वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह और आनंद ग्रोवर के कार्यालयों और आवासों पर CBI के छापों की निंदा करते हुए सुप्रीम कोर्ट के सौ से अधिक वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) को एक पत्र लिखा है। इन वकीलों ने माँग रखी है कि CBI छापों के खिलाफ एक आम सभा बुलाई और इसकी निंदा की जाए।
इस पत्र में, वकीलों ने इंदिरा जयसिंह और आनंद ग्रोवर के कार्यालयों और आवासों पर CBI की छापेमारी की कड़ी निंदा की और SCBA को इस संदर्भ में एक स्पष्ट संदेश जारी करने की अपील की।
ख़बर के अनुसार, पत्र में CBI की कार्रवाई को, ‘ख़तरनाक मिसाल क़ायम करने वाला, क़ानूनी पेशे की स्वतंत्रता पर प्रहार’बताया गया है। पत्र में कहा गया है कि जाँच में वकीलों के सामूहिक सहयोग के बावजूद CBI ने अभूतपूर्व क़दम उठाया।
अधिवक्ताओं के अनुसार, इंदिरा जयसिंह और आनंद ग्रोवर ने लगातार क़ानून-व्यवस्था को बरक़रार रखा, उन्हें इस तरह दरकिनार कर देना ग़लत है। सभी अधिवक्ताओं ने एकजुटता दिखाते हुए CBI की छापेमारी को ‘राज्य मशीनरी द्वारा ताक़त का ग़लत इस्तेमाल’ बताया।
इसी संदर्भ में, दिल्ली उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन द्वारा एक बयान जारी करते हुए CBI की छापेमारी की निंदा करते हुए कहा गया कि एडवोकेट्स ऑफ़िस में क़ानून प्रवर्तन एजेंसियों द्वारा तलाशी अभियान गंभीर चिंता का विषय है। एजेंसियों से कहें कि कोई ऐसा क़दम न उठाए जो पेशे की स्वतंत्रता को बाधित करता हो।
ग़ौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील इंदिरा जयसिंह और उनके पति आनंद ग्रोवर के यहाँ CBI ने गुरुवार (11 जुलाई) को छापेमारी की थी। CBI ने यह छापेमारी उनके एनजीओ ‘लॉयर्स कलेक्टिव’ के लिए विदेशी चंदा विनियमन अधिनियम (FCRA) के उल्लंघन मामले में की थी। CBI प्रवक्ता ने बताया था कि दिल्ली और मुंबई दोनों जगह छापे मारे गए।
दरअसल, यह मामला मई 2019 में सामने आया था, जब सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों के एक स्वैच्छिक संगठन ‘लॉयर्स वॉइस’ द्वारा दायर जनहित याचिका के आधार पर सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह, आनंद ग्रोवर और उनके एनजीओ ‘लॉयर्स कलेक्टिव’ को एक नोटिस जारी किया था। यह नोटिस प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने जारी किया। इस याचिका में संबंधित संस्थाओं द्वारा विदेशी चंदा (नियमन) अधिनियम (FCRA) क़ानून के उल्लंघन पर केंद्र सरकार की निष्क्रियता के लिए SIT (स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम) जाँच की माँग की गई है।
FCRA उल्लंघन की ख़बर सामने आने के बाद केंद्र सरकार ने ग़ैर सरकारी संगठन के FCRA लाइसेंस को रद कर दिया था, लेकिन दोषियों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की गई थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि इनके द्वारा जुटाए गए धन का राष्ट्र के ख़िलाफ़ गतिविधियों में उपयोग किया गया।