भारत माता के वीर सपूतों से जब-जब चीनी सेना आँख मिलाने की गुश्ताखी करती है, तब-तब उसे अपनी आँखें भारत के सम्मान में झुकानी पड़ती हैं। इतिहास गवाह है कभी भी चीन ने भारत पर सामने से हमला नहीं किया। हमेशा वो कायराना अंदाज ही दिखाता है। 1962 के भारत-चीन युद्ध को देश के इतिहास का सबसे भीषण युद्ध माना जाता है। इस युद्ध में भारत ने कम संसाधनों के बावजूद चीन का सामना किया और कई मोर्चों पर उसके ‘दाँत खट्टे’ किए।
18 नवंबर 2020 को 1962 भारत-चीन युद्ध को पूरे 58 साल हो गए। अदम्य साहस का परिचय देते हुए भारत माता के 124 वीर सपूतों ने रेजांग ला की लड़ाई में 1300 चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतारा था।
युद्ध में भारत ने अपने कई वीर सपूत भी खोए, इनमें से ही एक थे मेजर शैतान सिंह (Major Shaitan Singh)। शैतान सिंह 1962 में महज 37 वर्ष की आयु में देश के लिए वीरगति को प्राप्त हाे गए थे। मेजर शैतान सिंह का जन्म 1 दिसंबर 1924 काे राजस्थान के जोधपुर जिले में हुआ था।
शैतान सिंह के पराक्रम की वजह से जाना जाता है रेजांग ला दर्रे का युद्ध
37 वर्षीय शैतान सिंह के नेतृत्व में 13वीं कुमाऊँनी बटालियन की सी कंपनी ने 16000 फीट ऊँचाई पर स्थित रेजांग ला दर्रे में चीनी सैनिकों का सामना किया था। रेजांग ला दर्रे के युद्ध को मेजर शैतान सिंह के पराक्रम की वजह से जाना जाता है। 123 सैनिकों के साथ शैतान सिंह (कुल 124 भारतीय जाँबाज) अपनी पोस्ट पर सुरक्षा में तैनात थे। तभी करीब 3000 से अधिक चीनी सैनिकों ने शैतान सिंह और उनके साथियों की पोस्ट पर हमला कर दिया। भारत के हर जवान के पास केवल 400 राउंड गोलियाँ थीं और हथगोले भी बेहद कम थे, जबकि चीनी सैनिकों के पास अपार संसाधन थे।
जान की परवाह किए बिना अपने सैनिकों का हौसला बनाए रखा
चीन का तिब्बत पर हमला, फिर कब्जा और दलाई लामा के भारत में शरण लेने के बाद से भारत और चीन के रिश्तों में खटास आ चुकी थी। इसके बाद 1962 में भारत और चीन के बीच जंग छिड़ गई। इस दौरान लद्दाख में 13वीं कुमाऊँनी बटालियन की ‘सी’ कंपनी तैनात थी। मेजर शैतान सिंह की अगुवाई में 123 जवान मोर्चे पर तैनात थे। उस वक्त न तो जवानों के पास चीन का मुकाबला कर सकने लायक हथियार थे और न ही हड्डियों को गला देने वाली ठंड से बचने के लिए कपड़े उपलब्ध थे।
चीन ने 18 नवंबर 1962 की रात लद्दाख में भारतीय चौकी पर हमला बोल दिया था। चीनी सेना ने भारतीय जाँबाजों पर हमला करने के लिए सुबह 3:30 बजे का वक्त चुना। भारतीय जवानों ने रेजांग ला में चीनी सैनिकों का सामना किया। जब मेजर शैतान सिंह को आभास हुआ कि चीन की ओर से बड़ा हमला होने वाला है तो उन्होंने अपने अधिकारियों को रेडियो संदेश भेजा और मदद माँगी। उनसे कहा गया कि अभी किसी तरह की मदद पहुँचा पाना संभव नहीं है। साथ ही उनसे कहा गया कि सभी सैनिकों को लेकर पीछे हट जाओ।
मेजर ने सैनिकों को जान बचाने के लिए चौकी छोड़ने की दी पूरी छूट
मेजर शैतान सिंह ने पीछे नहीं हटने का फैसला लिया। युद्ध के दौरान मेजर शैतान सिंह ने अपनी जान की परवाह किए बिना अपने सैनिकों का हौसला बनाए रखा और गोलियों की बौछार के बीच एक पलटन से दूसरी पलटन जाकर सैनिकों का नेतृत्व किया। इसी दौरान उनको कई गोलियाँ लग गईं। उन्होंने अपने सैनिकों को बुलाकर कहा कि हम 124 हैं और दुश्मनों की संख्या हमसे बहुत ज्यादा हो सकती है। हमें कोई मदद भी नहीं मिल पाएगी।
