सेंट्रल विस्टा पर तमाम प्रोपेगेंडा के बीच यह बात सामने आई है कि 60 पूर्व नौकरशाह नई संसद के निर्माण को अंधविश्वास का नतीजा मानते हैं। केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी के अनुसार यह बात पूर्व नौकरशाहों ने उस पत्र में कही थी जो उन्होंने पिछले साल इस परियोजना का विरोध करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखी थी। बकौल पुरी, “ये बड़ा दिलचस्प है कि हमारे 60 पढ़े-लिखे मूर्खों ने कहा है कि यदि रिपोर्ट्स पर विश्वास किया जाए तो अंधविश्वास के कारण नए संसद भवन का निर्माण किया जा रहा है, क्योंकि पुरानी इमारत अशुभ है।”
दीगर है कि नई संसद के निर्माण की जरूरत अरसे से महसूस की जा रही थी। आज इस परियोजना पर दुष्प्रचार कर रही कॉन्ग्रेस भी इसके हक में थी। दिल्ली हाई कोर्ट ने इसे राष्ट्रीय महत्व की परियोजना बताते हुए इस पर रोक लगाने की याचिका खारिज की है। एक दिलचस्प तथ्य यह है कि राजनीतिक गलियारों में संसद के ‘वास्तु’ के तार पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से जुड़ती है।
अजेय भारत पार्टी नाम से एक राजनीतिक दल हुआ करता था। इस पार्टी का मान्यता नहीं मिल सकी, क्योंकि वह इसके लिए तय मापदंडों पर खरी नहीं उतर पाई। लेकिन, 90 के दशक में इस पार्टी के बड़े-बड़े विज्ञापन अखबारों में छपा करते थे जिनमें मोटे अक्षरों में लिखा होता था कि यदि अजेय भारत पार्टी सत्ता में आई तो संसद भवन को गिरा दिया जाएगा, क्योंकि इसमें वास्तु दोष है।
अजेय भारत पार्टी खड़ी करने वाले शख्स का नाम था महेश योगी। महर्षि महेश योगी पर इंदिरा के भरोसे का अंदाजा आप इस बात से भी लगा सकते हैं कि 1977 में चुनावी पराजय के बाद खुद को दोबारा से राजनीतिक परिदृश्य पर खड़ी करने के लिए इंदिरा ने जिन तीन लोगों के साथ मुलाकात की थी, उनमें एक वे भी थे। इंडिया टुडे की रिपोर्ट बताती है कि यह मुलाकात दिल्ली के अशोका होटल में हुई थी।
अजेय भारत पार्टी वैसा राजनीतिक प्रभाव कभी हासिल नहीं कर पाई कि संसद भवन को लेकर अपनी सोच मुकम्मल कर पाती। अब जगह की कमी के कारण नई संसद का निर्माण भले हो रहा हो, लेकिन पुरानी संसद अपनी जगह खड़ी रहेगी। उसका इस्तेमाल संसदीय आयोजनों के लिए किया जाएगा।
वैसे कुछ रिपोर्टों की मानें तो संसद के ‘वास्तु’ पर तब भी चर्चा हुई थी जब शिवसेना नेता मनोहर जोशी लोकसभा के अध्यक्ष हुआ करते थे। कहा जाता है कि वास्तु विशेषज्ञ अश्विनी कुमार बंसल ने इस संबंध में एक रिपोर्ट भी सौंपी थी। उसके कॉन्ग्रेस की मीरा कुमार के लोकसभा अध्यक्ष बनने के बाद नई संसद को लेकर चर्चाओं का दौर दोबारा शुरू हुआ था।
क्या दिलचस्प संयोग है कि आज नई संसद को ‘अंधविश्वास’ से जोड़ने वाले नौकरशाह भी सेंट्रल विस्टा पर कॉन्ग्रेसी प्रोपेगेंडा का हिस्सा हैं, संसद के ‘वास्तु’ पर सवाल भी कॉन्ग्रेस काल के हैं, ‘वास्तु’ पर एक रिपोर्ट पाने वाले लोकसभा अध्यक्ष की पार्टी भी आज कॉन्ग्रेस के साथ मिलकर एक प्रदेश में सरकार चला रही है!