Thursday, November 14, 2024
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शाहजहाँ को 75% हिन्दू बताने वाले जावेद अख्तर, वाराणसी में 76 मंदिर किसने गिरवाए थे? ओरछा का मंदिर किसने तोड़ा?

जावेद अख्तर शाहजहाँ और बराक ओबामा की तुलना करते हैं। लेकिन, ये नहीं बताते कि ओबामा ने कितने चर्च ध्वस्त करवाए? ईसाईयों का कत्लेआम किया? शाहजहाँ ने हिन्दुओं के साथ क्या किया, जानिए।

वो पहले फिल्मों की कहानियाँ व पटकथा लिखते थे, जिसमें ब्राह्मणों को मजाकिया ढंग से दिखाया जाता था और मौलवियों के लिए इज्जत बढ़ाने वाले किरदार गढ़े जाते थे। फिर वो गीतकार बन बैठे। अकबर की तारीफ़ में ‘अजीमो-शाह-शहंशाह’ जैसे गाने लिखे। अब वो ट्विटर ट्रोल हो गए हैं। नाम है – जावेद अख्तर। खुद को नास्तिक कहते हैं, नास्तिकों वाला अवॉर्ड लेते हैं। लेकिन, इस्लामी एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए शाहजहाँ और बराक ओबामा की तुलना करते हैं।

जावेद अख्तर ने एक ट्वीट किया। इसमें उन्होंने लिखा, “अमेरिकी राष्ट्रपति रहे बराक ओबामा केन्या से ताल्लुक रखते थे। उनकी चाचियाँ अब भी केन्या में रहती हैं। लेकिन, चूँकि ओबामा का जन्म अमेरिका में हुआ था, इसीलिए उन्हें वहाँ का राष्ट्रपति चुनाव लड़ने का अधिकार मिला। वहीं शाहजहाँ भारत में मुगलों की पाँचवीं पीढ़ी का था। उसकी माँ और दादी राजपूत समुदाय से थीं। लेकिन, वो शाहजहाँ को विदेशी कहते हैं।”

सबसे पहले बात बराक ओबामा के बारे में करते हैं, जो अमेरिका के पहले ‘अश्वेत’ राष्ट्रपति थे। हाँ, उनके पिता केन्या से थे। उनके पिता बराक ओबामा सीनियर केन्या के एक सफल अर्थशास्त्री थे। उनकी माँ एन्न डनहम अमेरिका की एक मानव-विज्ञानी (Anthologist) थीं। 2008 में राष्ट्रपति चुनाव के प्रचार के दौरान बराक ओबामा ने कहा था कि वो एक केन्याई ‘अश्वेत पिता’ और अमेरिकी ‘श्वेत माँ’ की संतान हैं।

क्या शाहजहाँ ने कहीं भी खुद को ‘हिन्दू’ बताया है या खुद के हिन्दू होने पर गर्व किया है? नहीं। जावेद अख्तर ने अपनी ट्वीट में लिखा है कि माँ और दादी के हिन्दू होने के कारण शाहजहाँ का खून 75% हिन्दू था। अगर शाहजहाँ 75% हिन्दू था तो फिर जावेद अख्तर उसे हिन्दू ही क्यों नहीं कहते? क्या 25% मुस्लिम भी मुस्लिम होता है? बराक ओबामा की तरह कभी शाहजहाँ ने कहा या लिखा है कि उसे अपनी माँ के हिन्दू होने पर गर्व है?

सबसे पहले तो बराक ओबामा को शरणार्थी, घुसपैठिया और आक्रांता के बीच का अंतर समझना चाहिए। हम उनकी मदद कर देते हैं। जैसे, पाकिस्तान से प्रताड़ित हिन्दू यहाँ अपनी जान बचाने के लिए आते हैं तो वो शरणार्थी हुए, क्योंकि अधिकारियों को इसकी जानकारी होती है और वो चोरी-छिपे नहीं आते। म्यांमार और बांग्लादेश से जो रोहिंग्या मुस्लिम यहाँ आकर फर्जी आईकार्ड लेकर बस जाते हैं और अपराध करते हैं, वो घुपैठिए हैं।

अब आ जाइए आक्रांता पर। एक आक्रांता वही है, जो किसी दूसरे प्रदेश में जाकर वहाँ का सत्ताधीश बन बैठता है। जो किसी दूसरे प्रदेश पर कब्जे के इरादे से हमला करता है। हिंसा करता है। भारत के इस्लामी आक्रांताओं का इतिहास देखें तो वो धर्मांतरण करवाते थे, तलवार के दम पर। हिन्दुओं का नरसंहार करते थे। मंदिरों को ध्वस्त करते थे। देवी-देवताओं की प्रतिमाओं को विखंडित करते थे।

क्या शाहजहाँ की तुलना बराक ओबामा से हो सकती है? पहले जानते हैं कि शाहजहाँ ने क्या किया था। ओरछा एक जगह है। ये मध्य प्रदेश के निवाड़ी जिले में स्थित है। एकमात्र ऐसा मंदिर है यहाँ, जहाँ श्रीराम की पूजा राजा के रूप में होती है। सन् 1627 में महाराजा बीर सिंह देव के निधन के बाद उनके बेटे जुझार सिंह गद्दी पर बैठे। उधर शाहजहाँ गद्दी पर बैठे। नए मुग़ल बादशाह पर उन्हें संदेह था, इसीलिए अपने पिता के विपरीत मुगलों से दूरी बना ली।

