इतिहास के पन्नों में कई राज दफन हैं। इनमें कुछ मौखिक तो कुछ लिखित हैं, जिन्हें बाद में शब्दों की शक्ल दी गई। अब इन्हीं शब्दों की परतों को खोलने का कार्य भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) करने जा रहा है, जिसमें उन्हें हुमायूँ मकबरे के भीतर दाराशिकोह की कब्र को खोजने का उत्तरदायित्व दिया गया है।
लिखित इतिहास के अनुसार दाराशिकोह की कब्र हुमायूँ मकबरे के भीतर है। ASI के सामने सबसे बड़ी परेशानी यहाँ दाराशिकोह की कब्र को खोजने की है क्योंकि अधिकतर कब्रों पर नाम नहीं लिखे हुए हैं। हुमायूँ मकबरे के पूरे परिसर में करीब 140 कब्रें हैं, जिनमें कुछ कब्रों पर नाम है तो ज्यादातर कब्र बेनाम हैं।
संस्कृति व पर्यटन मंत्रालय के आदेश पर ASI द्वारा 7 सदस्यीय टीम गठित की गई है, जो 3 महीने के भीतर दाराशिकोह की कब्र को ढूँढकर अपनी रिपोर्ट पेश करेगी। इस टीम का नेतृत्व टीजे अलोन करेंगे, जो ASI में स्मारक निदेशक हैं। इस टीम में वरिष्ठ पुरातत्वविद् आरएस बिष्ट, सईद जमाल हसन, केएन दीक्षित, बीआर मणि, केके मुहम्मद, सतीश चंद्र और बीएम पांडे शामिल हैं। इसके लिए तीन महीने का समय दिया गया है।
वहीं इस बारे में पूछे जाने पर संस्कृति व पर्यटन मंत्री प्रह्लाद पटेल ने कहा, “निष्कर्षों तक पहुँचने के लिए तीन महीने के समय को बढ़ाया भी जा सकता है। क्योंकि इसे ढूँढने में उस समय की वास्तुकला से लेकर लिखित इतिहास व अन्य जानकारियों को ध्यान में रखना होगा। पैनल उस समय के लिखित इतिहास, साक्ष्य या फिर कोई अन्य जानकारी, जिसे सबूत के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है, का उपयोग करके निष्कर्ष पर पहुँचेगा।”
बता दें कि दाराशिकोह, शाहजहाँ व मुमताज के बड़े बेटे एवं औरंगजेब के बड़े भाई थे। कई भाषाओं के विद्वान दाराशिकोह को मारकर 1659 में औरंगजेब गद्दी पर बैठा था। दारा शिकोह को एक “उदार मुस्लिम” के रूप में जाना जाता है, जिन्होंने हिंदू और इस्लामी परंपराओं के बीच समानताएँ खोजने की कोशिश की। उन्होंने भागवत गीता के साथ-साथ 52 उपनिषदों का अनुवाद फारसी में किया था।
पैनल में शामिल पुरातत्वविदों में से एक, केके मुहम्मद ने दारा शिकोह को उस समय के सबसे महान मुक्त विचारकों में से एक बताया। उन्होंने कहा कि दारा शिकोह ने उपनिषदों के महत्व को समझा और उसका अनुवाद किया। उपनिषद उस समय केवल कुछ उच्च जाति के हिंदुओं के लिए जाना जाता था। दारा शिकोह के उस फारसी अनुवाद ने आज के बहुत से मुक्त विचारकों को प्रेरित किया, जिसमें संयुक्त राज्य अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा भी शामिल हैं।
वहीं कुछ इतिहासकारों का कहना है कि अगर औरंगजेब की जगह दारा शिकोह मुगल सिंहासन पर बैठता तो इससे सांप्रदायिक हिंसा में खोए हजारों लोगों की जान बच सकती थी। अविक चंदा अपनी किताब- ‘दारा शिकोह, द मैन हू वुड बी किंग’ में लिखते हैं, “दारा शुकोह औरंगज़ेब का धुर विरोधी था। वह काफी सामंजस्यवादी, गर्मजोशी और उदार था, लेकिन इसके साथ ही वह लड़ाई के क्षेत्र में एक उदासीन प्रशासक होने के साथ ही अप्रभावी भी था।”
बता दें कि हाल ही में दिल्ली के एक सम्मेलन में वक्ताओं ने दारा शिकोह को ‘असली हिंदुस्तानी’ कहा था। इसमें RSS के पदाधिकारी भी शामिल थे। पिछले साल अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दारा शिकोह के नाम पर एक रिसर्च चेयर स्थापित की गई।
दिल्ली विश्वविद्यालय में मध्ययुगीन इतिहास के प्रोफेसर सुनील कुमार ने दारा शिकोह के कब्र की खोज पर सवाल उठाते हुए कहा, “जब भी आप आधुनिक राजनीतिक उद्देश्यों के लिए अतीत का उपयोग करते हैं, तो आप हमेशा इसे ट्विस्ट कर देंगे क्योंकि अतीत आधुनिकता में उपयुक्त नहीं बैठ सकता। आप इसे अपने वर्तमान इरादों के लिए इसमें जोड़-तोड़ करते हैं। अगर औरंगजेब की जगह वह शहंशाह होता, तो क्या अलग भारत होता? ये धारणाएँ मुगल इतिहास की मिसप्लेस्ड अंडरस्टैंडिंग की वजह से आ रही हैं। उन्हें एक अच्छा मुस्लिम बनाया गया है लेकिन उनकी कब्र की खोज क्यों हो रही है?”
