इतिहास में कुछ व्यक्ति अच्छे होते हैं, तो कुछ बुरे होते हैं। कुछ ऐसे होते हैं, जिनकी अच्छे-बुराई पर बहस चलती रहती है। जबकि कुछ ऐसे होते हैं, जिसने हजारों-लाखों निर्दोषों का खून बहाया हो। औरंगजेब ऐसे ही लोगों में से एक था, जिसका मकसद था पूरे हिंदुस्तान पर इस्लामी शासन। हिन्दुओं के इस हत्यारे का आज इस्लामी कट्टरपंथी गुणगान करते नहीं थक रहे। क्या इसके पीछे उनकी ‘गज़वा-ए-हिन्द’ वाली सोच है? आइए, समझाते हैं ये होता क्या है।
असल में ‘गज़वा-ए-हिन्द’ का अर्थ है, पूरे भारतीय उप-महाद्वीप में इस्लाम का शासन। इसमें भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका, बांग्लादेश और भूटान – ये सभी आते हैं। हालाँकि, अभी तक किसी ऐसा इस्लामी शासक नहीं हुआ जिसका इस पूरे क्षेत्र पर एक साथ शासन रहा हो। इस्लाम के शुरुआती दौर में तो दिल्ली से विंध्य तक ही उनका ‘हिंदुस्तान’ था। खुद औरंगजेब दक्कन-दक्कन करते-करते बुढ़ापे में दाढ़ी नोचते हुए किसी तंबू में मर गया।
आज भी कट्टरपंथी मुस्लिमों के मन में चलता रहता है ‘गज़वा-ए-हिन्द’
‘गज़वा-ए-हिन्द’ का अर्थ है मुस्लिम फ़ौज द्वारा हमला कर के भारत को ‘दारुल इस्लाम’ बनाना। ये ‘जिहाद’ का ही एक हिस्सा है। वही ‘जिहाद’, जिसके नाम पर अलकायदा ने अमेरिका में तबाही मचाई थी। वही ‘जिहाद’, जिसका नाम लेकर जम्मू कश्मीर और पाकिस्तान में कई आतंकी संगठन उठ खड़े हुए। वही ‘जिहाद’, जिसके नाम पर सीरिया में ISIS, नाइजीरिया में ‘बोको हराम’ और अफगानिस्तान में तालिबान निर्दोषों का खून बहाता है।
जवाब में कोई कह सकता है कि ये सब पुरानी बातें हैं और अब ऐसा कुछ नहीं रहा, लेकिन सच्चाई ये है कि पूरे भारत पर मुस्लिमों के कब्जे का सपना अधूरा ही रहा है और आज भी इसकी बात की जाती है। इस्लामी कट्टरपंथियों द्वारा ही खूब की जाती है। क्रिकेट के इतिहास में सबसे तेज़ गेंद फेंकने का रिकॉर्ड बनाने वाले शोएब अख्तर ने चर्चा की थी कि कैसे इस्लाम की पुस्तकों में ‘गजवा-ए-हिन्द’ के बारे में लिखा है और अटैक की नदी दो बार खून से लाल होगी। उन्होंने कहा था कि हमारी फ़ौज कश्मीर फतह कर के आगे बढ़ेगी।
सितंबर 2021 में अलकायदा ने अफगानिस्तान पर कब्ज़ा करने वाले तालिबान से कहा कि वो अब कश्मीर को भारत से ‘आज़ाद’ कराए। इसे भी ग़ज़वा-ए-हिन्द के एक रूप में ही देखा जाना चाहिए। ‘गज़वा’ का क्या अर्थ हुआ? इसका मतलब है युद्ध अथवा जंग। लेकिन, ये अलग है। इस अरबी शब्द का मतलब है ऐसा युद्ध जो किसी वस्तु वगैरह या साम्राज्य विस्तार और जमीन के लिए नहीं हो रहा हो। ये वो युद्ध है, जो मज़हब के लिए है।
‘गज़वा-ए-हिन्द’ की उत्पत्ति कहाँ से हुई? ऐसा नहीं है कि अलकायदा या शोएब अख्तर जैसों से इसका अविष्कार कर दिया, बल्कि इस्लाम की शुरुआत में ही इसका जिक्र मिलता है। ‘हदीस’ में इसके बारे में बताया गया है। अब ‘हदीस’ क्या है? ‘हदीस’ इस्लाम के संस्थापक पैगंबर मुहम्मद द्वारा कही गई बातों और उनके द्वारा किए गए कार्यों का संकलन है, जिसे सुन-देख कर लिखा गया बताया जाता है। मुहम्मद ने क्या-क्या किया और क्या-क्या कहा, ‘हदीस’ में वही सब है।
