Sunday, November 17, 2024
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कहीं दुःखी न हो जाएँ लॉर्ड माउंटबेटन, इसीलिए नेहरू ने नहीं उतारा था अंग्रेजों का झंडा: गाँधी ने ‘अशोक चक्र’ को सलामी देने से कर दिया था इनकार

महात्मा गाँधी ने कहा था, "हम लॉर्ड माउंटबेटन को अपने मुख्य द्वारपाल के रूप में रख रहे हैं। इतने लंबे समय तक वह ब्रिटिश राजा के सेवक रहे हैं। अब, उन्हें हमारा सेवक बनना है। यदि हम उन्हें अपने सेवक के रूप में नियुक्त करते हैं तो हमारे झंडे के एक कोने में यूनियन जैक भी होना चाहिए। इससे भारत के साथ विश्वासघात नहीं होता।"

जो ब्रिटिश राज़ भारत में लाखों लोगों की मौत का कारण बना, स्वतंत्रता मिलने के बाद जवाहरलाल नेहरू उसी के झंडे को उतारने के खिलाफ थे। यही नहीं, मोहनदास करमचंद गाँधी का मानना था कि देश के झंडे में ‘यूनियन जैक’ (अंग्रेजी साम्राज्य का राष्ट्रीय ध्वज) भी होना चाहिए।

दरअसल, देश की आजादी के बाद पहली बार तिरंगा लाल किले में नहीं फहराया गया था। देश के पहले प्रधानमंत्री बने नेहरू ने इंडिया गेट के पास प्रिंसेस पार्क में पहली बार तिरंगा फहराया गया था। भारत की आजादी के दिन, यानी 15 अगस्त 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन अंतिम गवर्नर जनरल के रूप में शपथ लेने के बाद प्रिन्सेस पार्क में आयोजित मुख्य समारोह में पहुँचा था।

प्रिंसेस पार्क में आयोजित कार्यक्रम में यह तय किया गया था कि प्रधानमंत्री नेहरू अंग्रेजी सरकार के झंडे ‘यूनियन जैक’ को उतारेंगे और फिर तिरंगा फहराया जाएगा। हालाँकि, इससे पहले ही लॉर्ड माउंटबेटन ने नेहरू से कहा कि वह चाहता है कि यूनियन जैक को न उतारा जाए, क्योंकि इससे वह दुःखी हो सकता है। इसके बाद नेहरू ने माउंटबेटन की बात मान ली और यूनियन जैक को बिना उतारे ही तिरंगा फहराया गया।

इस बारे में जब नेहरू से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वह देश की आजादी के बाद सभी को खुश देखना चाहते है, इसलिए यदि वह यूनियन जैक को नीचे उतारते या हटाते हैं तो इससे किसी ब्रिटिश (माउंटबेटन) की भावना आहत होती है। इसलिए, उन्होंने यूनियन जैक को नहीं उतारा।

माउंटबेटन की पत्नी और नेहरू

नेहरू और लॉर्ड माउंटबेटन की पत्नी एडविना माउंटबेटन के संबंधों को लेकर हमेशा ही चर्चा होती रहती है। कई लोगों की लिखी किताबों और उपलब्ध दस्तावेजों से यह जानकारी सामने आती है कि नेहरू और एडविना के बीच जो रिश्ता था, वह किसी अधिकारिक जान-पहचान से कहीं अधिक था।

एडविना की बेटी पामेला हिक्स भी नेहरू से खास प्रभावित थीं और उन्होंने यह बात अपनी किताब ‘डॉटर ऑफ एम्पायर’ में बताई है। उन्होंने बीबीसी से बात करते हुए बताया था कि उनकी माँ एडविना और नेहरू एक दूसरे से बहुत प्यार करते थे। पामेला का यह भी कहना था, “वह पंडितजी (नेहरू) में साहचर्य और समझ को देखतीं हैं, जिसके लिए वह तरसती थीं। दोनों ने एक-दूसरे के अकेलेपन को दूर करने में मदद की।”