शाहजहाँ के शासन काल का ये शुरुआती दौर था, ऐसे में उसने इस विद्रोह से सख्ती से निपटने का फैसला करते हुए फ़ौज की तीन बड़ी टुकड़ियों को ओरछा भेजा। खुद आगरा से ग्वालियर में बैठ कर वो युद्ध का निरीक्षण करने लगा। ओरछा के सिंहासन पर बिठाने के लिए एक दूसरा दावेदार ले आया। जुझार सिंह को बातचीत की मेज पर आना पड़ा। कुछ दिनों बाद फिर विद्रोह हुआ। अबकी शाहजहाँ ने बेटे औरंगजेब को वहाँ स्थिति सुलझाने के लिए भेजा।

जुझार सिंह को जंगलों में शरण लेनी पड़ी, जहाँ गोंड एवं भील विरोधियों ने उसे मार डाला। मुग़ल सैनिकों ने जुझार सिंह का सिर काट कर और उसके खजाने से 1 करोड़ रुपए शाहजहाँ को उपहार के रूप में भेजे। इसके बाद उसने इसका ‘दंड’ हिन्दुओं को देने का निश्चय किया। ओरछा में राजा राम के प्रमुख मंदिर को ध्वस्त कर दिया गया। लोगों पर अत्याचार हुए। जुझार सिंह के पोते को जबरन इस्लाम कबूलवाने को मजबूर किया गया।

अपनी पुस्तक ‘A Short History of the Mughal Empire‘ में माइकल फिशर (Michael Fisher) ने इस घटना का जिक्र किया है। ओरछा के चतुर्भुज मंदिर का खजाना भी लूट लिया गया। इतना ही नहीं, ‘बादशाहनामा’ में इसका जिक्र है कि शाहजहाँ ने काशी में निर्माणाधीन या बन कर तैयार हो चुके 76 मंदिरों को ध्वस्त करवा दिया था। उसके राज में मंदिर के निर्माण पर पूरी तरह पाबंदी लगी हुई थी।

अब जावेद अख्तर जवाब दें कि क्या कभी बराक ओबामा ने अमेरिका में किसी चर्च को ध्वस्त किया? क्या बराक ओबामा ने कभी ईसाई धर्म को भला-बुरा कहा? इन सबका जवाब है – नहीं। बराक ओबामा तो खुद ही एक प्रैक्टिसिंग ईसाई हैं। वो कह चुके हैं कि जीसस के उपदेशों के कारण उनका झुकाव ईसाई धर्म की तरफ हुआ। उनका पालन-पोषण ईसाई माहौल में हुआ। ओबामा ही नहीं, अमेरिका में आज तक जितने भी राष्ट्रपति हुए हैं, सब ईसाई ही रहे हैं।

क्या किसी देश में जन्म लेने भर से किसी आक्रांता का वंशज वहाँ का हो जाता है, भले ही वो वहाँ की कला, संस्कृति, परंपराओं और धर्म को नष्ट करने में लगा हुआ हो? जिसे हिन्दू राजाओं का सिर कलम करवाने में मजा आता हो? बराक ओबामा से शाहजहाँ की तुलना बस एक छलावा है। वैसे भी शाहजहाँ की छवि इन मुगलपरस्तों ने ‘एक रोमांटिक राजा’ की बनाई हुई है, सिर्फ इसीलिए क्योंकि मुमताज से उसने शादी की थी।

बराक ओबामा को अमेरिका की संस्कृति से प्रेम है, लेकिन शाहजहाँ को मंदिरों से नफरत थी। बराक ओबामा ईसाई हैं और अमेरिका में 70% ईसाई रहते हैं। दुनिया में सबसे ज्यादा ईसाई अमेरिका में ही रहते हैं। बराक ओबामा को ‘यूनाइटेड चर्च ऑफ क्राइस्ट (UCC)’ में बाप्टाइज किया गया था, जबकि शाहजहाँ मंदिरों को ध्वस्त करता था। जावेद अख्तर ने एक इस्लामी कट्टरपंथी आक्रांता से एक राष्ट्राध्यक्ष से तुलना कर दी, जो जनता का वोट पाकर राष्ट्रपति बना था।

शाहजहाँ के हरम में 8000 रखैलें थीं जो उसे उसके अब्बू जहाँगीर से विरासत में मिली थी। उसने अब्बू की ‘संपत्ति’ को और बढ़ाया। उसने हरम की महिलाओं की व्यापक छँटनी की तथा बुजुर्ग महिलाओं को भगा कर अन्य हिन्दू परिवारों से जबरन महिलाएँ लाकर हरम को बढ़ाता ही रहा। कहते हैं कि उन्हीं भगाई गई महिलाओं से दिल्ली का रेडलाइट एरिया जीबी रोड गुलजार हुआ था और वहाँ इस धंधे की शुरूआत हुई थी। वो हिन्दू महिलाओं का मीनाबाजार लगाया करता था।

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अनुपम कुमार सिंह
अनुपम कुमार सिंहhttp://anupamkrsin.wordpress.com
भारत की सनातन परंपरा के पुनर्जागरण के अभियान में 'गिलहरी योगदान' दे रहा एक छोटा सा सिपाही, जिसे भारतीय इतिहास, संस्कृति, राजनीति और सिनेमा की समझ है। पढ़ाई कम्प्यूटर साइंस से हुई, लेकिन यात्रा मीडिया की चल रही है। अपने लेखों के जरिए समसामयिक विषयों के विश्लेषण के साथ-साथ वो चीजें आपके समक्ष लाने का प्रयास करता हूँ, जिन पर मुख्यधारा की मीडिया का एक बड़ा वर्ग पर्दा डालने की कोशिश में लगा रहता है।

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