शाहजहाँनामा के अनुसार, औरंगजेब ने दारा शिकोह को पराजित करने के बाद, उन्हें जंजीरों में बाँधकर दिल्ली लाया गया था। उनका सिर काट दिया गया और आगरा किले में भेज दिया गया, जबकि उनके धड़ को हुमायूँ के मकबरे के परिसर में दफना दिया गया।
केके मुहम्मद ने कहा, “कोई नहीं जानता कि वास्तव में दारा शिकोह को कहाँ दफनाया गया था। हम सभी जानते हैं कि यह हुमायूँ के मकबरे के परिसर में एक छोटी सी कब्र है। अधिकांश लोग वहाँ एक विशेष छोटी सी कब्र की ओर इशारा करते हैं। इटालियन यात्री निकोलो मनुची ने ट्रेवल्स ऑफ मनुसी में उस दिन का एक ग्राफिक विवरण दिया है, जो कि इसके प्रत्यक्षदर्शी हैं। यही इस थेसिस का आधार है।”
पैनल के सदस्य बीआर मणि ने कहा, “परिसर में मौजूद कब्रों में से एक पारंपरिक रूप से दारा शिकोह का कहा जाता है। यह हुमायूँ के मकबरे परिसर के पश्चिमी तरफ स्थित है। हम इस बारे में पीढ़ियों से क्षेत्र में रहने वाले लोगों के साथ-साथ वरिष्ठ ASI अधिकारियों से सुनते आ रहे हैं, लेकिन फिर भी कोई सबूत नहीं है।”
AMU के प्रोफेसर शिरीन मूसवी ने कहा, “1857 तक परिवार के सभी सदस्यों को उसी परिसर में दफनाया गया था। इतिहासकार जदुनाथ सरकार, सभी अधिकारियों के साथ-साथ यूरोपियन और फारसी भी इसी तरफ इशारा करते हैं कि दारा शिकोह को हुमायूँ के मकबरे में दफन किया गया था।”
ASI की सबसे बड़ी समस्या यह है कि परिसर की अधिकांश कब्रों का कोई नाम नहीं है। ASI के एक पूर्व निदेशक और पैनल के सदस्य हसन ने कहा, “शाहजहाँनामा में मुहम्मद सालेह कम्बोह ने दारा शिकोह के अंतिम दिनों के बारे में कम से कम दो पेजों में लिखा है कि कैसे उनकी बेरहमी से हत्या की गई थी और फिर परिसर में कहीं दफना दिया गया था।”
केके मुहम्मद ने कहा कि निश्चितता के साथ तो नहीं कहा जा सकता है, मगर संभावना जरूर है। वहीं प्रोफेसर मूसवी को डर है कि कहीं यह खोज कभी खत्म न होने वाला न हो जाए, क्योंकि किसी ने भी कब्र की जगह का उल्लेख नहीं किया है। वहाँ पर कोई भी कब्र चिह्नित या अंकित नहीं है। दारा शिकोह की कब्र को पहचानने का कोई तरीका नहीं है।
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