब जाकर उसके ऊपर दीवार खड़ी की गई थी।

भारत 15 सितंबर को ‘Engineer’s Day’ मनाता है। कारण – इस दिन मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या की जयंती होती है। भारत रत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरय्या, जो मैसूर के दीवान रहे थे। लेकिन, हम उन्हें इस रूप में नहीं याद करते। उन्हें याद किया जाता है एक उत्कृष्ट अभियंता के रूप में, जिनका जन्म कर्नाटक के मुद्देनाहल्ली में हुआ था। भारत उनकी 160वीं जयंती मना रहा है। मैसूर का कृष्णराज सागर बाँध हो या ग्वलियर का तिघरा बाँध, कई बड़े इलाकों की सिंचाई व्यवस्था और ड्रेनेज सिस्टम पर उनकी छाप है।

इस ‘अभियंता दिवस’ पर हमें एक बात गाँठ बाँध लेनी चाहिए कि रामायण-महाभारत के काल से लेकर हड़प्पा और मौर्य-गुप्त साम्राज्यों तक, प्राचीन काल में भी भारत इस क्षेत्र में दुनिया के बाकी हिस्सों से कई गुना आगे था। रामायण में समुद्र पर पुल बनाने का जिक्र हो या फिर महाभारत में लाक्षागृह निर्माण, ये सब कहानियाँ हमें बताती हैं कि हम उस वक्त कितने उन्नत थे। लेकिन, आज हम आपको जिस चीज के बारे में बताने जा रहे हैं, वो आज भी मौजूद है।

एक ऐसा बाँध, जो पिछले 1850 वर्षों से अपनी सेवाएँ दे रहा है और आगे भी कई वर्षों तक ये यूँ ही संचालित रहेगा, ऐसी उम्मीद है। इसे सन् 150 में बनवाया गया था। अब आप सोचिए, उस समय भारत के पास कितने उत्कृष्ट इंजीनियर्स हुआ करते थे। ये विश्व का चौथा सबसे पुराना ‘Water Diversion’ अथवा ऐसा ‘Water Regular Structure’ है, जो अभी भी काम कर रहा है। इतना ही नहीं, अपनी शानदार कलाकृति के लिए ये आज पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का बड़ा केंद्र बना रहता है।

हम बात कर रहे हैं तमिलनाडु में तिरुच्चिराप्पल्ली से तंजावुर की तरफ बहती कावेरी नदी में स्थित कल्लानाई बाँध की, जिसे ‘The Grand Anicut’ भी कहा जाता है। इसे महान चोल शासक करिकाल द्वारा बनवाया गया था। ये बाँध तिरुच्चिराप्पल्ली से 15 किलोमीटर और तंजावुर से 45 किलोमीटर की दूसरी पर स्थित है। एक बड़े क्षेत्र में सिंचाई के लिए पानी की ज़रूरत पड़ने पर इस बाँध की आवश्यकता महसूस हुई। उस क्षेत्र को ‘चोला नाडु’ के रूप में भी जाना जाता है, जो डेल्टा वाला इलाका है और चोल साम्राज्य का सांस्कृतिक गढ़ भी रहा।

राजा करिकाल के बारे में बता दें कि उन्हें चोल राजवंश के महान शासकों में से एक माना जाता है। संगम साहित्य में उनके बारे में वर्णन है। उनका एक पाँव बचपन में ही किसी दुर्घटना में जल गया था, इसीलिए उनका ये नाम पड़ा। वहीं इस शब्द का एक अर्थ ‘हाथियों का संहारक’ भी बनता है। कम उम्र में ही उन्हें पिता की मृत्यु के बाद देश से निकाल दिया गया था और बाद में जेल में डाल दिया गया था, लेकिन वो दुश्मनों का नाश करने में सफल रहे।

उन्होंने वेन्नी के युद्ध में पंड्या और चेर राजाओं को हराया। दोनों के गठबंधन के साथ-साथ 11 छोटे-मोटे राजाओं ने उनके विरुद्ध इस अभियान में भाग लिया था, लेकिन इस गठबंधन की हार ने दक्षिण भारत में करिकाल को प्रसिद्ध कर दिया। उन्होंने पूरी की पूरी श्रीलंका को जीत लिया था। अधिकतर वहीं के मजदूरों का इस्तेमाल ‘The Grand Anicut’ को बनवाने में किया गया था। इसके लिए बड़े-बड़े पत्थरों को एक जगह से दूसरे जगह लेकर जाना था।

