विश्व के हर मुस्लिम का सपना होता है कि वो अपने पूरे जीवन में एक बार कम से कम मक्का-मदीना का दीदार करे। अपनी हज यात्रा के लिए वो आजीवन इंतजार करते हैं और जब वो क्षण आता है तो उसकी खुशी उनके लिए दुनिया की किसी भी चीज से ऊपर होती है। 20 नवंबर 1979 को भी ऐसे ही मुस्लिमों की भीड़ मक्का में अपने नए साल का इंतजार कर रही थी। उन सबकी हज यात्रा पूरी हुए हफ्ते हो गए थे, लेकिन उन्होंने सोचा कि इस्लाम के सन् 1400 में कदम रखना ही है तो मक्का में काबा के नजदीक रहते हुए रखा जाए। उन सैकड़ों लोगों को क्या मालूम था कि इस्लामी कट्टरपंथी कुछ देर में उसी पाक स्थल को चारों ओर बंदूकों से घेर लेगा और हज यात्रा की इच्छा उनके जीवन की आखिरी इच्छा बन जाएगी।
जी हाँ, अंग्रेजी कैलेंडर की 20 नवंबर 1979 तारीख और इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से साल 1400 का पहला दिन इतिहास के पन्नों में वो काला दिन है, जिसने पूरे विश्व के मुसलमानों को हिलाकर रख दिया था। इस दिन उनकी मक्का स्थित बड़ी अल हरम मस्जिद पर सैंकड़ों हथियारबंद घुस आए थे और सैंकड़ों ही लोगों को अपने कब्जे में ले लिया था। समय फज्र की नमाज का था और घड़ी में 5 बजकर 15 मिनट हुए थे। इमाम शेख मोहम्मद अल सुबाइल ने नमाज अदा करवाई ही थी कि देखा मक्का में चारों ओर सफेद रंग का कपड़ा पहने हथियार बंद लोग बंदूकों के साथ उनकी ओर बढ़ रहे थे। उनमें से जुहेमान अल ओतायबी ने माइक को लेते हुए अपने सभी समर्थकों को अपनी जगह तैनात होने को कहा। देखते ही देखते मस्जिद चारों ओर हथियारबंदों से घिर गई।
बताया जाता है कि ये ओतायबी सऊदी सेना का हिस्सा रह चुका था और इस्लामी शिक्षा देने वाले समूह से जुड़ा था। इसने मस्जिद कब्जा करके ऐलान किया, “मेहदी/माहदी आ गए हैं। अब अन्याय और अत्याचार से भरी इस धरती पर निष्पक्षता के साथ न्याय होगा।” इसके बाद मक्का का पूरा मस्जिद अल्लाह-हू-अकबर के नारों से गूँज गया और छतों पर स्नाइपर लेकर हमलावर खड़े हो गए। इसी बीच ओतायबी ने अपने साले और चरमपंथी नेता मोहम्मद अब्दुल्ला कहतानी की ओर इशारा किया और उसे असली मेहदी बताया। ओतायबी ने दावा किया कि सऊदी का साम्राज्य इस्लाम के रास्ते से भटक गया है। वो भ्रष्ट हो गए हैं और पश्चिमी देशों के इशारे पर चलने लगे हैं।
घटना के समय सऊदी बिन लादेन ग्रुप मस्जिद में कुछ मरम्मत का काम कर रही थी। इससे पहले कि हमलावर टेलिफोन के तार काट पाते उनके एक कर्मचारी ने बाहर इस बात की सूचना पहुँचा दी और हर जगह हड़कंप मच गया। थोड़ी देर में हमलावर बाहरी देशों के कई बंधकों को बाहर निकालने लगे लेकिन सउदी के लोगों को बिना कोई रियायत दिए सबको अंदर बंद किए रखा।
यहाँ बता दें कि मक्का पर ऐसा संकट तब छाया था जब अरब के क्राउन प्रिंस फहद ट्यूनेशिया में थे, नेशनल गार्ड के मुखिया प्रिंस अब्दुल्ला मोरक्को गए थे। तब, किंग खालिद ने मस्जिद को छुड़ाने की जिम्मेदारी प्रिंस सुलतान को सौंपी, प्रिंस नाएफ भी उनके साथ गए। उधर, हमले के खबर सुनते ही आंतरिक मंत्रालय के कुछ सिपाहियों ने मस्जिद को छुड़ाने का प्रयास किया लेकिन तब बंदूकधारियों ने कई पुलिसवालों को मारना शुरू कर दिया।
