Sunday, November 17, 2024
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नेहरू ने राष्ट्रपति डॉ प्रसाद को सरदार पटेल के अंतिम संस्कार में जाने से रोका था, बेटी से थैले भर रुपए ले लिए पर हाल तक न पूछा

नेहरू मंत्रिमंडल में कृषि मंत्री रहे केएम मुंशी लिखते हैं, "जब बॉम्बे में सरदार पटेल का निधन हुआ, तब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने मंत्रियों और सचिवों के लिए दिशानिर्देश जारी किया कि वो अंतिम संस्कार में भाग लेने बॉम्बे न जाएँ।"

कॉन्ग्रेस पार्टी में शुरू से एक परंपरा रही है कि वो अपने वरिष्ठ नेताओं को भूल जाते हैं, या फिर निधन के बाद उनका अपमान किया जाता है। बस वो नेता नेहरू-गाँधी परिवार का नहीं होना चाहिए। अपने दादा फिरोज गाँधी को राहुल और प्रियंका याद तक नहीं करते। उनकी कब्र धूल फाँक रही है। पूर्व प्रधानमंत्री नरसिंहा राव के शव के लिए कॉन्ग्रेस का दिल्ली दफ्तर नहीं खुला। हाल ही में पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के साथ दूरी बना ली गई। यहाँ तक कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को सलाह दी थी कि वो सरदार वल्लभभाई पटेल के अंतिम संस्कार में न जाएँ।

देश के प्रथम उप-प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल हों या दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री, आज मोदी सरकार में कॉन्ग्रेस के साथ आजीवन जुड़े रहे इन नेताओं को कॉन्ग्रेस सरकारों से ज्यादा सम्मान व प्राथमिकता मिल रही है। उन्हें याद किया जाता है। उनके सम्मान में फ़िल्में बन रही हैं, पुस्तकें लिखी जा रही है, प्रतिमाओं का अनावरण हो रहा है और सबसे महत्वपूर्ण कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इनकी शिक्षाओं की बात करते हैं और अपने सम्बोधनों के जरिए जनता तक इनका संदेश पहुँचाते हैं।

वो 15 दिसंबर, 1950 का दिन था। देश के गृह मंत्री सरदार पटेल के निधन की खबर जंगल में आग की तरह देश भर में फैली और लोगों की ऑंखें नम हो गईं। वो बीमार चल रहे थे, लेकिन देश के लिए उनकी सक्रियता वैसी ही थी। भारत के ‘लौह पुरुष’, जिन्होंने पूरे देश को एकता के सूत्र में पिरोया और आज़ादी के बाद एकीकरण का सबसे कठिन काम अपने हाथों में लेकर पूरा किया। वो नेता, कश्मीर और तिब्बत पर जिनकी बात मानी जाती तो आज भारत ज्यादा शांत और सुरक्षित होता।

सरदार पटेल ने 565 राज्यों को मिला कर जिस गणतंत्र को बना, उसे ही भारतीय गणराज्य के नाम से जाना जाता है। निधन से पहले उन्हें डॉक्टर से लेकर उनके करीबी तक आराम की सलाह दे रहे थे, लेकिन वो काम करते रहे। करीबियों की जिद पर वो 12 दिसंबर, 1950 को स्वास्थ्य लाभ के लिए मुंबई के बिरला हाउस आए। यहीं हार्ट अटक के कारण उनका निधन हुआ। कहते हैं, कई लोगों को तभी इसका पूर्वाभास हो गया था कि शायद अब सरदार पटेल से मिलना न हो पाए।

सरदार पटेल ने वेलिंग्टन हवाई अड्डा (अब सफदरगंज एयरपोर्ट) से मुंबई के लिए उड़ान भरी थी। उस समय तक उनका शरीर इतना कमजोर हो गया था कि उन्हें व्हील चेयर पर विमान में बिठाना पड़ा था। विदा लेते समय हल्की मुस्कान के साथ उन्होंने लोगों का अभिवादन स्वीकार किया। निधन से पहले जब उन्हें हार अटैक आया तो वहाँ गीता पाठ भी हो रहा था। उन्होंने पानी माँगा तो उन्हें गंगाजल पिलाया गया, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि ये मीठा लग रहा है। निधन के बाद क्या हुआ, इस बारे में कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी ने अपनी पुस्तक ‘Pilgrimage to freedomमें लिखा है

