महाराजा सूरजमल जाट की वीरता की गाथाएँ न सिर्फ राजस्थान के भरतपुर, बल्कि उस समय मुगलों के गढ़ रहे दिल्ली और आगरा तक फैली हुई हैं। 13 फरवरी, 1707 के जन्मे महाराजा सूरजमल जाट ने दिल्ली और आगरा से लेकर अलीगढ़, भरतपुर, बुलंदशहर, धौलपुर फरीदाबाद, हाथरस, मथुरा, मेवात, मुजफ्फरनगर मेरठ और पलवल जैसे जिलों को इस्लामी आक्रांताओं से मुक्त कराया। उन्हें भारत का प्लेटो (प्राचीन यूनानी दार्शनिक) और जाट समुदाय का ओडीसियस (प्राचीन ग्रीक राजा और होमर की पुस्तक ‘इलियद’ का किरदार) भी कहा जाता है।
18वीं शताब्दी के भारत निर्माताओं में शामिल महाराजा सूरजमल जाट का जन्म ऐसे समय में हुआ था, जब अफगान अहमदशाह अब्दाली और ईरान से आए नादिर शाह जैसे आक्रांताओं ने हजारों हिन्दुओं का कत्लेआम मचाया, गायों का नरसंहार किया और मंदिरों-तीर्थस्थलों को ध्वस्त किया। मुग़ल आक्रांता कमजोर हो चुके थे, ऐसे में जिसे मन वो आकर भारत को लूट कर चला जा रहा था। राजपूत और मराठा शक्तिशाली जरूर थे, लेकिन एकता न होने के कारण देश बेचैन था।
ऐसे में वो महाराजा सूरजमल जाट ही थे, जिनके कारण बृजभूमि में फिर से हरी फसलें लहलहाईं और बलूचों-अफगानों को नंगे पाँव भारत से भागना पड़ा। हम जानते हैं कि गंगा यमुना के बीच का क्षेत्र इस्लामी आक्रांताओं से सबसे ज्यादा पीड़ित रहा। किसानों से इतना कर वसूला जाता था कि कई तो जंगल भाग गए। ऐसे में दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में बसे जाटों ने अपनी लड़ाकू प्रवृत्ति जारी रखी और इस्लामी आक्रांताओं से संघर्ष करते रहे। शाहजहाँ ने भी अपने समय में मुर्शिद कुली खान को जाटों को कुचलने की जिम्मेदारी दी थी।
मथुरा में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के मेले में हिन्दुओं के छद्म वेश में पहुँचे उस नीच ने वहाँ की स्त्रियों को पकड़-पकड़ कर अपनी फ़ौज के हवाले कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप हिन्दुओं में उसके प्रति भारी आक्रोश का जन्म हुआ और आखिरकार संभल के नजदीक जाटवाड़ में जाटों ने उसका संहार कर दिया। फिर शाहजहाँ ने महाराजा जयसिंह को ये जिम्मेदारी देकर हिन्दुओं को हिन्दुओं से लड़वाया। 18वीं शताब्दी की शुरुआत में जाट योद्धा गोकुला ने अपने समाज को एक किया।
उन्होंने औरंगजेब के अत्याचारों से तंग आकर हिन्दू समाज को मुगलों को कर न देने की सलाह दी। मुग़ल सेनापति अब्दुल नबी खान को उनके पीछे लगाया गया, लेकिन उसका भी सफाया हो गया। औरंगजेब ने जाटों को घेर लिया, जिस कारण उनकी स्त्रियों को जौहर करने को मजबूर होना पड़ा। आगरा में गोकुला को हथकड़ियों में जकड़ कर पेश किया गया और जान बचाने की एवज में इस्लाम अपनाने की सलाह दी। उस योद्धा ने ऐसा करने से इनकार कर दिया, जिसके बाद उनके एक-एक अंग काट-काट कर फेंक दिए गए।
ब्रजराज और उनके भतीजे राजाराम ने जाटों को फिर से संगठित किया। ब्रजराज की भी हत्या कर दी गई। हालाँकि, राजराम ने संघर्ष जारी रखा। औरंगजेब ने शफी खान को जाटों के दमन के लिए भेजा, लेकिन राजाराम ने आगरा पर ही चढ़ाई कर दी और अपने पोते बेदार बख्त को एक बड़ी फ़ौज के साथ भेजा, लेकिन राजाराम ने आगरा में अकबर की कब्र खोद कर उसकी हड्डियाँ जला डालीं और अपनी वीरता का प्रदर्शन किया। मुगलों को उन्होंने जम कर लूटा। राजाराम के बाद चूड़ामन जाटों के नेता बने।