इन सब घटनाओं के बीच ये बात सबको पता चल चुकी थी कि मक्का के सबसे बड़े अल हरम मस्जिद पर कब्जा करने की साजिश बहुत समय से की जा रही थी। दिन, तारीख, समय सब तय था। हमलावरों के पास पहले से हथियार थे और भारी संख्या में खाने-पीने का सामान भी था। ये सारा सामान ताबूत में बंद कर करके मस्जिद के अंदर पहुँचाया गया था। वहीं हमलावरों का जत्था ट्रक में भर भर कर अंदर आया था।
मामला क्योंकि मजहब से जुड़ा था और विश्व का हर मुसलमान इस पर नजर बनाए हुआ था इसलिए सऊदी सरकार ने इस हमले को लेकर किसी भी तरह के प्रसारण पर पाबंदी लगा दी थी। किसी को नहीं पता था कि आखिर क्या हो रहा है। हर मुस्लिम सिर्फ अपने पाक स्थल की सलामती की दुआ पढ़ रहा था। उधर, सऊदी सरकार के सामने कशमकश ये थी कि वो सबसे पाक मस्जिद जहाँ काबा स्थित है उस पर हमला नहीं कर सकते थे, लेकिन अपने लोगों को और जन्नत का दरवाजा कहे जाने वाले पवित्र काबा को बचाना भी जरूरी था। सरकार ने हार नहीं मानी, उन्होंने मजहबी उलेमाओं से बात की और सैन्य कार्रवाई के लिए तैयार हुए। पुलिस पर हुए अटैक के बाद देश की आर्मी और नेशनल गार्ड भी मोर्चे पर आगे आए और पाकिस्तान-फ्रांस की मदद भी माँगी गई।
सेना की कार्रवाई में कई हथियारबंद मारे गए, मस्जिदों की मीनारों पर हमले हुए और इसी बीच मस्जिद के अंदर एंट्री लेने के लिए वहाँ की बिजली भी काट दी गई। नतीजन सेना अगले ही दिन मस्जिद के अंदर थी। सेना और हथियारबंद हमलावरों की ओर से लगातार गोलियाँ चलीं जिसमें 500 के करीब लोग घायल हुए। इन घायलों में खुद को मेहदी बताने वाला कहतानी भी था, जो मरे हुए लोगों के हथियार बाकी लोगों तक पहुँचा रहा था।
आगे बढ़ने से पहले बता दें कि इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार मेहदी को धरती का रक्षक माना गया है। बताया जाता है कि हदीस में इसका जिक्र है कि जब जब धरती पर जुल्म ज्यादा बढ़ जाएगा तब कयामत के दिन से पहले मेहदी धरती पर आएँगे। मेहदी ना कभी घायल हो सकते हैं और ना ही मर सकते हैं। मगर, सेना कार्रवाई में जब कहतानी घायल हुआ तो सब हमलावर ये मान ही नहीं रहे थे कि उनका मेहदी घायल हो सकता है। हर कोई इस बात से इंकार करने लगा लेकिन वाकई कहतानी को मस्जिद के दूसरे माले पर गोली लगी थी।
मक्का के सबसे बड़े मस्जिद पर आए इस संकट के समय में फ्रांस ने सऊदी की खूब मदद की। Groupe d’Intervention de la Gendarmerie Nationale (GIGN)! नामक दस्ते ने मोर्चा संभाला और इसके तीन कमांडो ने अपने अपने धर्म का बलिदान करते हुए इस्लाम कबूला। इसके बाद उन्हें मक्का में घुसने की इजाजत मिली और फिर फिर गैस के गोले अन्दर फेंके गए, अन्दर के चैम्बर में से हमलावरों को खुली जगह में आना पड़ा। दीवारों में ड्रिल कर के अन्दर अब बम फेंक दिए गए। फिर जाकर आगे की कार्रवाई में मस्जिद आजाद करवाया जा सका। ये लड़ाई 14 दिन तक जारी रही। बाद में जिंदा बचे ओतायबी और कहतानी समेत सभी हथियारबंदों ने समर्पण कर दिया। लेकिन सऊदी की सरकार ने 63 लोगों को गिरफ्तार करके 9 जनवरी 1980 को सार्वजनिक रूप से मौत दे दी थी। इस हमले में कथिततौर पर लगभग 1000 लोग मारे गए थे लेकिन आधिकारिक आँकड़ा सिर्फ 300+ लोगों के मरने का मिलता है।