Friday, March 29, 2024
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सर्दियों में पराली जलाना वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण, पटाखों का असर एक दिन भी नहीं रहता: IIT दिल्ली की स्टडी में बड़ा खुलासा

....जबकि दिवाली के मौके पर दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर पटाखों पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी।

दिवाली के दौरान दिल्ली की वायु की खराब गुणवत्ता के लिए पटाखे नहीं, बल्कि पराली जिम्मेदार है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली (IIT दिल्ली) ने अपने सर्वे में इसकी पुष्टि की है। दरअसल दिवाली और फसल काटने के बाद पराली जलाने का समय लगभग एक ही होता है। इसकी वजह से प्रदूषण की असली वजह का पता लगाना मुश्किल हो जाता था।

प्रदूषण की असली वजह जानने के लिए आईआईटी दिल्ली के विभिन्न विभागों में विभिन्न स्कॉलर द्वारा किए गए शोध में दिवाली के मौसम में दिल्ली के विभिन्न स्थानों से लिए गए नमूनों की जाँच की गई और हवा में विभिन्न कणों के अनुपात को मापा गया। अध्ययन से पता चला है कि जैव ईंधन जलाने (Biomass Burning) से राष्ट्रीय राजधानी में वायु गुणवत्ता खराब होती है। इसमें कहा गया कि दिवाली के पटाखों से निकलने वाले प्रदूषक एक दिन के लिए भी हवा में नहीं रहते हैं। रिसर्च के अनुसार, सर्दियों के दौरान जलने वाले जैव ईंधन में गर्मी के लिए पराली जलाना और जलाऊ लकड़ी आदि जलाना शामिल है।

अध्ययन का शीर्षक ‘दिवाली आतिशबाजी के पहले, दौरान और बाद में नई दिल्ली में PM2.5 का रासायनिक विशिष्टता और स्रोत विभाजन’ (‘Chemical speciation and source apportionment of ambient PM2.5 in New Delhi before, during, and after the Diwali fireworks’) है। इसमें त्योहार के पहले, दौरान और बाद में राजधानी में वायु गुणवत्ता को प्रभावित करने वाले प्रदूषण स्रोतों पर स्टडी की गई है।

यह एल्सेवियर बीवी के वायुमंडलीय प्रदूषण अनुसंधान पत्रिका के वॉल्यूम 13 अंक 6 (जून 2022) में साइंस डायरेक्ट में प्रकाशित हुआ है। इस रिसर्च पेपर के लेखक और योगदानकर्ता आईआईटी दिल्ली के विभिन्न विभागों से हैं। चिराग मनचंदा और मयंक कुमार मैकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग से हैं। विक्रम सिंह और मोहम्मद फैसल केमिकल इंजीनियरिंग विभाग से हैं। अप्लायड मैकेनिक्स विभाग के नबा हजारिका ने भी रिसर्च में भाग लिया है। विपुल लालचंदानी, आशुतोष शुक्ला और सच्चिदानंद त्रिपाठी सिविल इंजीनियरिंग विभाग के शोधकर्ता हैं जिन्होंने इस शोध में अपने इनपुट दिए। इसके अलावा, अहमदाबाद के भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला का भूविज्ञान (Geoscience) डिवीजन भी रिसर्च टीम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

यह स्टडी दिल्ली में आधारित था और 20 अक्टूबर 2019 से 31 अक्टूबर 2019 तक 12 दिनों तक के सैंपल पर किया गया था। 27 अक्टूबर 2019 को दिवाली थी। पटाखों के जलने के तत्काल प्रभाव को ध्यान में रखते हुए, छह- दिन के अंतराल में दिवाली के आसपास आतिशबाजी कार्यक्रम पर ध्यान केंद्रित किया गया। इसे तीन चरणों में बाँटा गया था। पहला दिवाली से पहले (25 अक्टूबर 2019 24:00 IST – 27 अक्टूबर 2019 18:00 IST), दूसरा दिवाली के दौरान (27 अक्टूबर 2019 18:00 IST – 28 अक्टूबर 2019 6:00 IST), और तीसरा दीवाली के बाद (28 अक्टूबर 2019 6:00 IST – 31 अक्टूबर 2019 24:00 IST)।