सूरजमल जाट ने अपनी कुशल रणनीतिक क्षमता का परिचय देते हुए मराठों के साथ समझौता किया। अहमदशाह अब्दाली ने कैसे जाटों का नरसंहार किया था और उनकी चौकियों को ध्वस्त किया था, ये उन्हें याद था। ,मजबूत कद-काठी के रणबाँकुड़े सूरजमल जाट अक्सर लड़ाई के लिए हाथियों का सही इस्तेमाल करते थे। मुग़ल सरदार नजीबुद्दौला के साथ लड़ाई में उनकी मृत्यु हो गई थी। लेकिन, उनके सिखाए अनुशासन का परिणाम था कि इस खबर के फैलने के बावजूद जाट अंत तक लड़ते रहे और मुस्लिम फ़ौज को खदेड़ दिया।
सूरजमल जाट की शक्ति को नियंत्रित करने के लिए ही अहमदशाह अब्दाली भारत आया था और उसी गुस्से में उसने हिन्दुओं की लाशों की मीनारें बनवाई थीं और मथुरा व इसके आसपास के इलाकों में लूटपाट मचाई थी। महाराजा सूरजमल जाट ने सन् 1733 में भरतपुर से अपना साम्राज्य विस्तार शुरू किया था। उनकी मृत्यु के बाद भी मुग़ल भयभीत थे और नजीबुद्दौला ने कई लोगों को बुला कर उनके शव की पहचान कराई थी, जिसके बाद वो निश्चित हुआ कि ये महाराजा सूरजमल जाट ही हैं।
उस समय पानीपत के युद्ध में अहमदशाह अब्दाली की जीत और मराठों की हार के पीछे एक बड़ा कारण ये भी था कि मराठे महाराजा सूरजमल जाट की सहायता लेने और उनकी शक्ति को समझने में नाकाम रहे। उन्होंने इस युद्ध के बाद इलाके के सबसे अमीर शहर आगरा पर कब्जे की योजना बनाई। 12 जून, 1761 को वो ऐसा करने में सफल रहे। फिर उन्होंने हरियाणा की तरफ अपना ध्यान बढ़ाया। नजीबुद्दौला रोहिल्ला सेना का सरदार था। महाराजा सूरजमल जाट के गाजियाबाद पहुँचने की सूचना से वो क्रोधित हो गया।
लेकिन, नजीबुद्दौला इतना डरा हुआ था कि उसने बार-बार सूरजमल को मनाने की कोशिश की और उनके लिए महँगे उपहार तक भेजे, लेकिन सभी को वापस कर दिया गया और उसका कोई फायदा नहीं हुआ। बलूचों को अपने साथ मिला कर नजुबुद्दौला ने यमुना पार किया और हिंडन के नजदीक डेरा डाला। सूरजमल ने 25,000 की सेना के साथ प्रस्थान किया। बीच में हुए सभी छोटे-मोटे युद्धों में जाटों ने अपनी वीरता का प्रदर्शन किया। महाराजा सूरजमल ने जनुबुद्दौला को तीन तरफ से घेरने की कोशिश की।
इसी दौरान कुछ इस्लामी सैनिक घात लगा कर बैठे हुए थे और उन्होंने महाराजा सूरजमल जाट की हत्या कर दी। उनकी मृत्यु को लेकर इतिहासकारों की अलग-अलग राय है। कहा जाता है कि दोनों तरफ से घात लगाए रोहिल्लों ने उनकी हत्या की थी। कला-साहित्य के संरक्षक रहे सूरजमल ने कई कवियों को अपने दरबार में शरण दी। मथुरा के सूदन उनके पसंदीदा कवि थे। उन्होंने गोवर्धन, मधुरा और वृन्दावन में कई मंदिर और तालाब बनवाए। उन्होंने कई किले भी बनवाए।
वो एक कुशल योद्धा भी थे। उन्होंने कभी बिना सोचे-समझे और बिना योजना के कोई हमला नहीं किया। अहमद शाह अब्दाली जब चौथी बार भारत को लूटने आया था तब उसने महाराजा सूरजमल जाट से भी समर्पण करने को कहा था। इसके बदले भेजे गए पत्र में खुद को रेगिस्तान का शासक बताते हुए सूरजमल ने पूछा था कि इतना बड़ा राजा अब एक गरीब इलाके के शासक से लड़ेगा? उन्होंने कहा था कि उनके साथियों का सम्मान उन्हें इसकी अनुमति नहीं देता कि वो समर्पण करें।