तिब्बती धर्मगुरु दलाई लामा ने भारत में धार्मिक स्वतंत्रता को लेकर बड़ी बात कही है। उन्होंने कहा कि तिब्बती शरणार्थी हैं फिर भी वे 60 साल से भारत में जीने की आजादी का आनंद ले रहे। उन्होंने कहा कि भारत में रहने वाले तिब्बती शरणार्थियों ने लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाया है। आज तिब्बतियों की चुनी हुई सरकार सभी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन कर रही है।
चंडीगढ़ जाते वक्त ऊना में उन्होंने यह बात कही। दलाई लामा ने 2001 में तिब्बतियों से जुड़े राजनीतिक फ़ैसलों से स्वयं को अलग कर लिया था।
#WATCH Dalai Lama in Una, Himachal Pradesh: We enjoy freedom living in India, in one way I’m a refugee but I enjoy India’s freedom. pic.twitter.com/e2znfrUZmz
— ANI (@ANI) 13 October 2019
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाक़ात पर दलाई लामा ने कहा था कि दोनों देशों के बीच अच्छे संबंध होने बहुत ज़रूरी हैं। उन्होंने कहा कि भारत और चीन दोनों देशों की सभ्यताएँ बहुत पुरानी है, इसलिए दोनों देशों में अच्छे रिश्ते होने जरूरी हैं।
इस दौरान तिब्बत की आज़ादी पर पूछे गए सवाल पर उन्होंने कहा कि वर्ष 1974 में हमने तय किया था कि चीन से आज़ादी की माँग नहीं करेंगे। चीन में रहते हुए तिब्बती सिर्फ़ अपनी संस्कृति के संरक्षण के लिए कुछ अधिकारों की माँग कर रहे हैं। दलाई लामा ने कहा कि हम तिब्बती नालंदा दर्शन का अनुसरण कर रहे हैं और नालंदा दर्शन तर्क पर आधारित है। आज चीनी बुद्धिजीवी भी मानते हैं कि तिब्बती बौद्ध धर्म पौराणिक नालंदा परंपरा के अनुसार है जो पूरी तरह से विज्ञान पर आधारित है। इन बौद्ध शिक्षाओं को आधुनिक शिक्षा के साथ पढ़ाया जा सकता है।
ख़बर के अनुसार, चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की भारत यात्रा के पहले निर्वासित तिब्बत सरकार ने धर्मशाला में तीन दिन की विशेष आम सभा आयोजित की थी। इस बैठक में 24 देशों से आए 345 प्रतिनिधि शामिल हुए। इसमें पास हुए प्रस्ताव में कहा गया कि दलाई लामा अपने ‘पुनर्जन्म’ यानी उत्तराधिकारी के बारे में ख़ुद फ़ैसला करेंगे।
बैठक के बाद इंडिया टुडे से विशेष बातचीत में निर्वासित तिब्बत सरकार के प्रेसीडेंट लॉबसांग सांग्ये ने कहा कि चीन को ‘पुनर्जन्म’ जैसे मसले पर निर्णय लेने का कोई अधिकार नहीं है, इसलिए चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी को धार्मिक मामले में दख़लअंदाज़ी नहीं करनी चाहिए।