हमारे पास मौजूद हथियार भी कम पड़ सकते हैं। हो सकता है कि इस लड़ाई में हम सब वीरगति को प्राप्त हो जाएँ। ऐसे में अगर कोई जान बचाना चाहता है तो वो पीछे हटने के लिए आजाद है, लेकिन मैं मरते दम तक मुकाबला करूँगा। कोई भी सैनिक पीछे हटने को तैयार नहीं हुआ। इसके बाद रणनीति तैयार की गई। शैतान सिंह ने कहा कि हमारे पास गोला-बारूद कम है और दुश्मनों की संख्या ज्यादा है। ऐसे में कोशिश करें कि एक भी गोली बर्बाद न होने पाए। हर गोली निशाने पर लगे। साथ ही मारे जाने वाले हर दुश्मन से बंदूक छीन ली जाए।
चीन के सैनिकों ने चली चाल, याक के गले में लालटेन बाँधकर हाँका
रेजांग ला में तैनात मेजर शैतान सिंह के जाबाजों ने सुबह के धुँधलके में देखा कि चीन की तरफ से कुछ हलचल हो रही है। उनकी तरफ रोशनी के कुछ गोले आ रहे थे। मेजर शैतान सिंह ने गोली चलाने का आदेश दे दिया। थोड़ी देर बाद पता चला कि चीन के सैनिकों ने याक के गले में लालटेन लटका कर उन्हें भारतीय चौकी की ओर हाँक दिया था।
दरअसल, चीन के सैनिकों को भारत के पास मौजूद हथियारों और गोला-बारूद की जानकारी थी। इसलिए उन्होंने भारतीय सैनिकों की गोलियाँ खत्म कराने के लिए ये चाल चली थी। इसके बाद चीन के सैनिकों ने भारतीय चौकी की ओर बढ़ना शुरू कर दिया। चीनी सेना ये मान चुकी थी कि भारतीय सेना ने चौकी छोड़ दी है। लेकिन वह ये नहीं जानते थे कि उसका सामना जाँबाज शैतान सिंह और उनके वीरों से है। सुबह के करीब 5 बजे भारतीय सैनिकों ने चीन की सेना पर गोली बरसानी शुरू कर दी। कुछ ही देर में दुश्मन की लाशें गिरनी शुरू हो गई थीं।
दोनों हाथ घायल होने के बाद एक पैर से मशीनगन चलाते रहे मेजर शैतान सिंह
चीन के कुछ सैनिक मारे जाने पर मेजर शैतान सिंह ने कहा कि अभी युद्ध खत्म नहीं हुआ है। इसके बाद चीन ने दोबारा हमला कर दिया। तब तक भारतीय सैनिकों के पास गोलियाँ लगभग खत्म हो गई थीं। उस वक्त 5 से 7 गोलियाँ बची थीं। चीन की सेना ने रेजांग ला पर मोर्टार और रॉकेट से गोलाबारी शुरू कर दी। तब रेजांग ला पर कोई बंकर नहीं था और दुश्मन रॉकेट पर रॉकेट दागे जा रहा था।
इस बीच शैतान सिंह के हाथ में गोली लग चुकी थी। मेजर खून से लथपथ हो चुके थे। दो सैनिक घायल मेजर शैतान सिंह को एक बड़ी बर्फीली चट्टान के पीछे ले गए। उन्होंने मेडिकल हेल्प लेने से इनकार कर दिया। उन्होंने सैनिकों को आदेश दिया कि एक मशीनगन लेकर आओ और गन के ट्रिगर को रस्सी से मेरे एक पैर से बाँध दो। इसके बाद उन्होंने दुश्मनों पर एक पैर से फायरिंग करनी शुरू कर दी।
चीन ने स्वीकारा, 1962 के युद्ध में हुआ था सबसे ज्यादा नुकसान
मेजर शैतान सिंह जानते थे कि 3000 चीनी सैनिकों के सामने 124 भारतीय हार जाएँगे। वह ये भी जानते थे कि इस जंग में सभी जवान वीरगति को प्राप्त हो जाएँगे और किसी को कभी पता नहीं चल पाएगा कि रेजांग ला में आखिर हुआ क्या था। उन्होंने दो घायल सैनिकों रामचंद्र और निहाल सिंह से कहा कि वे चौकी छोड़ कर चले जाएँ। हालाँकि, निहाल सिंह को चीनियों ने 4 अन्य गंभीर भारतीय सैनिकों के साथ बंदी बना लिया था। चीन से हुए इस युद्ध में भारत के 124 जाँबाजों ने 1,300 चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था। भारत की तरफ से 13वीं कुमाऊँ की इस पलटन में केवल 10 जवान जिंदा बचे थे। इनमें भी लगभग सब गंभीर रूप से घायल थे।
कहते हैं कि बुरी तरह से घायल होने के बाद भी मेजर शैतान सिंह अपने पैरों से मशीनगन चला रहे थे। वो नजारा देख चीनी सेना पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी थी। उसके अगले दिन का सूरज जीत तो लेकर आया किन्तु भारत माँ का ये वीर सपूत तब तक उनके आँचल में गहरी नींद सो गया। चीन ने अपनी आधिकारिक रिपोर्ट में माना कि उसे 1962 के युद्ध में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ था।
