प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार (1 अप्रैल 2022) को ‘परीक्षा पे चर्चा’ कार्यक्रम के 5वें संस्करण में विद्यार्थियों को एग्जाम के तनाव से बचने का गुर बताया। परीक्षा से पहले भय और नंबर कम आने से जुड़े प्रश्नों पर पीएम मोदी ने कहा कि परीक्षा जीवन का सहज हिस्सा है। यह आपकी विकास यात्रा का हिस्सा है। आप कई बार एग्जाम दे चुके हैं। परीक्षा के अनुभवों को अपनी ताकत बनाएँ। जो आप करते हैं उसमें विश्वास भरें। परीक्षा जीवन का एक पड़ाव भर है। उन्होंने आगे कहा, “त्योहारों के बीच में एग्जाम भी होते हैं। इस वजह से त्योहारों का मजा नहीं ले पाते। लेकिन अगर एग्जाम को ही त्योहार बना दें, तो उसमें कईं रंग भर जाते हैं।”
#WATCH PM Modi interacts with students during Pariksha Pe Charcha 2022
— ANI (@ANI) April 1, 2022
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पीएम ने सुनाई फिल्म की कहानी
इसके अलावा सुबह पढ़ाई करें या शाम को? खेलने से पहले पढ़े या बाद में? खाली पेट पढ़ें या खा-पीकर? इन सवालों के जवाब में पीएम मोदी ने कहा, “मुझे एक फिल्म याद आती है जिसमें रेलवे स्टेशन के पास रहने वाले एक व्यक्ति को बंगले में रहने का अवसर मिलता है। वहाँ उसे नींद नहीं आती तो वह रेलवे स्टेशन जाकर रेलगाड़ियों की आवाज रिकार्ड करता है और वापस आकर टेप रिकॉर्डर में सुनकर फिर सोता है। आशय ये है कि हमें कंफर्टेबल होना जरूरी है। इसके लिए सेल्फ असेसमेंट करें और देखें कि आप कब और कैसे पढ़ाई के लिए कंफर्टेबल होते हैं।”
बिना खेले कोई खिल नहीं सकता
प्रधानमंत्री ने कहा कि खेले बिना कोई खिल नहीं सकता। अपने प्रतिद्वंदी की चुनौतियों का सामना करना हम सीखते हैं। किताबों में जो हम पढ़ते हैं, उसे आसानी से खेल के मैदान से सीखा जा सकता है। हालाँकि, अभी तक खेलकूद को शिक्षा से अलग रखा गया। मगर अब बदलाव आ रहा है और जल्द और बदलाव आने को तैयार है।
सोशल मीडिया और मोबाइल गेमिंग के एडिक्शन से कैसे बचें
पीएम ने कहा कि सोशल मीडिया और मोबाइल गेमिंग के एडिक्शन के बचने के भी उपाय हैं। जितना मजा मोबाइल के अंदर या लैपटॉप के अंदर घुसने में है, उतना ही मजा खुद के अंदर घुसने में भी है। छात्र ऑनलाइन या ऑफलाइन रहने के बजाय कुछ देर इनरलाइन भी रहें। एकाग्र होकर पढ़ाई करेंगे तो मोबाइल के एडिक्शन से बचे रहेंगे।
पीएम मोदी ने कहा कि अक्सर देखने में आता है कि माता-पिता अपने सपनों और अपेक्षाओं को बच्चों पर थोपते हैं। सभी पेरेंट्स व टीचरों को कहना चाहेंगे कि बच्चों की स्ट्रेंथ को पहचानें, यह आपकी कमी है कि आप उसकी ताकत को समझ नहीं पा रहे हैं। दूरी वही से बन जाती है। अपने सपनों को माता-पिता बच्चों पर न थोपें।