तमिलनाडु के तूतीकोरिन में वेदांता के स्टरलाइट कॉपर प्लांट को फिर से खोलने की माँग को लेकर स्थानीय लोगों ने शुक्रवार (20 दिसंबर 2024) को विरोध-प्रदर्शन किया। यह प्लांट 2018 में तमिलनाडु सरकार के आदेश पर बंद कर दिया गया था। ऐसा ही आदेश कोर्ट ने भी दिया था। भारतीय राष्ट्रीय ट्रेड यूनियन कॉन्ग्रेस (INTUC) ने इस प्रदर्शन का नेतृत्व किया। उनकी माँग है कि कॉपर प्लांट और अन्य बंद उद्योगों को दोबारा शुरू किया जाए ताकि क्षेत्र में बेरोजगारी कम हो सके।
स्टरलाइट कॉपर प्लांट के बंद होने से 1,500 प्रत्यक्ष और 40,000 अप्रत्यक्ष नौकरियाँ चली गईं। इससे न केवल स्थानीय लोगों पर असर पड़ा, बल्कि भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी बड़ा प्रभाव हुआ। प्लांट बंद होने के बाद, भारत, जो पहले तांबे का निर्यातक था, अब आयातक बन गया। 2017-18 में भारत शीर्ष पाँच तांबा कैथोड निर्यातकों में शामिल था। लेकिन प्लांट के बंद होने के बाद 2018-19 से भारत तांबे का शुद्ध आयातक बन गया।
स्टरलाइट कॉपर देश की 38% तांबे की जरूरत पूरी करता था और हर साल लगभग 4 लाख टन तांबे का उत्पादन करता था। प्लांट के बंद होने का सबसे बड़ा फायदा चीन को हुआ, जो तांबे का मुख्य उत्पादक और निर्यातक है। यह भारत के ‘आत्मनिर्भर भारत’ अभियान के लिए एक बड़ा झटका है, क्योंकि तांबा ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रिकल्स और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों के लिए आवश्यक धातु है।
भविष्य में यह स्थिति और गंभीर हो सकती है। तांबे की माँग तेजी से बढ़ रही है। साल 2030 तक, भारत को हर साल 2.5-3.5 मिलियन मीट्रिक टन तांबे की जरूरत होगी। यह माँग मुख्य रूप से अक्षय ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन, शहरीकरण और पावर ग्रिड विस्तार जैसे क्षेत्रों से आएगी।
भारत सरकार के सोलर एनर्जी अभियान के तहत, 2030 तक सोलर और विंड एनर्जी के लिए 1.5 मिलियन टन तांबे की जरूरत होगी। बिजली उत्पादन और वितरण उपकरण, जैसे अल्टरनेटर और ट्रांसफॉर्मर में तांबे का उपयोग होता है। इसके अलावा, सोलर पैनलों में भी तांबा अहम भूमिका निभाता है।
इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) की बढ़ती माँग के चलते तांबे की आवश्यकता और बढ़ेगी। एक इलेक्ट्रिक कार में औसतन 83 किलोग्राम तांबा और एक इलेक्ट्रिक बस में 224 किलोग्राम तांबा लगता है। भारत सरकार ने 2030 तक 30% इलेक्ट्रिक वाहनों का लक्ष्य रखा है, जिससे तांबे की मांग में भारी वृद्धि होगी।
तेजी से हो रहे शहरीकरण और स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट्स के तहत भी बिजली और तांबे की मांग बढ़ेगी। भारत 2030 तक अपने पावर ग्रिड को 20% तक बढ़ाने की योजना बना रहा है। बिजली के कुशल ट्रांसमिशन में तांबे की भूमिका महत्वपूर्ण है।
भारत में प्रति व्यक्ति तांबे की खपत अभी 1 किलोग्राम है, जो 2047 तक बढ़कर 3.2 किलोग्राम हो सकती है। अनुमान है कि भारत को हर 4 साल में एक नया कॉपर स्मेल्टर चाहिए। स्टरलाइट जैसे प्लांट्स को फिर से शुरू करना बहुत जरूरी है।