इस अवधि के दौरान दिल्ली में दो स्थानों से नमूने एकत्र किए गए थे- मध्य दिल्ली के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटेओरॉलॉजी कैंपस और दक्षिणी दिल्ली में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी कैंपस। अध्ययन में हवा में प्रदूषकों का सटीक माप लेने के लिए Xact 625i एम्बिएंट मेटल मॉनिटर, मल्टी-चैनल एथेलोमीटर, हाई-रिज़ॉल्यूशन टाइम-ऑफ-फ्लाइट एरोसोल मास स्पेक्ट्रोमीटर जैसे विभिन्न उपकरणों का इस्तेमाल किया गया।

अध्ययन के मुख्य लेखक चिराग मनचंदा ने कहा है कि टीम ने पाया कि दीवाली के बाद के दिनों में जैव ईंधन जलने संबंधी उत्सर्जन में तेजी से इजाफा हुआ है, जिसमें दीवाली के पहले की तुलना में औसत स्तर लगभग दोगुना बढ़ गया है। साथ ही, कार्बनिक पीएम 2.5 से संबंधित स्रोत विभाजन परिणाम दिवाली के बाद के दिनों में प्राथमिक और द्वितीयक दोनों कार्बनिक प्रदूषकों में इजाफे का संकेत देते हैं, जो प्राथमिक जैविक उत्सर्जन वृद्धि में जैव ईंधन जलाने की भूमिका की तरफ इशारा करते हैं।

चिराग मनचंदा ने कहा है कि टीम ने यह भी पाया कि दिवाली के दौरान पीएम 2.5 के स्तर में धातु की मात्रा 1,100 प्रतिशत बढ़ी और अकेले आतिशबाजी में पीएम 2.5 धातु का 95 प्रतिशत हिस्सा था। हालाँकि आतिशबाजी का असर त्यौहार के लगभग 12 घंटों के भीतर ही कम हो गया। 

आईआईटी-दिल्ली के केमिकल इंजीनियरिंग विभाग के विक्रम सिंह ने कहा कि सर्दियों में क्षेत्र में पराली जलाने और ठंड से बचने के लिए किए जाने वाले उपायों के चलते जैव ईंधन जलाने की गतिविधियाँ बढ़ती हैं। इस तरह से रिसर्च से नतीजा निकला कि आतिशबाजी के बजाय जैव ईंधन जलाने से दिवाली के बाद के दिनों में दिल्ली में हवा की गुणवत्ता खराब होती है। 

गौरतलब है कि साल 2021 में दिवाली के मौके पर दिल्ली की केजरीवाल सरकार ने प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर पटाखों पर पूरी तरह से रोक लगा दी थी। केजरीवाल के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा 1 जनवरी, 2022 तक सभी प्रकार के पटाखों की बिक्री और फोड़ने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने के बाद, दिल्ली पुलिस ने इस त्योहारी सीजन में पटाखों की बिक्री और वितरण पर कार्रवाई शुरू की थी। इसके लिए पटाखा विक्रेताओं ने दिल्ली सरकार को फटकार लगाई थी। उन्होंने इसे सरकार का लापरवाही भरा फैसला बताते हए कहा था कि  अगर भारत में दिवाली नहीं मनाई जाएगी तो क्या पाकिस्तान में भी मनाई जाएगी?

सुप्रीम कोर्ट ने पटाखा प्रतिबंध मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि पटाखों का मुद्दा एक अस्थायी मुद्दा है और मुख्य मद्दा पराली जलाने से संबंधित है। अब IIT दिल्ली द्वारा किए गए रिसर्च ने वैज्ञानिक सबूत के साथ अदालत की टिप्पणी को मजबूत किया है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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