Sunday, November 17, 2024
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वीर सावरकर के नाम पर फिर बिलबिलाए कॉन्ग्रेसी; कभी इसी कारण से पं हृदयनाथ को करवाया था AIR से बाहर

विक्रम संपत बताते हैं कि जब यह साबित हो गया था कि वीर सावरकर का महात्मा गाँधी की हत्या से कोई संबंध नहीं था। फिर भी उन्हें गाँधी की हत्या के सह-साजिशकर्ताओं में से एक के रूप में पेश करने के लिए नैरेटिव गढ़ा गया।

स्वतंत्रता सेनानी वीर सावरकर पर लेखक विक्रम संपत की हालिया किताब, ‘सावरकर: ए कंटेस्टेड लिगेसी, 1924-1966′ के आने के बाद बवाल हो रखा है। इस किताब को लेखक ने 26 जुलाई 2021 को इसे रिलीज किया था। लेकिन इसके बाद से कॉन्ग्रेसियों ने, वामपंथियों ने एक बार फिर वीर सावरकर की प्रतिष्ठा को धूमिल करने का काम शुरू कर दिया।

इसी क्रम में टाइम्स नाऊ को दिए एक इंटरव्यू में संपत ने वामपंथी विचारधारा वाले बुद्धिजीवियों के पाखंड को उजागर किया और बताया कि कैसे ये लोग मान चुके हैं कि अभिव्यक्ति की आजादी का हक सिर्फ इन्हीं लोगों के पास है। उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो में पंडित हृदयनाथ मंगेशकर की बर्खास्तगी का उल्लेख करते हुए इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे कॉन्ग्रेस सरकारों और उनके नेताओं ने वीर सावरकर को बहिष्कृत किया और उन लोगों को दंडित किया जो स्वतंत्रता सेनानी की निंदा नहीं करते थे।

इतिहासकार विक्रम संपत कहते हैं, “लिबरल किसी भी अलग दृष्टिकोण को पनपने नहीं देते हैं। भारत में विशेष रूप से, एक बहुत ही संकीर्ण नैरेटिव है जिसे इतिहास के रूप में आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।”

संपत कहते हैं कि भारतीय इतिहास के कई पहलुओं को छुपाया गया है, विशेष रूप से महात्मा गाँधी की हत्या के बाद महाराष्ट्र में ब्राह्मणों का नरसंहार। उन्होंने तत्कालीन कॉन्ग्रेस नेताओं पर ब्राह्मण विरोधी नरसंहार के पीछे होने का आरोप लगाया और कहा कि इतिहास के पन्नों को जानबूझकर हटा दिया गया है।

सावरकर के बारे में, संपत ने कहा कि जब यह साबित हो गया था कि वीर सावरकर का महात्मा गाँधी की हत्या से कोई संबंध नहीं था। फिर भी उन्हें गाँधी की हत्या के सह-साजिशकर्ताओं में से एक के रूप में पेश करने के लिए नैरेटिव गढ़ा गया। उन्होंने आगे बताया कि कैसे वीर सावरकर के पक्ष में बोलने वाली आवाजों को दबाया था और उन लोगों के खिलाफ “कैंसिल कल्चर” को बढ़ावा दिया गया था जिन्होंने सावरकर का महिमामंडन किया या हिंदुत्व को लेकर जो कॉन्ग्रेस का नैरेटिव था उसे नहीं माना।

उन्होंने बताया कि कैसे कॉन्ग्रेस सरकार के शासनकाल में म्यूजिक डायरेक्टर हृदयनाथ मंगेशकर को ऑल इंडिया रेडियो से निकाल दिया गया था क्योंकि उन्होंने वीर सावरकर के मराठी गाने को संगीत बद्ध किया था।

जब कॉन्ग्रेस ने पंडित हृदयनाथ को AIR से करवाया बाहर

बता दें कि एक समय में हृदयनाथ और उनकी बहनें, लता मंगेशकर और उषा मंगेशकर वीर सावरकर की कविता को संगीतबद्ध कर चुके थे। लेकिन कॉन्ग्रेस को यह चीज नहीं पसंद आई और उन्होंने पंडित हृदयनाथ को AIR से निकलवा दिया। इस बात को स्वयं हृदयनाथ मंगेशकर ने कई सालों बाद एबीपी माझा को दिए इंटरव्यू में कहा था। उन्होंने 53 मिनट के इंटरव्यू में बताया था कि उन्हें एक बार AIR की नौकरी से हाथ धोना पड़ा था, सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्होंने वीर सावरकर की प्रतिष्ठित कविता का एक संगीतमय गायन बनाने का साहस किया था जिसमें उन्होंने उन्हें मातृभूमि में वापस ले जाने के लिए समुद्र की प्रशंसा की थी।

अपने मराठी इंटरव्यू में उन्होंने कहा था, “मैं उस समय ऑल इंडिया रेडियो में काम कर रहा था। मैं 17 साल का था और मेरी तनख्वाह 500 रुपए प्रति माह थी। यह आज मूंगफली भर हो सकती है, लेकिन उस समय 500 रुपए एक बड़ा मोटा वेतन माना जाता था … संक्षेप में कहूँ तो मुझे ऑल इंडिया रेडियो से निकाल दिया गया था क्योंकि मैंने वीर सावरकर की प्रसिद्ध कविता ‘ने मजसी ने परत मातृभूमि, सागर प्राण’ के लिए एक संगीत रचना बनाने का विकल्प चुना था।”

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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