बताया जाता है कि कावेरी पर इस बाँध को बनाने के लिए श्रीलंका के 12,000 मजदूरों का इस्तेमाल किया गया था। उन्होंने पानी की दिशा बदलने और बाढ़ से बचाने के साथ-साथ सिंचाई व्यवस्था के लिए वहाँ बड़ी-बड़ी दीवारें बनवाई थीं। इस बाँध को बनवाने के लिए एक विशाल पत्थर को एक खास रूप दिया गया, जो कि 1080 फ़ीट (329 मीटर) लंबा और 60 फ़ीट (20 मीटर) चौड़ा है। कावेरी नदी की मुख्य धारा के बीच में इस पत्थर को रखा गया था।

नहरों के जरिए फिर नदी के पानी को डेल्टा क्षेत्रों में पहुँचाया गया, ताकि कृषि उत्पादन बढ़े। हालाँकि, फिलहाल इसका गहन अध्ययन इसीलिए भी मुश्किल है, क्योंकि अंग्रेजों के आने के बाद आसपास भी कई संरचनाएँ बनवाई गई हैं। ये एक प्रकार के ‘चेक डैम’ है, जिसे पत्थरों या कंक्रीट से बनाया जाता है। इस तरह का बैरियर बना कर पानी की धारा को दूर के गाँवों में भेजा जाता है। शुरुआत में इस कल्लानाई बाँध से 69,000 एकड़ में सिंचाई की व्यवस्था हुई थी, जो अब बढ़ कर 10 लाख एकड़ हो गया है।

सिविल इंजीनियरिंग के विशेषज्ञों का भी मानना है कि इसका मूल डिजाइन अनूठा है, इसकी चिनाई थोड़ी टेढ़ी हुई है। इसमें एक स्लोप के आकर बनाते हुए पत्थर लगाए गए हैं। साथ ही आगे से पीछे तक एक अनियमित ढलाई है। इस बाँध के माध्यम से कावेरी नदी के पानी को कोल्लीडम नदी तक पहुँचाया गया। इसके लिए एक छोटी धारा का इस्तेमाल किया गया, जो दोनों को जोड़े। जब नदी में पानी का तर बढ़ जाता था, तब कोल्लीडम नदी चौड़ी हो जाती थी।

अतः ये ज्यादा तेज़ और सीधी दिशा में होने के साथ-साथ ढलान की तरफ जाती थी। सिविल इंजीनियरिंग की भाषा में ये ‘Flood Carrier’ बन जाती थी। बाढ़ की स्थिति में कोल्लीडम के माध्यम से सारा पानी समुद्र में चला जाता था और किसानों की फसल को नुकसान नहीं होता था। विशेषज्ञ चित्र कृष्णन ने पाया था कि ये बाँध इसीलिए अच्छी तरह काम करता था, क्योंकि सभी प्राकृतिक बलों को काबू में करने की बजाए ये सिर्फ अवसादन (Sedimentation) की प्रक्रिया और पानी की धारा को एक नया अकार देता था।

कल्लानाई बाँध सचमुच में ही एक ‘Engineering Marvel’ है। Mass और Gravity बढ़ाने के लिए नदी में सबसे पहले बड़े-बड़े पत्थरों को डाला गया, जिसके बाद उनके ऊपर छोटे-छोटे पत्थरों से चिनाई के के एक आधार तैयार किया गया, तब जाकर उसके ऊपर दीवार खड़ी की गई थी। अंग्रेज इस बाँध से इतने चकित हो गए थे कि उन्होंने अपने सैन्य अभियंताओं को इसके अध्ययन के काम पर लगा दिया। सर ऑर्थर कॉटन ने इसी की नकल करते हुए इसके एक छोटा रूप 19वीं सदी में कावेरी की एक शाखा नदी पर बनाया।

वहाँ पर एक भव्य मेमोरियल भी बनाया गया है, जिसमें हाथी पर बैठे करिकाल की प्रतिमा है। इसका नाम ‘करिकाल चोल मंडपम’ रखा गया है। इसके पास में ऑर्थर कॉटन की मूर्ति भी लगाई गई है, जिन्होंने उस बाँध की नकल कर दूसरा बाँध बनाया था। इस बाँध से न सिर्फ एक बड़ा क्षेत्र बाढ़ से तबाह होने से बचता है, बल्कि किसानों की सिंचाई की भी उत्तम व्यवस्था मिलती है। ये हमारे प्राचीन दूरदर्शी शासकों और महान इंजीनियरों का ही तो कमाल है।

आप भी इस बाँध को देखने के लिए तमिलनाडु घूमने जा सकते हैं। यहाँ का सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन लालगुडी (Lalgudi) है, जो 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। ये बाँध थोगुर गाँव में स्थित है, जो सरकारपलायम गाँव से 1.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। तिरुचिरापल्ली एयरपोर्ट यहाँ से 13 किलोमीटर की दूरी पर है। ये संरचना जवाब है उन लोगों को भी, जो ये दावे करते थकते नहीं कि भारतीय असभ्य थे और उन्हें बाहर से आए लोगों ने सब कुछ सिखाया।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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