भारत में चीजें कहाँ से आईं? प्राचीन इतिहास में मध्य एशिया से लोग आए। उसके बाद पश्चिम एशिया से आए। उन्हीं लोगों में से कोई धातु लेकर आ गया, किसी ने हमें घोड़ा दिया, तो किसी ने हमें गाय के दुग्ध के बारे में बताया। फिर मुग़ल आए। आजकल हम जो भी खाते-पीते हैं, उनमें से अधिकतर चीजें उन्हीं की देन हैं। सबसे उन्नत सभ्यताएँ तो मेसोपोटामिया की थीं, माया सभ्यता थी, मिस्र की थी। सच में देखा जाए तो हम उनके सामने कुछ नहीं थे। आर्य बाहर से आए और उन्होंने यहाँ के लोगों को गुलाम बना कर आदमी होना सिखाया।
अगर आप सब ने वामपंथियों वाला इतिहास पढ़ा है तो हर बच्चा यही सोचता हुआ बड़ा हुआ होगा। इतिहास में दिलचस्पी न होने के कारण हम ज्यादा पढ़ते-सुनते भी नहीं। तभी तो सिनौली में खुदाई आज से 3 वर्ष पहले हुई (सबसे पहले 2005 में हुई थी) लेकिन हमें उसके बारे में अब पता चल रहा है, वो भी डिस्कवरी प्लस की डॉक्यूमेंट्री “Secrets of Sinauli” से। यकीन मानिए, आपके 55 मिनट तब भी जाया नहीं जाएँगे जब आपको इतिहास में बिलकुल भी रुचि नहीं है।
मनोज वाजपेयी का नैरेशन शानदार है। विशेषज्ञों से विस्तृत बातचीत की गई है और ग्राफिक्स की मदद से 5000 वर्ष पूर्व की उस सभ्यता को लगभग उकेर दिया गया है। सच्चाई ये है कि हमारे यहाँ पनपने वाली एक छोटी सी सभ्यता भी अपने समकालीन विदेशी सभ्यताओं से कम से कम 5 सदी आगे थी। अब तक हमें पढ़ाया जा रहा था कि भारत में रथ तो ईरान वाले लेकर आए। सिकंदर वगैरह लेकर आया।
लेकिन, अगर 5000 वर्ष पूर्व का कोई ऐसा रथ मिले जिसकी संरचना उन्नत हो और उसके डिजाइंस शानदार हों, तो आप क्या कहेंगे? वो भी तब, जब विश्व की बाकी सभ्यताओं में रथ के नाम पर लोग ठूँठ में खड़े होकर चलते थे? निश्चित ही, ये हमारी उन्नत प्राचीन सभ्यताओं का परिचायक है। इस बारे में अधिक जानने के लिए आप 55 मिनट में डॉक्यूमेंट्री ही देख लें तो बेहतर है। हो सकता है आपके भीतर और रिसर्च करने, खँगालने की रुचि जाग उठे।
हमारे यहाँ कहा गया है – “इतिहासपुराणाभ्यां वेदं समुपबृंहयेत्॥” – इसका अर्थ है कि वेदों के विस्तार का वर्णन हमें पुराणों और इतिहास की सहायता से ही करनी चाहिए। हाल ही में जिन बीबी लाल को पद्म विभूषण मिला, उन्होंने पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ को खोज निकाला था और रामायण-महाभारत में दिए गए भूगोल के हिसाब से खुदाई की थी। ‘Secrets Of Sinauli’ में आपको उन्हें भी सुनने को मिलेगा।
बस संक्षेप में इतना समझिए कि भारत के उत्तर प्रदेश के बागपत एक छोटे से गाँव में हमें एक ऐसी सभ्यता का प्रमाण मिला है, जो बताता है कि हड़प्पा, वैदिक और महाजनपद काल – ये तीनों ही एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। सिंधु-सरस्वती हो या गंगा-यमुना, हर जगह पनपी सभ्यताएँ एक-दूसरे से जुड़ी हैं। पूर्णतः भारतीय हैं। कोई बाहर से नहीं आया। भारत का प्राचीन इतिहास इतना जटिल है कि अगर कहीं मिट्टी की चीजें मिलती हैं तो उसके ही समकालीन कहीं धातुओं पर कलाकृति में दक्ष लोगों के अस्तित्व का प्रमाण मिल जाता है।
जब आपको पता चलता है कि 5000 वर्ष पूर्व सिनौली की महिलाएँ योद्धा हुआ करती थीं, तो ये बहस समाप्त करनी होती है कि भारत में सदियों से औरतों को दबा कर रखा गया है, घर में अंदर रखा गया है। जब हम महाभारत में मणिपुर की चित्रांगदा और नाग कन्या उलूपी के योद्धा होने का इतिहास पढ़ते हैं तो ध्यान नहीं देते क्योंकि विदेशी इसे कथा-कहानी कह कर नकार देते हैं। हाँ, कथा-कहानी तो है, लेकिन सच्ची।
