साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कहा है, “निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटन न हिय के सूल।” अर्थात- मातृभाषा की उन्नति बिना किसी भी समाज की तरक्की संभव नहीं है एवं अपनी भाषा के ज्ञान के बिना मन की पीड़ा को दूर करना भी मुश्किल है।
ऐसा ही मानना है कश्मीरी पंडित मेनका हंडू (Meanka Handu) का। अगर हम आज के परिदृश्य को देखें तो ऐसा लगता है कि जैसे-जैसे टेक्नोलॉजी का विस्तार हो रहा है, वैसे-वैसे हम ग्लोबल तो हो रहे हैं, लेकिन अपनी भाषा को नजरअंदाज करते जा रहे हैं और वह हमसे दूर छूटती जा रही है।
हालाँकि, सच्चाई तो यह है कि चाहे कोई कितना भी अपनी मातृभाषा में बातचीत को जीवित रखने के महत्व को नजरअंदाज कर लें, लेकिन उससे आँखें नहीं मूँद सकता, क्योंकि भाषा केवल शब्दों या वाक्यों के तार से कहीं अधिक यह संस्कृति और इतिहास, परंपराओं और मूल्यों की पीढ़ीगत भंडार है।
मेनका हंडू एक ऐसी ही चैंपियन हैं, जो अपनी भाषा को बचाने में अहम भूमिका निभा रही हैं। कश्मीरी भाषाओं की अनदेखी मेनका को कचोटती है और वह कश्मीरियों को इसके महत्व का अहसास कराना चाहती हैं। 7 साल की उम्र में कश्मीर से विस्थापित होने वाली मेनका के जेहन में आज भी कश्मीर रचा-बसा है और इसे वह अपनी जबान में बेहद ही मजाकिया तरीके से अपने यूट्यूब चैनल ‘Asvun Koshur’ पर पेश करती हैं। ‘Asvun Koshur’ का हिंदी में मतलब होता है- हँसता हुआ कश्मीरी (‘Smiling Kashmiri’)। इस चैनल के जरिए वह लोगों के सामने कश्मीर का हँसता हुआ चेहरा पेश करती हैं।
अपने इस मिशन के बारे में ऑपइंडिया से बात करते हुए उन्होंने कहा, “मैंने यह यूट्यूब चैनल कश्मीरी भाषा को संरक्षित करने के लिए शुरू किया है। कश्मीरी लोग इस भाषा में बात नहीं करते हैं। बच्चों को स्कूलों में या घर पर भी कश्मीरी में बोलने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाता है, जिसकी वजह से यह लगभग लुप्त सा होता जा रहा है। लोग ज्यादातर अंग्रेजी या उर्दू में बात करते हैं। इसका मुझे बहुत दुख होता है, क्योंकि मैं एक संस्कृति से जुड़े हुए परिवार से आती हूँ। हम लोग कश्मीरी संस्कृति, पर्व-त्योहार को मनाते हैं। घर पर अपने परिवार के साथ कश्मीरी में बात करते हैं। जब हम देखते हैं कि आजकल की पीढ़ी कश्मीरी में बात नहीं करती हैं तो काफी बुरा लगता है। अगर आप किसी को औपचारिक तौर पर जबान (भाषा) पढ़ाएँगे तो वह टीचर बन जाता है और यह काफी बोरिंग भी हो जाता है। इसलिए मैं ह्यूमर के जरिए लोगों तक अपनी बात पहुँचाती हूँ। इसमें मैं सामाजिक मुद्दों, त्रुटियों आदि को कटाक्ष के जरिए बताती हूँ। इससे फायदा यह होता है कि लोग हँस भी लेते हैं और सीख कर भी जाते हैं।”
