प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से ये बात जगजाहिर है कि किसी भी प्रेम संबंध में एक दूसरे के साथ बिताए समय का सम्मान करना सबसे अधिक महत्वपूर्ण होता है। लेकिन प्यार के हसीन क्षणों में आई नजदीकियों को किसी एक के द्वारा अपनी बपौती समझ लेना या उसे परिस्थितियों के अनुरूप अपने फायदे के लिए जगजाहिर करना, न केवल उस रिश्ते में आई करीबियों को अश्लीलता से पेश करना है बल्कि आपके साथी को भी कई सवालों के कठघरे में खड़ा कर देता है। हालाँकि, मुमकिन है कि ऐसी हरकत कोई जाहिल, दिमाग से पैदल व्यक्ति चार लोगों के बीच में शेखी बघारते हुए करता दिख जाए, पर क्या इसकी उम्मीद समाज के पढ़े-लिखे और बुद्धिजीवी तबके से की जा सकती है? शायद नहीं। लेकिन हिंदुओं के ख़िलाफ़ लगातार जहर उगलने वाले और टाइम मैगजीन में लिखने वाले पत्रकार आतिश तासीर ऐसे शख्स हैं, जो न सिर्फ ऐसा लिखते हैं बल्कि इसमें संदर्भ और संदेश ढूँढकर उसे जस्टिफाई करने का भी प्रयास करते हैं।
साल 2018 में वैनिटी फेयर नामक वेबसाइट पर आतिश तासीर का एक लेख छपा। हालाँकि, लेख का शीर्षक ऐसा था, जैसे वह ब्रिटेन के शाही केंसिंगटन पैलेस में पसरे नस्लवाद पर कुछ गंभीर अनुभव साझा करने वाले हैं। लेकिन जब लेख की शुरुआत हुई तो इसके लिए सबसे पहले उन्होंने एला एंडरसेन के साथ अपने संबंधों के बारे में बताना शुरू किया।
लेख की शुरुआत में आतिश ने बताया कि एला, केंट के प्रिंस और प्रिंसेज मिशेल की बेटी थी और एक हाउस पार्टी के दौरान उनकी मुलाकात हुई थी। आतिश के मुताबिक धीरे-धीरे दोनों में नजदीकियाँ बढ़ी और दोनों ने साथ में वहाँ 3 साल बिताए।
इस दौरान आतिश केंसिंगटन पैलेस से जुड़े रहे और दोनों के बारे में मीडिया में भी कई विवादित बाते हुईं। उनके लेख को पढ़कर लगा जैसे इस बीच वे मीडिया में आई एक हेडलाइन से आहत भी हुए थे- जो “PRINCESS PUSHY ‘DELIGHTED’ OVER HER DAUGHTER’S ROMANCE WITH INDIA’S CAPTAIN CONDOM” नाम से पब्लिश हुई थी। उन्होंने इस लेख के शीर्षक को उनके रिश्ते के लिए आपत्तिजनक बताया और नीचे अपने संबंधों की शुरुआत पर बात करने लगे। अफसोस जिस तरह के शीर्षक को लेकर आतिश ने आपत्ति जताई, उससे कहीं ज्यादा गंदगी उन्होंने अपने लेख में परोस दी।
आतिश तासीर ने लिखा कि टाइम मैगजीन में बतौर संवाददाता अपना करियर शुरू करने के बाद और लंदन ब्यूरो में शिफ्ट होने से पहले उन्होंने एला के साथ खूबसूरत वक्त गुजारा। हालाँकि, ये वक्त उन्होंने कैसे गुजारा, इसका उल्लेख आतिश ने लेख के शुरू में ही कर दिया। उन्होंने लिखा, “मैं और एला उस दौरान बकिंग्घम पैलेस में महारानी के स्विमिंग पूल में नंगे तैरते थे। दोनों ने साथ में MDMA (एनर्जी और सेंसेशन बढ़ाने के लिए लिया जाने वाला एक तरह का ड्रग) भी लेते थे।” इसके बाद आतिश अपने लेख को थोड़ा एंगल देते हैं – भावनाओं का तड़का लगा कर। वो बताते हैं कि उनके पिता एक पाकिस्तानी बिजनेसमैन और राजनेता थे, जिन्होंने उनकी माँ को उस समय छोड़ दिया था जब वो सिर्फ 2 साल के थे।
शब्दों के साथ कैसे खेला जाता है, यह पत्रकार या लेखक से बेहतर कौन समझ सकता है। लेकिन शब्दों की भी अपनी गरिमा होती है। अगर यह खबरों में एंगल देने के लिए प्रयोग की जाए तो प्रोपेगेंडा कहलाता है लेकिन आपसी संबंधी के लिए प्रयोग किए जाएँ तो नीचता कहलाती है। आतिश कैसे पत्रकार हैं, इसका तो पता नहीं लेकिन अपनी प्रेमिका के साथ अंतरंग संबंधों पर बोलकर उन्होंने साबित कर दिया कि वो नीच इंसान हैं, निहायत ही घटिया मानसिकता वाले। वे ट्विटर पर जिस तरह हर मुद्दे को गौमूत्र तक खींच लाते हैं, उसी तरह ब्रिटेन में नस्लवाद के मुद्दे को समझाते-समझाते वो अपने और एला के बीच अंतरंग संबंधों को उजागर कर देते हैं। वे बता देते हैं कि उनके और एला के बीच कैसे संबंध थे और उसमें ऊर्जा भरने के लिए वे क्या-क्या करते थे। बिना यह सोचे कि एला अब किसी और की ब्याहता है, बिना यह सोचे कि इन बातों का शायद उसके परिवार पर असर पड़ सकता है।
इस दौरान उनका इस बात से कोई सरोकार नहीं रह जाता कि वे अपने लेख में अपनी जिस प्रेमिका की पहचान उजागर करके उसके बारे में बातें कर रहे हैं, उससे सार्वजनिक पटल पर उस महिला की छवि पर क्या असर पड़ेगा? उन्हें अपने लेख में एला का संदर्भ देते हुए बिलकुल महसूस नहीं होता कि क्या उन्हें इसका अधिकार है? या फिर वो इतने बड़े स्तंभकार बन चुके हैं कि किसी की निजता को तार-तार करना उनके लिए मात्र लेख में इस्तेमाल होने वाला एक किस्सा भर है?
