कारगिल विजय दिवस की 22 वीं वर्षगाँठ पर आज पूरा देश उन वीर सपूतों को याद कर रहा है जिन्होंने 26 जुलाई 1999 को अपने शौर्य का परिचय देते हुए पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़ डाला था। इसी क्रम में कल ही अमेज़न प्राइम पर ‘शेरशाह’ का ट्रेलर भी रिलीज हुआ है। ये फिल्म कारगिल के ही जाँबाज़ विक्रम बत्रा की कहानी है। वही विक्रम बत्रा जिन्होंने युद्ध के समय पेप्सी बेचने के लिए इस्तेमाल हुई टैगलाइन ‘दिल माँगे मोर’ को भारतीय सेना का नारा बना दिया था।
आज कोई संयोग नहीं है कि ट्विटर पर ‘विक्रम बत्रा’ ट्रेंड हो रहा है और लोग उनके कोट शेयर कर रहे हैं। हर साल 26 जुलाई आने के साथ सोशल मीडिया पर ऐसा नजारा देखने को मिलता है और इस बार जब पूरी एक फिल्म उन्हीं की कहानी पर आधारित हो तो चर्चा और भी प्रासंगिक हो जाती है।
What tribute can a reel hero give to a real hero. Except that your sacrifice inspired us for life, Param Vir Chakra Awardee Captain Vikram Batra! Honoured to share my birthday with you. Sharing the trailer of #Shershaah,the story of your heroic sacrifice.https://t.co/XZpmNSvYsM
— Akshay Kumar (@akshaykumar) July 25, 2021
बॉलीवुड एक्टर अक्षय कुमार ने अपने ट्वीट में लिखा है, “एक पर्दे का हीरो असली हीरो को क्या ट्रिब्यूट दे सकता है। सिवाय इसके कि आपके बलिदान ने हमें जीवन जीने के लिए प्रेरित किया, परम वीर चक्र पुरस्कार विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा! मेरा जन्मदिन आपके साथ आता है, मैं इसके लिए सम्मानित हूँ। शेरशाह का ट्रेलर साझा कर रहा हूँ। एक वीर बलिदान की कहानी।”
#ShershaahTrailer 🔥
— Shruti (@kadak_chai_) July 26, 2021
I can see only #VikramBatra sir in sidharth’s place!
Waiting for this movie to watch the real story of real hero#KargilWar #KargilVijayDiwas pic.twitter.com/tQQr7n2rOs
वहीं तमाम सोशल मीडिया यूजर्स हैं जो ‘शेरशाह’ के ट्रेलर की सराहना कर रहे हैं। साथ में बत्रा के उन शब्दों को याद कर रहे हैं, जब उन्होंने कहा था, “या तो तिरंगा फहरा कर आऊँगा वरना तिरंगे में लिपट कर आऊँगा।” उनके उस इंटरव्यू की क्लिप भी इंटरनेट पर शेयर हो रही है जिसमें उन्होंने बताया था कि कैसे भारतीय सेना के जवान ‘दिल माँगे मोर’ की तर्ज पर पाकिस्तानियों को शिकस्त देने में लगे थे।
विक्रम बत्रा का जीवन
हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले के छोटे से शहर पालमपुर में जीएल बत्रा के घर 9 सितंबर 1974 को जन्मे दो बेटों में से एक विक्रम बत्रा थे। विक्रम का बचपन सामान्य था लेकिन समय के साथ उन्हें देख उनके पिता को पता चला कि उनके बेटे के सपने सामान्य नहीं है।
विक्रम ने अपनी शुरुआती पढ़ाई पालमपुर से करने के बाद चंडीगढ़ का रुख किया। वहाँ कॉलेज की पढ़ाई पूरी हुई और उनका सिलेक्शन भी मर्चेंट नेवी और इंडियन आर्मी में हो गया। शायद उस समय सबको लगा हो कि विक्रम नेवी की नौकरी चुनेंगे, लेकिन हैरानी सबको तब हुई जब उन्होंने देश सेवा के लिए भारतीय सेना में जाना चुना। भारतीय सेना का विकल्प चुनते हुए कैप्टन विक्रम बत्रा ने अपनी माँ से कहा था, “माँ पैसा ही सब कुछ नहीं होता, मुझे देश के लिए कुछ करना है।”