प्लांट के बंद होने से भारत का तांबा उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ। 2018-19 में तांबा निर्यात 90% गिर गया। 2017-18 में 3.78 लाख टन निर्यात होता था, जो 2018-19 में घटकर मात्र 48,000 टन रह गया।
CUTS इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के अनुसार, प्लांट के बंद होने से भारत को ₹14,749 करोड़ का नुकसान हुआ, जिससे न केवल अर्थव्यवस्था बल्कि तांबे की आपूर्ति पर भी असर पड़ा।
स्टरलाइट कॉपर प्लांट के बंद होने के कारण भारत की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हुआ है। कॉपर उत्पादन एक उच्च लाभ वाला निवेश है, जिसमें लगभग 400% तक का रिटर्न मिलता है। अगर देश में कॉपर का उत्पादन जारी रहता, तो यह आर्थिक विकास में बड़ा योगदान देता। लेकिन प्लांट के बंद होने से भारत को कॉपर आयात करना पड़ रहा है, जिससे अन्य देशों को लाभ हो रहा है।
चीन, पाकिस्तान और अन्य देशों को लाभ
भारत में कॉपर की माँग को पूरा करने के लिए अब बड़े पैमाने पर आयात करना पड़ रहा है। इसमें सबसे अधिक आयात चीन से हो रहा है। 2023 में चीन से भारत के कॉपर आयात की कीमत $340.12 मिलियन थी। 2023-24 में भारत ने 363,000 टन परिष्कृत कॉपर आयात किया, जो पिछले दो वर्षों में 13% की वृद्धि दर्शाता है।
भारत के निर्यात से बाहर होने से वैश्विक कॉपर आपूर्ति कम हो गई, जिसका फायदा चीनी कंपनियों ने उठाया। चीन ने अपनी मैन्युफैक्चरिंग क्षमता के जरिए बेहतर कीमत और शर्तें हासिल कीं।
इस बीच, पाकिस्तान जैसे देशों ने भारत की जगह ले ली। 2023 में पाकिस्तान का चीन को कॉपर निर्यात लगभग $752 मिलियन का था। इसके अलावा, सऊदी अरब भी बड़ा लाभार्थी बना, क्योंकि वेदांता समूह ने वहाँ $2 बिलियन का निवेश करने का फैसला किया है। यह निवेश 400 केटीपीए ग्रीनफील्ड कॉपर स्मेल्टर और रिफाइनरी तथा 300 केटीपीए कॉपर रॉड प्रोजेक्ट पर किया जाएगा।
विदेशी षड्यंत्र की आशंका
स्टरलाइट प्लांट विरोध प्रदर्शन के पीछे विदेशी फंडिंग का आरोप लगा है। तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि ने पिछले साल इन प्रदर्शनों के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ बताया था। कहा जाता है कि चीनी कंपनियों ने जिनका भारतीय कॉपर आयात में आर्थिक हित था, इन विरोध प्रदर्शनों को प्रोत्साहित और वित्त पोषित किया।
वेदांता ने मद्रास हाईकोर्ट में बताया कि चीनी कंपनियों ने इन प्रदर्शनों का समर्थन किया। इसके अलावा कई एनजीओ पर भी विदेशी धन के नियमों का उल्लंघन कर फंड लेने का आरोप लगा। इसमें चर्च समूह, टुटिकोरिन डायोसिस एसोसिएशन और मोहन सी. लाजरस जैसे ईसाई मिशनरी शामिल हैं। इनका एफसीआरए पंजीकरण 2015 में खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट के आधार पर रद्द कर दिया गया था, लेकिन कहा जाता है कि इसके बाद भी उन्होंने विदेशी धन प्राप्त किया।