इस लेख में वो एला के साथ बिताए किस्से का प्रयोग करके ब्रिटिश राजघराने से संबंधित लोगों में पसरे घमंड और उनके नस्लवादी होने का उल्लेख करते हैं और अपने-एला के रिश्ते से जुड़े एक किस्से के बारे में बताते हैं। वो कहते हैं कि एक बार उन्हें प्रिसेंज मिशेल की दोस्त ने कहा था कि ब्रिटिश लोगों को ये बात बिलकुल पसंद नहीं कि कोई विदेशी आए और उनकी राजकुमारियों को चुरा (प्यार में फँसा कर) कर ले जाए। वे बताते हैं कि ब्रिटिश लोगों में चिंता, आक्रोश और नफरत के होने का मतलब ही ये था कि वो अपने शाही परिवार को कितना प्यार करते हैं। उनके लेख के मुताबिक एला और उनके रिश्ते के दौरान जो समय, उन्होंने वहाँ गुजारा उस वक्त लगभग हर कोई नस्लवादी हुआ करता था।
ये बात स्वीकार्य है कि विश्व के अधिकतर देश एक समय तक नस्लवाद से काफी काफी प्रभावित रहे हैं, अभी भी हैं और ये भी सच है कि इन मुद्दों पर अपनी बात और अपनी राय रखना बहुत महत्वपूर्ण है। लेकिन इसके लिए एक लड़की के साथ अपने संबंधों को उजागर करना और उसके साथ बिताए समय को बिना अनुमति के जगजाहिर करना, न किसी के अधिकार क्षेत्र में आता है और न ही यह नैतिक रूप से सही है। खैर आतिश तासीर से नैतिकता की उम्मीद कैसी!
हम बहुत से नाट्य प्रस्तुति और कहानियाँ पढ़ते हैं, जिसमें पूरी घटना सत्य पर आधारित होती है, लेकिन उसके पात्रों के नाम बदलकर उसकी निजता को सुरक्षित रखा जाता है और अपना मूल संदेश भी दे दिया जाता है। पर आतिश का लेख शुरुआत से ही पढ़ने पर महसूस होता है कि शायद वे अपने बौद्धिक स्तर को इस्लाम, कट्टरपंथ आदि के आगे विस्तार दे ही नहीं पाए हैं। उन्हें पता ही नहीं है कि किसी के साथ संबंध होने का अर्थ उसकी सालों बाद में बदनामी करना नहीं होता। उन्हें मालूम है तो सिर्फ़ अपने पिता की तरह भारत और हिंदुओं के लिए जहर उगलना, साथ में अपने लेख के लिए महिलाओं को एक मात्र विषय वस्तु समझना।
यह जानना भी जरूरी है कि भारत सरकार को धोखा देने के कारण अपना OCI (Overseas Citizenship of India) रद्द करवा चुके आतिश के इस लेख से इस बात का भी पता चलता है कि एला से संबंधों के दौरान उन्होंने अपने पाकिस्तान मूल के पिता होने की पहचान भी छिपाई थी और खुद को भारतीय बताया था। क्योंकि शाही पैलेस के बाहर घूम रहे पुलिस वाले जब उन्हें मिलते थे तो वह उनसे यही सवाल करते थे कि क्या तुम ही वो भारतीय शख्स हो, जो एला के साथ रह रहे हो? इसके अलावा मीडिया हेडलाइन्स में भी उस समय उनके लिए ‘इंडियन’ शब्द का ही प्रयोग होता था। ऐसा इसलिए क्योंकि आतिश की माँ भारतीय मूल की हैं।