अपने यूट्यूब चैनल पर मिलने वाली प्रतिक्रिया पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि अप्रैल 2017 में उन्होंने यह चैनल शुरू किया और उन्हें काफी पॉजिटिव रिसपॉन्स मिल रहा है। लोग इससे खुद को जुड़ा हुआ महसूस करते हैं। वह कहती हैं, “मुझे अपनी कश्मीरी संस्कृति से प्यार है। मैं मानती हूँ कि भाषा किसी भी संस्कृति की रीढ़ की हड्डी होती है और इसे संरक्षित करने की जरूरत है।” यूट्यूब चैनल में वह ‘दीदा’ (Dida) कैरेक्टर प्ले करती हैं। इस बारे में पूछे जाने पर वह कहती हैं, “दीदा का मतलब होता है- दीदी, यानी कि घर की बड़ी बेटी। मैं भी अपने घर की बड़ी बेटी हूँ तो सभी लोग मुझे दीदा कहते हैं। यह एक तरह से मेरा निकनेम है और इससे जुड़ाव महसूस करते हैं। उन्हें लगता है कि उनका कोई अपना उनसे उनकी जबान में बात कर रहा है।”
सामाजिक मुद्दों पर अपनी राय रखते हुए मेनका ने एक उदाहरण दिया, “कहा जाता है कि लड़कों को सिर्फ अपने से छोटी लड़की से शादी करनी चाहिए, बड़ी लड़की से नहीं करनी चाहिए। यह एक मुद्दा है। मैंने इस वजह से बहुत सारे दिल टूटते हुए देखे हैं। रिश्ते सिर्फ इसलिए टूट जाते हैं, क्योंकि लड़की बड़ी थी और लड़के के माता-पिता उनकी शादी के लिए राजी नहीं थे। ऐसा किसी ऋषि-मुनि ने नहीं कहा है और न ही ऐसा किसी ग्रंथ में लिखा है। मैं जो करती हूँ उससे लोग जुड़ा महसूस करते हैं, क्योंकि मैं बेजुबानों की आवाज बनने की कोशिश करती हूँ। इसी तरह, मैंने नशीली दवाओं के दुरुपयोग, बॉडी शेमिंग, बच्चों पर माता-पिता का दबाव, स्वास्थ्य और स्वच्छता आदि पर वीडियो बनाए हैं।”
आगे उन्होंने फरवरी 2021 में बच्चों को कश्मीरी भाषा और संस्कृति से जोड़े जाने को लेकर किए गए प्रोग्राम के बारे में बताया। इस प्रोग्राम का नाम था- Project Asvun Koshur- Zaan (इसमें Asvun Koshur टूट्यूब चैनल का नाम है और Zaan का मतलब एक दूसरे को जानना)। मेनका ने इस पर सात एपिसोड बनाए थे। उन्होंने कहा कि Project Asvun Koshur- Zaan कश्मीरी पंडित, मुस्लिम और सिख समुदायों के बच्चों को एक साथ लाने का एक प्रयास था। इसमें बच्चों ने हमारी साझा संस्कृति को समझने और सकारात्मकता फैलाने के इरादे से बातचीत किया। इसमें उन्होंने कश्मीरी भाषा सीखने में उनकी मदद की और कवियों, कलाकारों आदि के बारे में बताया।
इस पर उन्हें तीनों समुदायों (हिंदू, मुस्लिम और सिख) की तरफ से जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली। इसके साथ ही वह लोगों से अपील करती हैं कि कलाकारों का शोषण न किया जाए। कलाकार की कद्र करनी चाहिए। उन्हें इस तरह से फ्री में शो में बुलाकर उनकी कला का अपमान नहीं करना चाहिए। मेनका की एक खास बात यह है कि वह प्रोग्राम के लिए स्क्रिप्ट नहीं लिखती हैं, सिर्फ आउटलाइन बनाती हैं।
बता दें कि मेनका एक कलाकार होने के साथ-साथ बॉम्बे यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर इंजीनियर हैं। वह पर्सनालिटी डेवलपमेंट ट्रेनिंग, प्रोडक्ट ट्रेनिंग और आईटी से संबंधित ट्रेनिंग करवाती हैं। इसके अलावा वह लिखती भी हैं। वह मूल रूप से भाषा को संरक्षित करने के लिए करती हैं।