किसी पांच सितारा में जाने पर सबसे बड़ी समस्या खाने का ऑर्डर देना भी हो सकता है- वैसे तो खाने का तरीका, कौन सा चम्मच-काँटा या विधि इस्तेमाल करनी है, आदि भी तय करना मुश्किल ही होता है। ऊपर से व्यंजनों के नाम कुछ ऐसे होते हैं, जिनसे शाकाहारी-माँसाहारी का फर्क पता न चले। खाने में स्वाद जाना-पहचाना-सा होगा, या कुछ अजीब, उबला-सा परोस देंगे, यह भी तय कर पाना मुश्किल है। अब, जब ऐसी ‘विकट’ समस्याओं के बीच एक गरीब, मासूम, अंग्रेजी कम जानने वाला, भटका हुआ नौजवान पहली बार 5-सितारा में ऑर्डर देने बैठा तो मेनू को गौर से पढ़ने लगा। चूँकि बिहार से कई लोग महानगरों में नौकरी करने जाते हैं और नौजवान की किस्मत अच्छी थी, इसलिए उसकी टेबल का वेटर भी बिहारी निकला।
उसने नौजवान की समस्या भाँप ली और मेनू में वेज सेक्शन की तरफ़ जाने का इशारा किया। वहां कोफ्ते का एक सेक्शन था और यह नौजवान कोफ्ते क्या होते हैं इतना तो जानता था। व्यंजन का विवरण पढ़कर उसने कद्दू (लौकी)–अंगूर के कोफ्ते का आर्डर कर दिया। नान और कोफ्ते ख़त्म करने के बाद उसने बिल भरा और जब वेटर बिल लेकर वापस आया तो उसने पूछा, “भाई, एक बात बताओ। ये कोफ्ते कद्दू (लौकी) के थे, वो तो ठीक है। मगर ये बताओ कि इसमें अंगूर कहाँ थे?” वेटर ने जवाब दिया, “सर, दोनों चीज़ें इस कोफ्ते को बनाने के लिए बिलकुल बराबर मात्रा में मिलाई जाती हैं। एक लौकी पर एक अंगूर, अगर दस लौकी (कद्दू) का बने तो रसोइया पूरे दस अंगूर डालता है!”
मात्रा बड़ी महत्वपूर्ण चीज़ होती है। सिर्फ खाने में ही नहीं, भाषा में भी मात्रा का अपना महत्व है। हिंदी और भारत की दूसरी कई भाषाओं में इसके होने या न होने से कई बार शब्दों के अर्थ बदल जाते हैं और अनर्थ हो जाता है। ऐसा ही एक किस्सा सम्राट अशोक के काल का है। किस्से-कहानियों से गायब होने के कारण अशोक का ऐसे तो ज्यादा जिक्र नहीं आता, लेकिन उनकी एक पत्नी का जिक्र बौद्ध ग्रंथों में कई बार आता है। ये पत्नी थी तिष्यरक्षिता, जो कि अत्यंत कामुक मानी जाती थी। अशोक शायद वृद्ध हो चुके थे जब उनका तिष्यरक्षिता से विवाह हुआ। माना जाता है कि इस वजह से तिष्यरक्षिता का ध्यान अन्य पुरुषों पर रहता था। एक मान्यता में उनकी निगाह अशोक के ही एक पुत्र कुणाल पर थी। लेकिन कुणाल उनके प्रयासों को कोई भाव नहीं देता था, इसलिए वो उस से नाराज रहती थी।
दूसरी प्रचलित मान्यता ये है कि वो अपने पुत्र को राजा बनते देखना चाहती थी, जबकि अशोक कुणाल को अगला मौर्य सम्राट बनाना चाहते थे। इस वजह से तिष्यरक्षिता, कुमार कुणाल से खार खाए बैठी थी। जो भी वजह हो, उनकी कुणाल से शत्रुता का अंत बड़ा भयावह निकला। कहते हैं कि कुणाल को अगले राजा के रूप में शिक्षित करने के लिए अशोक ने अपने मंत्रियों को पत्र लिखा “कुमार अधियती”। पत्र किसी तरह तिष्यरक्षिता के हाथ लग गया और उन्होंने अपनी आँख के काजल से उसमें एक बिंदी बना दी। अनुस्वार की मात्रा पड़ते ही पत्र हो गया “कुमार अंधियती”। अधियती का मतलब जहाँ “शिक्षा दो” होता है, अंधियती का मतलब था “अन्धा कर दो” और अन्धा राजा नहीं बन सकता था। नेत्रहीन कुणाल बाद में अपनी बहन के साथ लंका में बौद्ध धर्म प्रचार के लिए चले गए, और मौर्य वंश नाश की ओर बढ़ गया।
बाकी, हिन्दी भाषा में मात्रा उच्चारण के हिसाब से लगती है- जो आप बोलते हैं, पक्का-पक्का वही लिखा जाता है। जो अशुद्ध हिंदी लिखते हैं, वो ज़्यादातर उच्चारण भी अशुद्ध ही कर रहे होंगे। हिंदी दिवस पर “चंद्रबिंदुओं की रक्षिका” जैसे मठाधीशों के साथ-साथ मेरे जैसे लोग जो मात्राओं की गलतियाँ करते रहते हैं, उन तक भी शुभकामनाएँ पहुँचें!