नेहरू और लेडी माउंटबेटन के बीच संबंध इतने गहरे थे कि भारत की आजादी के बाद भी नेहरू और एडविना की मुलाकात होती रहती थी। जवाहरलाल नेहरू जब भी लंदन जाते, एडविना के साथ कुछ दिन जरूर बिताते थे। इसकी पुष्टि लंदन में तत्कालीन भारतीय उच्चायोग में काम करने वाले खुशवंत सिंह ने अपनी आत्मकथा ‘ट्रुथ, लव एण्ड लिटिल मेलिस’ मे की है।

यही नहीं, मोहनदास करमचंद गाँधी भी भारतीय तिरंगे झंडे में अशोक चक्र का उपयोग किए जाने से खुश नहीं थे। महात्मा गाँधी दो कारणों से तिरंगे की डिजाइन से नाखुश नहीं थे। पहला, तिरंगे में यूनियन जैक का न होना और दूसरा चरखे की जगह अशोक चक्र का उपयोग किया जाना। ‘द कलेक्टेड वर्कर्स ऑफ महात्मा गाँधी‘ के अनुसार, गाँधी जी ने एक पत्र में भारत के अंतिम गवर्नर जनरल माउंटबेटन द्वारा प्रस्तावित झंडे का समर्थन किया था, जिसमें कॉन्ग्रेस के झंडे के साथ यूनियन जैक भी था।

महात्मा गाँधी जी ने अपने पत्र में यूनियन जैक को भारत के राष्ट्रीय ध्वज में शामिल करने के तर्क देते हुए कहा था, “अपनी इच्छा से भारत छोड़ने’ वाले अंग्रेजों ने भले ही भारतीयों को नुकसान पहुँचाया हो, लेकिन यह सब उनके झंडे ने नहीं किया है।”

लॉर्ड माउंटबेटन द्वारा प्रस्तावित भारतीय ध्वज

उन्होंने भारत के राष्ट्रीय ध्वज में यूनियन जैक को शामिल न किए जाने पर निराशा व्यक्त करते हुए कहा था, “यूनियन जैक को हमारे झंडे के एक कोने में रखने में क्या गलत है? अंग्रेजों ने हमारा नुकसान किया है, लेकिन उनके झंडे ने नहीं किया है। हमें अंग्रेजों के गुणों का भी ध्यान रखना चाहिए। वे हमारे हाथों में सत्ता छोड़कर स्वेच्छा से भारत से जा रहे हैं।”

महात्मा गाँधी ने कहा था, ‘यूनियन जैक ने हमारा कुछ नहीं बिगाड़ा’

महात्मा गाँधी ने आगे कहा था, “हम लॉर्ड माउंटबेटन को अपने मुख्य द्वारपाल के रूप में रख रहे हैं। इतने लंबे समय तक वह ब्रिटिश राजा के सेवक रहे हैं। अब, उन्हें हमारा सेवक बनना है। यदि हम उन्हें अपने सेवक के रूप में नियुक्त करते हैं तो हमारे झंडे के एक कोने में यूनियन जैक भी होना चाहिए। इससे भारत के साथ विश्वासघात नहीं होता।”

गाँधी ने कहा कि वह ‘तिरंगे’ को सलामी नहीं देंगे

मोहनदास गाँधी जी ने इस बात को बार-बार दोहराया था कि जिस झंडे को कॉन्ग्रेस पार्टी ने से 1931 में अपनाया था, उसी झंडे को भारतीय ध्वज होना चाहिए। कॉन्ग्रेस का झंडा भारतीय राष्ट्रीय ध्वज के समान ही था, लेकिन उसमें अशोक चक्र की जगह चरखा बना हुआ था। गाँधी चाहते थे कि यूनियन जैक के साथ स्वतंत्र भारत भी उसी झंडे को अपनाए। इसलिए, जब चरखे की जगह अशोक चक्र के उपयोग किए जाने का प्रस्ताव रखा गया तो वह इतने दुखी हुए कि उन्होंने घोषणा कर दी कि वे झंडे को सलामी नहीं देंगे।

‘यूनियन जैक’ को लेकर गाँधी के विचार

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आकाश शर्मा 'नयन'
आकाश शर्मा 'नयन'
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