जब रामायण में कैकेयी के राजा दशरथ के साथ मिल कर इंद्र की तरफ से असुरों से युद्ध करने की बातें हमें पता चलती है तो किसी पुरातात्विक प्रमाण के बिना किसी को ये समझा नहीं पाते। लेकिन, जब प्रमाण चीख-चीख कर कहता है कि 5000 वर्ष पूर्व महिलाएँ खतरनाक हथियारों को चलाने में पारंगत थीं, तो हमें मानना होगा कि 1 लाख वर्ष पूर्व के लिखित इतिहास के प्रमाण भी कहीं न कहीं मौजूद हैं, भविष्य में निकलेंगे, या नहीं भी।
सिनौली अकेला नहीं है। भारत में ऐसी सैकड़ों स्थान मिल सकते हैं, बशर्ते सरकार और ASI ध्यान दे। अब तक वामपंथियों के हाथ में रही इस संस्था को अब ज़रूरत है उस इतिहास को खँगालने की, जिसे हमसे अब तक छिपाया गया। राजा सुहेलदेव के बारे में बोलते समय खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाल ही में इसका जिक्र कर चुके हैं। माहौल अनुकूल है, इसीलिए इस्लामी आक्रांताओं के गुणगान की जगह हमें अपने इतिहास पर फोकस रखना होगा।
जब आप ‘Secrets of Sinauli’ देखेंगे तो पाएँगे कि इतिहासकारों के मन में भी कहीं न कहीं ये व्यथा है। एक इतिहासकार ने उन पर सवाल उठाया, जो कहते हैं यहाँ घोड़े नहीं थे। उन्होंने मजाक में ऐसे ही एक व्यक्ति से कह दिया कि तब ज़रूर ये रथ खच्चर चलाते रहे होंगे। इसी तरह एक इतिहासकार ने वेदों से उद्धरण लेकर समझाया कि कैसे सिनौली के लोगों की अंतिम संस्कार की प्रतिया ऋग्वेद के रीति-रिवाजों से मिलती है।
आखिर वो सिनौली के कौन लोग थे जो कला और युद्ध, दोनों में ही इतने दक्ष थे कि विश्व की उस समय की तमाम सभ्यताएँ उनके सामने नहीं टिकतीं। वामपंथी इतिहासकार तो ये कह कर भी चीजों को ख़ारिज करते रहे हैं कि अरे तलवार मिला है तो उनका उपयोग सब्जी काटने के लिए होता होगा। भाला मिला है तो जानवर मारते होंगे। रथ मिला है तो कढ़ाई-कलाकारी के लिए उससे खेलते होंगे। चीजों को नकारने के हजार कारण बन जाते हैं उनके पास।
लेकिन, जब ऋग्वैदिक श्लोकों के हिसाब से जीवन हड़प्पा में भी चलता मिले, और उसके बाद भी, तो मानिए कि उससे पूर्व भी वेद थे। जिस सिनौली के बारे में मैं बात कर रहा हूँ, वहाँ के लोगों ने अपने पूर्वजों से ये भी सुना है कि ये वो 5 गाँवों में शामिल है, जिनकी माँग श्रीकृष्ण ने दुर्योधन के समक्ष रखी थी – पांडवों के लिए। एक इतिहासकार ने कह दिया कि रथ अगर पुराना मिला है तो आर्य ईरान से और पहले आए होंगे। अगर 10 हजार वर्ष पूर्व का मिल जाए तो ये कहेंगे ईरान वाले और पहले आए होंगे।
क्यों? हमारे पूर्वज ये सब नहीं बना सकते थे? ये चीजें भी तो ग्रामीणों को गलती से मिल गईं तो पता चल गया। किसी इतिहासकार ने हमारे प्राचीन साहित्यों के भूगोल के हिसाब से खुदाई ही नहीं की कि और प्रमाण मिले। विकिपीडिया सहित अन्य स्रोतों पर विशेषज्ञों के हवाले से बताया गया है कि महाभारत 300 ईश्वी में लिखा गया। जब पूछा जाता है कि पाणिनि (500-600 BCE इतिहासकारों के हिसाब से) ने फिर कैसे इसका जिक्र कर दिया, फिर ये कहते हैं उस समय कोई दूसरा महाभारत रहा होगा।
ये सत्य है कि हमारे साहित्य में नैरेटर के भीतर नैरेटर, उसके भीतर फिर नैरेटर की परंपरा रही है, जिसे आप ‘Embedded/Nested Narrativ’ कह सकते हैं। नैमिषारण्य में हजारों ऋषियों का निवास था और एक के मुँह से निकला इतिहास 10वें तक पहुँचते हुए थोड़ा तो बदलेगा, वो भी तब जब हजारों वर्षों तक ये प्रक्रिया चली हो। ‘Secrets of Sinauli’ भारत में अपनी तरह का पहला प्रयास है, आगे बढ़ाने लायक है।