बर्फ पिघलने पर तीन महीने बाद मिला मेजर शैतान सिंह का शव
बहुत खोजने के बाद भी मेजर शैतान सिंह का शव कहीं नहीं मिला। बाद में जब रेजांग ला की बर्फ पिघली तो रेड क्रॉस सोसायटी और सेना ने उन्हें खोजना शुरू किया तो एक गड़रिए को बड़ी सी चट्टान में वर्दी में कुछ नजर आया। उसने इसकी सूचना अधिकारियों को दी। गड़रिए की सूचना के बाद जब सेना वहाँ पहुँची तो उन्होंने देखा कि मेजर शैतान सिंह अपनी बंदूक थामे बैठे थे। वो ऐसे लग रहे थे, जैसे अभी भी युद्ध के लिए तैयार हैं। मेजर शैतान सिंह का जोधपुर में राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया।
महज 37 साल की उम्र में देश के लिए बलिदान होने वाले मेजर शैतान सिंह को देश के सबसे बड़े वीरता पुरस्कार ‘परमवीर चक्र’ से सम्मानित किया गया। यहाँ बटालियन के एक और सैनिक का जिक्र जरूरी है। जवान सिंहराम ने बिना किसी हथियार और गोलियों के चीनी सैनिकों को पकड़-पकड़ कर मारना शुरू कर दिया था। मल्ल युद्ध में माहिर सिंहराम ने 10 चीनी सैनिक को बाल से पकड़ा और पहाड़ी से टकरा-टकरा कर मौत के घाट उतार दिया था।
आज दुनिया रेजांग ला पास को अहीर धाम के नाम से भी जानते हैं। दरअसल 13 कुमाऊँ के 124 जाँबाज दक्षिण हरियाणा के उस क्षेत्र से आते थे, जिसे अहीरवाल के तौर पर जानते हैं। सभी 124 जाँबाज गुड़गाँव, रेवाड़ी, नरनौल और महेंद्रगढ़ जिलों से आते थे। मेजर शैतान सिंह रेवाड़ी के रहने वाले थे। रेजांग ला युद्ध में शहीद सैनिकों की याद में रेवाड़ी और गुड़गाँव में याद में स्मारक बनाए गए हैं। रेवाड़ी में हर साल रेजांगला शौर्य दिवस धूमधाम से मनाया जाता है और वीर सैनिकों को श्रद्धांजलि दी जाती है।
भारतीय सेना अब बेहद ताकतवार हो चुकी है
आज भी भारत को बार-बार गीदड़ भभकी देने वाला चीन अपनी उस पराजय को कैसे भूल जाता है। उस समय भारत के पास न तो आधुनिक हथियार थे और न ही तकनीक का सहारा। अगर कुछ था तो सिर्फ वीर सपूतों की वीरता। डँटकर भारत माता के कलेजे के टुकड़ों ने उनकी आन-बान और शान को रत्ती भर भी खरोंच नहीं लगने दिया। 58 साल बाद भारतीय सेना में बहुत से बदलाव हो चुके हैं। सेना का आकार बढ़ चुका है। राफेल जैसे आधुनिक फाइटर जेट बेड़े में शामिल हो चुके हैं। ऐसे में चीन की एक गलती उसका हाल बुरा कर सकती है।
कुछ लोगों ने भारत-चीन तनाव के बीच देश को डराने का ठेका ले रखा है। ये वो लोग हैं, जो चीन का गुणगान करते हुए उसे अजेय बताते हैं और भारत के बारे में ऐसे बात करते हैं जैसे हमारी सेना की शक्ति कुछ है ही नहीं। ये वही लोग हैं, जो चाहते हैं कि आप 1962 भारत-चीन युद्ध में लद्दाख के रेजांग ला दर्रा के युद्ध को भूल जाएँ। वो चाहते हैं कि आप भारतीय सेना के गौरवमयी अतीत को भूल कर डर के साए में जिएँ।
रेजांग ला युद्ध उस लड़ाई की गाथा है, जिसके बारे में कई लोगों ने तो ये मानने से भी इनकार कर दिया था कि हमारी सेना ने इतनी बड़ी संख्या में चीनियों को मार गिराया होगा। इसीलिए, जब भी कोई आपके सामने चीन को अजेय बताए, तो उसे रेजांग ला याद दिलाएँ। जब कोई चीनी सैनिकों का डर दिखाए तो उसे मेजर शैतान सिंह और कुमाऊँ रेजिमेंट द्वारा लद्दाख को बचाने के लिए किए गए युद्ध की याद दिलाएँ। उन्हें बताएँ कि जब भारत-चीन युद्ध में हमारी हार की बात होती है, तो इस मोर्चे पर चीन कितनी बुरी तरह परास्त हुआ था, ये भी बच्चों को पढ़ाया जाना चाहिए।