Sunday, November 17, 2024
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डोडा नरसंहार: गाँव में घुसे 10-12 आतंकी, हिंदुओं को लाइन में खड़ा किया, 3 साल की बच्ची समेत 22 को मारी गोली

डोडा के थावा गॉंव में रात के 2:30 बजे आतंकवादी गाँव में घुसे। धर्म पूछकर लोगों को घर से बाहर निकाला। हिन्दुओं को बाहर लाइन में खड़ा कर दिया। फिर इस्लामिक आतंकवादियों ने 22 हिन्दुओ को गोलियों से भून दिया।

जम्मू-कश्मीर में इस्लामिक आतंकवादियों ने समय-समय पर हिन्दुओं का नृशंस नरसंहार किया है। अप्रैल 30, 2006 को जम्मू स्थित डोडा में अंजाम दिया गया नरसंहार एक ऐसी घटना है जिस पर भारतीय मीडिया और लिबरल गिरोह बात करना पसंद नहीं करता है। डोडा और उधमपुर जिलों में दो अलग-अलग आतंकवादी हमलों में कम से कम 35 हिंदू ग्रामीण मार दिए गए थे।

कुल्हड़ और थरवा के पहाड़ पर रहने वाले हिन्दुओं को रात में उनके घरों के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई, जिनमें एक तीन साल की बच्ची भी शामिल थी। इसके अलावा तेरह हिन्दू चरवाहों की हत्या ललन गल्ला के उत्तरी इलाके में की गई थी, यह बसंतगढ़ शहर के ऊपर एक ऊँची घास का मैदान है।

अप्रैल 30, 2020 को इस घटना को चौदह साल पूरे हो चुके हैं।

क्या हुआ था 2006 के डोडा नरसंहार में

अप्रैल 30, 2006 के दिन डोडा ज़िले के थावा गाँव में 10-12 इस्लामिक आतंकवादियों ने निहत्थे गाँव वालों पर हमला कर दिया। रात के अँधेरे में आए आतंकवादी सेना की वर्दी पहने हुए थे। रात के 2:30 बजे आतंकवादी गाँव में घुसे तो सबका धर्म पूछकर उन्हें घर से बाहर निकाला। जो हिन्दू थे उनको बाहर निकालकर लाइन में खड़ा कर दिया गया और फिर इस्लामिक आतंकवादियों ने 22 हिन्दुओ को गोलियों से भून दिया। इसमें एक 3 साल की बच्ची भी थी।

आतंकियों ने तीन साल की बच्ची तक को नहीं छोड़ा

इस घटना के बाद ग्रामीण हिन्दू मदद के लिए पास के एक सेना शिविर में गए। अगली सुबह जब सैनिक वापस आए आतंकी वहाँ से भाग चुके थे।

इसी हमले के साथ उधमपुर ज़िले के बसंतगढ़ क्षेत्र में लालों गाँव में भी आतंकवादियों ने 13 हिन्दू चरवाहों का अपहरण किया और उन्हें गोलियों से छलनी कर दिया। दोनों ही नरसंहारों के लिए पाकिस्तान समर्थित लश्कर-ए-तय्यबा (Lashkar-e-Taiba) ज़िम्मेदार था। माना जाता है कि इस नरसंहार का ध्येय भारत सरकार और हुर्रियत कॉफ्रेंस के बीच होने वाली वार्ता को रोकना था।

दरअसल, उस दौरान कश्मीर घाटी में अलगाववादियों ने चुनाव बहिष्कार का ऐलान किया था। इसके बावजूद जम्मू क्षेत्र के हिन्दुओं ने चुनाव में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था, जिसका खामियाजा उन्हें इस नरसंहार के रूप में भुगतना पड़ा।