पैगंबर मुहम्मद ने भारत की तबाही को लेकर क्या-क्या कहा था, ‘हदीस’ में लिखा है
कुरान के बाद अगर मुस्लिमों के लिए कोई साहित्य सबसे ज्यादा मायने रखता है, तो वो ‘हदीस’ ही है। हालाँकि, कई मुस्लिम ‘विद्वानों’ और संगठनों का ये भी कहना है कि ‘गज़वा-ए-हिन्द’ का गलत मतलब निकाला गया है। ‘हदीस’ की मानें तो पैगंबर मुहम्मद ने कहा था, “मेरे उम्माह में से दो समूहों को अल्लाह ने जहन्नुम की आग से बचा लिया है। एक वो है जो भारत पर आक्रमण करेगा, जबकि दूसरा वो है जो ईसा इब्न मरयम के साथ रहेगा।”
बता दें कि ‘उम्माह’ का मतलब होगा है समुदाय। जैसे इस्लामी मुल्क आपस में मिल कर ‘उम्माह’ कहलाते हैं। इसी तरह ईसा बिन मरयम इस्लाम में जीसस क्राइस्ट को ही कहा जाता है। ‘हदीस’ में एक अन्य जगह लिखा है, ‘अल्लाह के पैगंबर ने वादा किया है कि हमलोग भारत पर आक्रमण करेंगे। अगर मैं तब तक जीवित रहा तो मैं इसके लिए अपनी सारी संपत्ति सहित खुद को भी कुर्बान कर दूँगा। अगर मैं मारा गया तो मुझे शहीदों में उच्च दर्जा मिलेगा, फिर मैं वापस आकर अबू हुरैया अल मुहर्रर (जहन्नुम की आग से मुक्त) कहलाऊँगा।’
‘हदीस’ में एक अन्य जगह भी ‘उम्माह’ का जिक्र करते हुए लिखा है कि सिंध और हिन्द की तरफ फौज को भेजा जाएगा। एक अन्य जगह पैगंबर मुहम्मद का वक्तव्य है, “तुमलोगों में से एक समूह भारत को फतह करेगा। जब तक वो लोग भारत के राजाओं को जंजीरों से बाँध कर लाएँगे, अल्लाह उनका साथ देगा। अल्लाह उन योद्धाओं को माफ़ी देगा। जब वो भारत से वापस लौटेंगे तो सीरिया में इसा इब्न मरयम को पाएँगे।” अर्थात, इस्लाम का शुरुआत से ही सपना रहा है भारत के शासकों को जंजीरों में बाँधना।
‘हदीस’ में ही पैगंबर मुहम्मद का इसी से सम्बंधित एक अन्य उद्धरण है, “येरुशलम का राजा योद्धाओं को हिन्दुओं की तरफ कूच करने का आदेश देगा। ये योद्धा हिन्द की सरजमीं को तबाह कर देंगे। वहाँ के सारे खजाने को जब्त कर के लाएँगे, जिसका इस्तेमाल येरुशलम को सजाने के लिए किया जाएगा। राजा के आदेश से ये योद्धा पूर्व से पश्चिम तक सारे क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लेंगे, और ‘दज्जाल’ (क़यामत से पहले आने वाला झूठा मसीहा) के आने तक वहीं रहेंगे।”
औरंगज़ेब का गुणगान करने वाले भी इसी सोच को लेकर चल रहे
औरंगज़ेब पूरे हिंदुस्तान पर कब्जा कर के इस्लामी शासन के अंतर्गत लाना चाहता था, भले ही इसके लिए उसे कितने ही हिन्दुओं का खून क्यों न बहाना पड़े। औरंगज़ेब के बारे में कहा जाता है कि वो इस्लाम के सारे क्रियाकलापों का पालन करता था और उसने कुरान और हदीस पढ़ रखा था। स्पष्ट है, हदीस में उसने ‘भारत की तबाही’ के बारे में भी पढ़ा होगा और इस पर वो उतारू भी था। हालाँकि, जाट, मराठा, अहोम, सतनामी और सिख समुदाय ने इस दौरान हिंदुत्व की बागडोर सँभाले रखी और औरंगज़ेब से युद्ध करते रहे।
