सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (जुलाई 8, 2021) को फेसबुक बनाम दिल्ली विधानसभा मामले में सुनवाई करते हुए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को उन लोगों के प्रति जवाबदेह होने की नसीहत दी, जिन्होंने उसे ताकत प्रदान की है। कोर्ट ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि सोशल मीडिया के हेरफेर के कारण चुनाव और मतदान प्रक्रिया को खतरा हो सकता है।
जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ ने अपनी टिप्पणी में कहा, “विशाल शक्ति के साथ बड़ी जिम्मेदारी होनी चाहिए। फेसबुक जैसी संस्थाओं को उन लोगों के प्रति जवाबदेह रहना होगा जो उन्हें ऐसी शक्ति सौंपते हैं।” पीठ के मुताबिक, भले ही फेसबुक ने बेजुबानों को आवाज देकर और राज्य की सेंसरशिप से बचने का एक साधन देकर बोलने की स्वतंत्रता को सक्षम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन इस तथ्य को नहीं भुलाया जा सकता कि इन सबके साथ ही फेसबुक विघनकारी संदेशों और विचारधाराओं के लिए एक मंच बन गया है।
अपनी बात को समझाने के लिए पीठ ने 2016 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव को लेकर हुए विवाद की ओर इशारा किया, जिसमें रूस द्वारा कथित तौर पर फेसबुक जैसे मंचों के माध्यम से हस्तक्षेप के बारे में बताया गया है। पीठ में शामिल जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति हृषिकेश ने माना कि फेसबुक भारत में सबसे लोकप्रिय सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म है, जिसके लगभग 270 मिलियन (27 करोड़) रजिस्टर्ड यूजर्स हैं।
कोर्ट ने डिजिटल युग में सूचना विस्फोट से पैदा हुई नई चुनौतियों पर ध्यान दिलाया, “उदार लोकतंत्र का सफल संचालन तभी सुनिश्चित हो सकता है जब नागरिक सूचित निर्णय लेने में सक्षम हों। ऐसे निर्णय दृष्टिकोणों और विचारों की बहुलता को ध्यान में रखते हुए लिए जाने चाहिए। डिजिटल युग में सूचना विस्फोट नई चुनौतियों को पैदा करने में सक्षम है, जो उन मुद्दों पर बहस को कपटपूर्ण तरीके से संशोधित कर रहे हैं जहाँ राय को व्यापक रूप से विभाजित किया जा सकता है।”
कोर्ट ने मामले की सुनवाई में उक्त अवलोकन के साथ यह भी कहा कि सोशल मीडिया के कारण जहाँ आम नागरिकों और नीति बनाने वालों के बीच समान और खुले संवाद को बढ़ावा मिल रहा है, वहीं ये हित समूहों के हाथों का एक उपकरण बन गया है। इसलिए जिनके पास (सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म) इतनी विशाल शक्तियाँ हैं उन्हें जिम्मेदारी के साथ आना ही चाहिए और लोगों के प्रति जवाबदेह भी होना चाहिए।
कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर चरमपंथी विचारों को मुख्यधारा में शामिल किया जा रहा है, जिससे गलत सूचना फैलती है। स्थापित लोकतंत्र में इस तरह की लहरों के प्रभाव देखकर पीठ ने चिंता जताई। साथ ही बताया कि चुनाव और मतदान प्रक्रियाएँ, जो एक लोकतांत्रिक सरकार की नींव हैं, वे सोशल मीडिया के हेरफेर से खतरे में हैं। इसने फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म में शक्ति की बढ़ती एकाग्रता के बारे में महत्वपूर्ण बहस को जन्म दिया है और इसलिए कहा जाता है कि वे व्यवसाय मॉडल को इस तरह नियोजित करते हैं जो निजता-घुसपैठ और ध्यानाकर्षण माँगते हैं।
अदालत ने यह भी कहा कि ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, ब्रिटेन और यूरोपीय संघ जैसे देशों ने फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म को प्रभावी तरीके से विनियमित करने के प्रयास किए हैं। लेकिन उनकी कोशिश अभी भी एक प्रारंभिक चरण में हैं क्योंकि मंच की गतिशीलता और इसकी हानिकारक क्षमता को समझने के लिए अब भी अध्ययन किए जा रहे हैं। हालिया उदाहरण ऑस्ट्रेलिया का है, जो एक ऐसा कानून तैयार करने के लिए प्रयासरत है, जिसके मुताबिक पब्लिशर्स को उनकी समाचार कहानियाँ उपयोग के लिए भुगतान करने की जरूरत होगी।