केंद्र में उस दौरान कॉन्ग्रेस की सरकार हुआ करती थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन मुख्यमंत्री गुलाम नबी आज़ाद, दोनों ने इन सामूहिक हत्याओं की निंदा की थी। 1989 में कश्मीर में सशस्त्र अलगाववादी विद्रोह शुरू होने के बाद से 2006 के नरसंहार की घटना तक वहाँ पर 60,000 से अधिक लोग मारे जा चुके थे।

1989 से हुई थी कश्मीर में हिन्दुओं पर अत्याचार की शुरुआत

कश्मीर में हिंदुओं पर अत्याचारों का सिलसिला वर्ष 1989 में जिहाद के लिए गठित जमात-ए-इस्लामी ने शुरू किया था। इस संगठन ने कश्मीर में इस्लामिक ड्रेस कोड लागू कर दिया और नारा दिया – “हम सब एक, तुम भागो या मरो।”

इसके बाद कश्मीरी पंडितों ने बड़ी संख्या में घाटी छोड़ दी, उन्हें अपने पुश्तैनी जमीन-मकान और परिवार को मजबूरन छोड़ना पड़ा। बड़ी सम्पत्ति के मालिक कश्मीरी पंडित अपनी पुश्तैनी जमीन-जायदाद छोड़कर रिफ्यूजी कैंपों में रहने को मजबूर हो गए।

इस दौरान इस्लामिक आतंकियों ने 300 से अधिक हिंदू महिला और पुरुषों की हत्या की। घाटी में कश्मीरी पंडितों के बुरे दिनों की शुरुआत 14 सितंबर 1989 से हुई जब भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और वकील कश्मीरी पंडित, तिलक लाल टपलू की जेकेएलएफ (JKLF) ने हत्या कर दी।

मस्जिदों से घाटी छोड़ने के ऐलान

एक स्थानीय उर्दू अखबार ‘हिज्ब-उल-मुजाहिदीन’ की तरफ से ऐसी प्रेस विज्ञप्ति प्रकाशित की गईं जिसमें लिखा था कि सभी हिंदू अपना सामान बाँधें और कश्मीर छोड़ कर चले जाएँ। इसी के साथ कई अन्य स्थानीय समाचार-पत्र इस निष्कासन के आदेश को दोहराने लगे।

इस्लामिक आतंकवाद की पराकाष्ठा यह थी कि मस्जिदों में भारत एवं हिंदू विरोधी भाषण दिए जाने लगे। सभी कश्मीरियों को इस्लामिक ड्रेस कोड अपनाने की सलाह दी जाने लगीं ताकि हिन्दुओं को पहचानना आसान रहे। इसके बाद जस्टिस नीलकंठ गंजू की भी गोली मारकर हत्या कर दी गई। उस दौर के अधिकतर हिंदू नेताओं की हत्या एक के बाद एक सिलसिलेवार तरीके से कर दी गई। घाटी में हिन्दू महिलाओं के साथ सरेआम बलात्कार किए जाने लगे।

एक कश्मीरी पंडित नर्स के साथ आतंकियों ने सामूहिक बलात्कार किया और उसके बाद पीट-पीटकर उसकी हत्या कर दी। घाटी में मौजूद कई कश्मीरी पंडितों की बस्तियों में सामूहिक बलात्कार और लड़कियों के अपहरण की घटनाएँ होती रहीं और हिन्दुओं के हालात बदतर होते गए।

घाटी में अब जाकर केंद्र सरकार ने इस्लामिक आतंक पर काबू पाने की दिशा में गंभीरता से प्रयास किए हैं। जम्मू-कश्मीर में वर्षों से चले आ रहे अनुच्छेद 370 के कुछ प्रावधानों को निरस्त करना केंद्र सरकार की प्रबल इच्छाशक्ति का ही उदाहरण है। हालाँकि, इस पर आज तक भी देशभर में कम्युनिस्ट और वाम-उदारवादियों का विरोध देखने को मिल रहा है। इसके पीछे एक प्रमुख वजह कम्युनिस्टों की आतंकवादियों के लिए दबी हुई निष्ठा और हिन्दुओं से घृणा भी है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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