सवाल करने पर जवाब सिर्फ ये दिया गया कि ‘कंटेट’ कम्युनिटी गाइडलाइन्स के विरुद्ध है।
दिलचस्प बात ये है कि इन बड़ी टेक कंपनियों की कम्युनिटी गाइडलाइन सिर्फ तभी आहत होती है जब कोई हिंदुओं की बात करे। ताजा उदाहरण ऑपइंडिया पर प्रकाशित एक वीडियो से जुड़ा है। य़े वीडियो 4 साल पहले यूट्यूब पर डाली गई थी। इस वीडियो में ऑपइंडिया के डिप्टी एडिटर अजीत झा ने बिहार के सुदूर ग्रामों में हो रहे ईसाई धर्मांतरण का मुद्दा प्रमुखता से उठाया था।
उन्होंने अपनी रिपोर्ट्स में बताया था कि कैसे मधुबनी इलाके में एनजीओ के नाम पर ईसाई मिशनरियाँ अपना घिनौना खेल खेलती हैं और हिंदू धर्म के खिलाफ घृणित बातें करते हुए ईसाई धर्म में आने के लिए कहती है। ऑपइंडिया पर उनकी ये कवरेज दो भागों में अपलोड की गई थी। एक 30 अक्टूबर 2020 को और दूसरी 31 अक्टूबर 2020 को।
वीडियो- यूट्यूब, फेसबुक, ट्विटर हर जगह थी। लेकिन अचानक अब देखा गया है कि यूट्यूब पर से उस वीडियो को हटा दिया गया है जो हमने 31 अक्टूबर 2020 को डाली थी और जिसमें ईसाई मिशनरियों के घिनौने खेल के साथ उस पादरी का चेहरा भी साफ तौर पर दिखाया गया था जो ग्रामीणों को भड़काता था।
ये कार्रवाई मास रिपोर्टिंग के कारण हुई है या किसी और टेक्निकल कारण ये तो साफ नहीं हैं लेकिन ये जरूर कहा जा सकता है कि अजीत झा की इतनी रिपोर्टों में अगर इस रिपोर्ट को निशाना बनाया गया है तो कारण सिर्फ और सिर्फ ‘ईसाई धर्मांतरण का मुद्दा’ ही नजर आता है। इसके अतिरिक्त और कुछ नहीं।
अब भले ही ईसाई धर्मांतरण की पोल खोलने वाली वीडियो यूट्यूब पर मौजूद नहीं है लेकिन आप अगर इसे देखना चाहते हैं तो ये फेसबुक पर फिलहाल मौजूद है। हमने रिपोर्ट में उसका लिंक जोड़ा है। अगर भविष्य में फेसबुक भी एक ग्राउंड रिपोर्ट को डिलीट करता तो हम इसे आप तक पहुँचाने के लिए कोई और तरीका जरूर खोजेंगे।
आप इस वीडियो देखिए और समझिए कि कैसे गरीब, लाचार लोगों का ब्रेनवॉश करके उन्हें धर्मांतरित किया जाता होगा। उन्हें हिंदू धर्म से घृणा करवाई जाती होगी और धर्म परिवर्तन को सही बताया जाता होगा।
मालूम हो कि पहली बार नहीं है कि किसी मामले को लेकर बड़ी टेक कंपनियों के वामपंथी रवैये पर सवाल खड़ा किया जा रहा हो। इनका प्रभाव फेसबुक पोस्ट से लेकर इंस्टा की रीच तक पर आप देख सकते हैं।
जहाँ हिंदू को काफिर कहकर मारने की बात करने वाली रील मिलियन तक पहुँचती है और फिर भी उस पर कोई कार्रवाई नहीं होती। वहीं हिंदूवादी पोस्ट को कम्युनिटी गाइडलाइन के विरुद्ध कहकर खारिज कर दिया जाता है।
जहाँ फेक न्यूज फैलाने वाले पोस्टों पर कार्रवाई नहीं होती, लेकिन अगर कोई उस फेक न्यूज की पोल खोल दे तो उस पोस्ट को हाइड कर दिया जाता है। तमाम यूट्यूबर्स और अन्य सोशल मीडिया कंटेंट क्रिएटर इन समस्याओं से रोज जूझते हैं। सबका इलाज सिर्फ इन टेक कंपनियों को मेल करना नहीं हो सकता।
ये भी पता हो कि ये वामपंथी लॉबी सिर्फ हिंदुत्व की विचारधारा के खिलाफ अपनी सक्रियता नहीं दिखाती बल्कि इन्हें दक्षिणपंथी विचार वाले लोगों से समस्या है। 2020 में इन कंपनियों पर आरोप भी लगे थे कि ये चुनावों के वक्त सोशल मीडिया यूजर्स को मैनिपुलेट करने का काम कर रही थीं।
इनकी विश्वसनीयता किस आधार पर आँकी जाए ये कहना मुश्किल है लेकिन ये जरूर है कि आप अगर यूट्यूब, फेसबुक जैसे प्लेटफॉर्म पर दिखाए जाने वाले कंटेंट को देखेंगे तो पाएँगे कि काम की वीडियोज से ज्यादा वो वीडियो आपके सामने होंगी जिनसे या तो आपके विचारों शून्य हो जाएँ या फिर वैसे हों जैसे वो चाहते हैं। आपके फीड में किसी वामपंथी का प्रोपगेंडा 3 मिलियन से 30 मिलियन तक पहुँचता दिखाई देगा लेकिन अगर कोई हिंदू वादी आवाज उठा ले, धर्मांतरण के खिलाफ बोल दे तो उसका वही होगा जो इस टेक कंपनी में बैठे लोग चाहते हैं। संभव है कभी उसे 30 हजार व्यूज के लिए मशक्कत करना पड़े तो कभी 3 हजार का।