इसके बाद विक्रम बत्रा बतौर लेफ्टिनेंट 13 जम्मू-कश्मीर राइफ़ल्स का हिस्सा बने और उनकी पोस्टिंग द्रास सेक्टर के कारगिल में हुई। भारत हमेशा से ही शांति का दूत रहा है तो, 1999 में भी भारत शांति ही चाहता था। उस समय जब शांति का संदेश लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लाहौर की बस यात्रा की थी। तब पाकिस्तान ने चुपचाप जम्मू-कश्मीर के कारगिल में द्रास सेक्टर की पहाड़ियों में अपना क़ब्ज़ा जमा लिया था। वहाँ अपने बंकर्स बनाकर वह भारत पर हमला करने की योजना बना रहा था, लेकिन भारतीय सेना ने उसे विफल कर दिया।
चूँकि, उस समय विक्रम बत्रा कारगिल पर ही थे, तो उन्हें और उनके साथियों को श्रीनगर लेह हाईवे के करीब प्वाइंट 5410 को हर हाल में दुश्मन से वापस छीनना था। इसी लड़ाई में विक्रम बत्रा ने अपने अदम्य साहस का परिचय दिया और 20 जून 1999 की सुबह 3:30 बजे विक्रम बत्रा और उनके साथियों ने इस महत्वपूर्ण चोटी पर फिर से तिरंगा लहरा दिया। इस जीत के बाद विक्रम बत्रा ने कहा था, “यह दिल माँगे मोर।” और उसी वक़्त से यह नारा बन गया हिंदुस्तानी फ़ौज का मंत्र। विक्रम बत्रा के जज़्बे को देखते हुए यूनिट ने उनको नया नाम दिया ‘शेरशाह’ यानी ‘शेरशाह ऑफ़ कारगिल’। पाकिस्तानी फ़ौज में विक्रम बत्रा का इतना डर था कि उन्हें मारने के लिए उन्होंने जो योजना बनाई उसका नाम ‘ऑपरेशन शेरशाह’ रखा।
एक जीत के बाद कैप्टन बत्रा आगे अपने साथियों के साथ प्वाइंट 4875 को दुश्मन के क़ब्ज़े से छुड़ाने निकल गए। यह वो जगह थी जहाँ से श्रीनगर लेह राजमार्ग पर दुश्मन अपना दबदबा बनाए रख सकता था। इसे खाली कराना बहुत जरूरी था। लेकिन, वहाँ पहुँचना बेहद जोख़िम भरा था। 17,000 फीट की ऊँची पहाड़ी और सीधी चढ़ाई कोई आसान काम नहीं था। लेकिन आसान काम विक्रम बत्रा को पसंद भी कहाँ था। गोलियाँ चल रही थीं, गोले बरस रहे थे। मगर, विक्रम बत्रा और उनके साथियों के पाँव एक क्षण के लिए भी नहीं डगमगाए। यह लड़ाई क़रीब 36 घंटे तक चली। 7 जुलाई 1999 को लड़ी गई इस लड़ाई में अपने जूनियर लेफ्टिनेंट नवीन को बचाते हुए विक्रम बत्रा वीरगति को प्राप्त हो गए। युद्ध के दौरान दिखे उनके जज्बे और बलिदान के मद्देनजर 26 जनवरी 2000 को उन्हें परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
क्या कहते हैं माता-पिता?
विक्रम बत्रा की माँ का कहना है कि देश के युवाओं को आर्मी ज्वॉइन करनी चाहिए और जब भी देश के लिए बलिदान होने का मौक़ा मिले तो उसे गँवाना नहीं चाहिए। वही उनके पिता समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए कहते हैं, “केंद्र सरकार ने (कारगिल) युद्ध के दौरान की गई सभी प्रतिबद्धताओं को पूरा किया है। हमें पड़ोसी मुल्क से अवगत होना चाहिए और भविष्य में देश के लिए बलिदान देने के लिए तैयार रहना चाहिए। मैंने माध्यमिक विद्यालय पाठ्यक्रम में परमवीर चक्र पुरस्कार विजेता सैनिकों की जीवनी सिखाई है ताकि हमारी युवा पीढ़ी को भी प्रेरणा मिले। साथ ही, मैं केंद्र से अनुरोध करता हूँ कि शहीदों के परिवार के सदस्यों / रिश्तेदारों को नियमित रूप से सामाजिक कार्य गतिविधियों को अंजाम देने में सहयोग करें।”