KM मुंशी ने अगर कुछ लिखा है तो इसमें वजन होगा ही, क्योंकि वो साधारण व्यक्ति नहीं थे। इतिहास पर गुजरे, अंग्रेजी और हिंदी में कई पुस्तकें लिख चुके केएम मुंशी को सोमनाथ मंदिर जीर्णोद्धार करने वाले व्यक्ति के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने ‘भारतीय विद्या भवन’ जैसे शैक्षिक संस्थान की स्थापना की और ‘विश्व हिन्दू परिषद (VHP)’ के संस्थापक सदस्यों में से एक रहे। संविधान सभा के सदस्य रहे केएम मुंशी ने बाद में नेहरू सरकार में कृषि मंत्री और फिर उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रहे।

उन्होंने लिखा है, “जब बॉम्बे में सरदार पटेल का निधन हुआ, तब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने अपने मंत्रियों और सचिवों के लिए दिशानिर्देश जारी किया कि वो अंतिम संस्कार में भाग लेने बॉम्बे न जाएँ। उस समय मैं भी केंद्रीय मंत्री था। मैं उस समय महाराष्ट्र के माथेरान में था। एनवी गाडगिल, सत्येंद्र नाथ सिन्हा, और वीपी मेनन ने पीएम नेहरू के दिशानिर्देशों को न मान कर सरदार पटेल के अंतिम संस्कार में हिस्सा लिया। यहाँ तक कि जवाहरलाल नेहरू ने राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद से भी निवेदन किया कि वो बॉम्बे न जाएँ।”

बकौल केएम मुंशी, ये एक विचित्र निवेदन था और डॉक्टर प्रसाद ने इसे नहीं माना। उन्होंने बॉम्बे जाकर सरदार वल्लभभाई पटेल के अंतिम संस्कार में हिस्सा लिया। केएम मुंशी बताते हैं कि उनके अलावा डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद, गोविन्द वल्लभ पंत और चक्रवर्ती राजगोपालचारी ने सरदार पटेल के अंतिम संस्कार में हिस्सा लिया। तारा सिन्हा के कलेक्शन ‘राजेंद्र प्रसाद – पत्रों के आईने में’ में भी इसकी पुष्टि मिलती है। तारा सिन्हा देश के प्रथम राष्ट्रपति की पोती थीं।

ये भी जानने लायक बात है कि 28 फरवरी, 1963 में जब बिहार की राजधानी पटना में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद का निधन हुआ, तब उस समय के लगभग सभी बड़े नेताओं ने उनके अंतिम संस्कार में हिस्सा लिया लेकिन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू नहीं आए थे। इतिहासकार जगदीश चंद्र शर्मा कहते हैं कि नेहरू ने तत्कालीन राष्ट्रपति एस राधाकृष्णन को भी सलाह दी थी कि वो डॉक्टर प्रसाद के अंतिम संस्कार में न जाएँ। जैसा कि अपेक्षित था, राधाकृष्णन ने नेहरू की बातों पर ध्यान नहीं दिया और पटना गए।

इतिहासकार व पत्रकार हिंडोल सेनगुप्ता ने अपनी पुस्तक ‘अखंड भारत के शिल्पकार सरदार पटेल’ में लिखा है कि सरदार पटेल के निधन के कुछ दिनों बात भारत में ‘श्वेत क्रांति’ के जनक कहे जाने वाले गुजरात में डेयरी सहकारी समितियों के संस्थापक वर्गीज कुरियन सरदार पटेल की बेटी मणिबेन से मिले थे। मणिबेन पटेल ने उन्हें बताया था कि पिता के निधन के बाद वो रुपए से भरे एक थैला लेकर प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात करने गई थीं।

ये रुपए लोगों ने कॉन्ग्रेस पार्टी को चंदा में दिया था, इसीलिए वो इन्हें पार्टी को सौंपने गई थीं। इस दौरान नेहरू ने उनसे ये तक नहीं पूछा कि आजकल वो कहाँ रह रही हैं या फिर उनका गुजर-बसर कैसे चल रहा है। नेहरू का मानना था कि अगर राष्ट्रपति एक मंत्री के अंतिम संस्कार में शामिल होते हैं तो इससे एक गलत उदाहरण बनेगा। वो ये भूल गए कि पटेल सिर्फ एक ‘मंत्री’ नहीं थे, एक महान स्वतंत्रता सेनानी और आधुनिक भारत के शिल्पी थे। एक किसान नेता था, जो बाद में पूरे देश का नेता बने।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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