औरंगज़ेब के शासनकाल के अंतिम 26 साल दक्कन में युद्ध लड़ते-लड़ते ही बीते, जिसमें हर साल एक लाख से भी अधिक लोगों की मौत हुई। सूखे और प्लेग से जूझते भारत में उस समय औरंगजेब के खजाने की भी खस्ता हालत थी, यही कारण है कि उसके बाद मुग़ल कंगाल ही होते चले गए। 90 साल के औरंगज़ेब को चीजें ठीक से समझ भी नहीं आती थीं। वो अपने बेटे से पागलों की तरह ‘अकेला आने, अकेला जाने’ और ‘मुझे नहीं पता मैं कौन हूँ, क्या कर रहा हूँ’ जैसी बातें बड़बड़ा रहा था।
हाल ही तीन ख़बरें गौर करने लायक है। पहली, AIMIM अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी के भाई अकबरुद्दीन ओवैसी महाराष्ट्र के औरंगाबाद में मुगल बादशाह औरंगजेब की कब्र पर चादर चढ़ाने गए। दूसरा, श्रीनगर के मेयर जुनैद अजीम मट्टू ने लिखा, “हाफिज-ए-कुरान, शहंशाह हजरत मुही-उद-दीन मुहम्मद औरंगजेब और उनकी कब्र पर अल्लाह की रहमो करम हो।” तीसरा, कॉन्ग्रेस ने दावा किया कि काशी विश्वनाथ मंदिर को औरंगज़ेब ने नष्ट नहीं किया था।
पाकिस्तान भी ‘गज़वा-ए-हिन्द’ वाली सोच से ही चलता है। वहाँ का इस्लामी विशेषज्ञ सैयद जैद जमान हामिद कई बार इसका जिक्र कर चुका है और कहता है कि भारत ‘गजवा-ए-हिन्द’ से डरता है। वहाँ के मंत्री अली मुहम्मद खान ने संसद में इसका जिक्र किया। अब आखिर भारत के ही इस्लामी कट्टरपंथी उस औरंगजेब की आलोचना क्यों करें, जिसने ‘गज़वा-ए-हिन्द’ के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया? वो तो उनके लिए सम्मान का पात्र रहेगा ही। औरंगज़ेब जहाँ भी जीतता था, सबसे पहले वहाँ के मंदिर ध्वस्त किए जाते थे और इस्लाम न अपनाने वाले हिन्दुओं को बेरहमी से मार डाला जाता था।
They like nothing better than having Hindus beseech Courts for decades to get one or two sites back. They laugh because if tables were turned and Muslims were in majority, they’d massacre Hindus again and occupy whatever sites they wanted. This is why Babri is such a tragedy.
— Sankrant Sanu सानु संक्रान्त ਸੰਕ੍ਰਾਂਤ ਸਾਨੁ (@sankrant) May 17, 2022
औरंगजेब ने कैसे सिख गुरु तेग बहादुर की बेरहमी से हत्या करवाई और भाई मति दास के शरीर को बीच से चीर डाला गया, ये सब जानने के बावजूद आज ओवैसी और जुनैद जैसे लोग औरंगजेब को मसीहा बता रहे हैं, टीवी डिबेट में इस्लामी विशेषज्ञ उसे अपने बुजुर्ग बताते हुए उस पर फख्र जता रहे हैं तो इसका कारण है कि उसने ‘गज़वा-ए-हिन्द’ के लिए काम किया। ये तो उसका गुणगान ही करेंगे, क्योंकि ये उसी विचारधारा की उपज हैं।
इनका साथ देने के लिए ‘The Print’ जैसे मीडिया संस्थान मौजूद हैं, जो एक लंबे-चौड़े लेख में पूरे भारत के इस्लामी शासन के अंतर्गत आने के इतिहास का जिक्र करते हुए कहता है कि हिन्दुओं को ‘गजवा-ए-हिन्द’ से डरने की जरूरत नहीं है। उसने लिख दिया कि ‘हिन्द’ का आशय हदीथ में भारत है ही नहीं। फिर सिंध के साथ इसका नाम क्यों लिया जाता? जब ये सब इतिहास है, तो अभी तक दज्जाल और ईसा धरती पर उतरे ही कहाँ हैं? कश्मीर में तो अलकायदा की यूनिट का नाम ही है – ‘अंसार गजवातुल हिन्द’। हिन्दू भले क्यों न इससे लड़ने के लिए तैयार रहे? क्यों न चर्चा करे?