हरियाणा के रोहतक में आज भी पैरा स्पेशल फोर्स के ऑफिसर मेजर मोहित शर्मा को उनकी बहादुरी के लिए घर-घर में याद किया जाता है। मरणोपतरांत अशोक चक्र से सम्मानित इस हुतात्मा ने साल 2009 में उत्तर कश्मीर के कुपवाड़ा जिले में एक सैन्य ऑपरेशन के दौरान अंतिम साँस ली थी। लेकिन, साल 2004 में इनके द्वारा किया गया एक ऑपरेशन आज भी कइयों के लिए प्रेरणा है।
शिव अरूर और राहुल सिंह की किताब ‘इंडिया मोस्ट फीयरलेस 2’ में इस बात का जिक्र है कि कैसे मेजर मोहित शर्मा ने इस्लामी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन में घुसपैठ करके दो खूँखार आतंकियों को मारा।
दक्षिण कश्मीर से 50 किमी दूर शोपियाँ में मेजर ने अपने ऑपरेशन को अंजाम दिया था। मेजर ने इस काम के लिए सबसे पहले अपना नाम और हुलिया बदला। उन्होंने लम्बी दाढ़ी-मूँछ रख कर आतंकियों की तरह अपने हाव-भाव बनाए। फिर इफ्तिखार भट्ट नाम के जरिए वह अबू तोरारा (Abu Torara) और अबू सबजार ( Abu Sabzar) के संपर्क में आए।
इसके बाद मेजर ने बतौर इफ्तिखार भट्ट दोनों हिजबुल आतंकियों को ये कहकर विश्वास दिलाया कि भारतीय सेना ने उनके भाई को साल 2001 में मारा था और अब वह बस सेना पर हमला करके बदला चाहते हैं। उन्होंने अपने मनगढ़ंत मंसूबे बताकर आतंकियों से कहा कि इस काम में उन्हें उन दोनों की मदद चाहिए। मेजर शर्मा ने दोनों आतंकियों से कहा कि उन्हें आर्मी के चेक प्वाइंट पर हमला बोलना है और उसके लिए वह जमीनी काम कर चुके हैं।
मेजर शर्मा के इस ऑपरेशन में आतंकियों ने कई बार उनसे उनकी पहचान पूछी। लेकिन वह कहते, “मुझे तुम्हारी मदद चाहिए। मुझको सीखना है।” तोरारा ने तो कई बार उनकी पहचान के बारे में उनसे पूछा। लेकिन आखिरकार वे मेजर शर्मा के जाल में फँस गए और मदद करने को राजी हो गए। आतंकियों ने उन्हें बताया कि वह कई हफ्तों तक अंडरग्राउंड रहेंगे और आतंंकी हमले के लिए मदद जुटाएँगे। किसी तरह मेजर ने उन्हें मना ही लिया कि वह तब तक घर नहीं लौटेंगे जब तक चेक प्वाइंट को उड़ा नहीं देते।
देखते ही देखते आने वाले दिनों में दोनों आतंकियों ने सब व्यवस्था कर ली। साथ ही पास के ग्रामों से तीन आतंकियों को भी बुला लिया। जब तोरारा को दोबारा संदेह हुआ तो मेजर ने उससे कहा, “अगर मेरे बारे में कोई शक है तो मुझे मार दो।” अपने हाथ से राइफल छोड़ते हुए वह आतंकियों से बोले, “तुम ऐसा नहीं कर सकते, अगर तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है। इसलिए तुम्हारे पास अब मुझे मारने के अलावा कोई चारा नहीं है।”
मेजर की बातें सुनकर दोनों आतंकी असमंजस में पड़ गए। इतने में मेजर मोहित शर्मा को मौका मिला और उन्होंने थोड़ी दूर जाकर अपनी 9 mm पिस्टल को लोड कर दोनों आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया। उन्होंने दो गोलियाँ आतंकियों के छाती पर मारी और एक सिर में। इसके बाद वह उनके हथियार उठाकर भागकर नजदीक के आर्मी कैंप में गए।
इस ऑपरेशन के 5 साल बाद कुपवाड़ा के एक सैन्य ऑपरेशन में वह स्वयं भी बलिदान हो गए। अपने आखिरी समय में भी मेजर ने अपने कई साथियों को सुरक्षित बचाया। आखिर में सीने में गोली लगने के कारण दम तो़ड़ने वाले मेजर मोहित शर्मा के शूरता के किस्से आज भी समय-समय पर दोहराए जाते हैं। हाल में उनकी कहानी नेशन फर्स्ट, ऑलवेज और एवरीटाइम नाम के ट्विटर अकॉउंट पर एक पूरे स्टोरी थ्रेड में शेयर की गई है।
A Young Kashmiri lad Iftikaar Bhatt, with shoulder length hair and wearing the traditional Kashmiri Pheran, approached the dreaded Hizbul Mujahideen in Shopian, Kashmir sometime during 2003. pic.twitter.com/HK6sVEf4dn
— Nation First, Always, Everytime 🇮🇳 (@ramnikmann) January 18, 2021