बनारस हिंदू विश्वविद्यालय ने एक नया पाठ्यक्रम शुरू किया है। नाम है ‘भूत विद्या’। नाम सुनते ही पहला ख्याल आता है बचपन में सुनी भूत वाली कहानियों का। भूत छुड़ाने का दावा करने वाले ओझा-गुणी का। बीबीसी जैसे मीडिया संस्थान भी “Bhoot Vidya: India university to teach doctors Ghost Studies” जैसे हेडलाइन से इसी तरह का भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं।
लेकिन हकीकत कुछ और ही है। BHU का ‘भूत विद्या’ विशुद्ध विज्ञान है। इससे साइकोसोमेटिक डिसऑर्डर का उपचार किया जाता है। ऑपइंडिया के संपादक अजीत भारती ने इस मसले पर बीएचयू के आयुर्वेद विभाग के डीन प्रोफ़ेसर यामिनी भूषण त्रिपाठी से लंबी बातचीत कर इसके अलग-अलग पहलुओं पर चर्चा की। आप इसे विस्तार से सुन सकते हैं।
इस दौरान प्रोफेसर त्रिपाठी ने बताया कि इसका भूत से कोई लेना-देना नहीं है। न ही यह ओझा-गुणी की पढ़ाई है। इसकी शिक्षा के लिए चिकित्सा का ज्ञान होना जरूरी है। उन्होंने बताया कि पाठकों को आकर्षित करने के लिए मीडिया संस्थान इस तरह की हेडलाइन बना रहे हैं ताकि लोगों में भ्रम पैदा हो।
प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि सारा ज्ञान वेदों से आया है। चौथे वेद अथर्ववेद से आयुर्वेद निकला है। आयुर्वेद में आठ अंग होते हैं। शल्य, शालाक्य, काय चिकित्सा, कौमारभृत्य, अगदतंत्र, रसायन विज्ञान, वाजीकरण और भूत विद्या। इसे ही आष्टांग आयुर्वेद कहते हैं। बकौल प्रोफेसर त्रिपाठी इनमें से पॉंच को तो 15 भागों में विभाजित कर विकसित करने में कामयाबी मिल चुकी है। लेकिन, आयुर्वेद के आखिरी तीन भाग अभी तक पूरी तरह से विकसित नहीं हुए हैं। यही कारण है कि बीएचयू ने पहली बार इनकी पाठ्यक्रम की शुरुआत की है। जून में तीनों का यूनिट बनाया गया था। जो आगे चलकर विभाग में बदल जाएगा। छह महीने का ये पाठ्यक्रम होगा। भूत विद्या की शिक्षा लेने वाले साइकोसोमेटिक डिसऑर्डर यानी मनोदैहिक विकार का उपचार करने में समर्थ होंगे। इस तरह के विकार मन में पैदा होकर शरीर को कष्ट देते हैं।
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