Friday, November 15, 2024
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रवीश को लताड़, बिहार के बेरोजगार, राहुल और केजरीवाल की ‘ख्याली सरकार’: 2023 के टॉप-10 विचार, जिसे पाठकों ने पढ़ा बार-बार

ऑपइंडिया की विचारधारा और विचारों को इतने साल में आप पाठकों से लगातार प्यार-सम्मान मिला। साल 2023 में भी ऑपइंडिया के लेखकों द्वारा लिखे कई मुद्दों पर लिखे गए ऐसे लेख थे जिन्हें आप पाठकों ने सराहा और खूब पसंद किया। वर्ष के खत्म होने से पहले एक बार उनमें से टॉप 10 पर एक नजर डालते हैं।

ऑपइंडिया की विचारधारा और विचारों को इतने साल में आप पाठकों से लगातार प्यार-सम्मान मिला। बात चाहे राजनीति गलियारों में चल रही हलचल के विश्लेषण की हो, वामपंथी नैरेटिव को तोड़ने की हो, हिंदुत्व की आवाज उठाने की हो, धर्म-संस्कृति-सभ्यता की हो या फिर किसी तरह के सामाजिक बदलाव की… जब-जब हमारे लेखकों ने आपसे अलग-अलग मुद्दों पर अपने विचार साझा किए आपने उन पर सहमति जाहिर कर हमें बताया कि हम सही रास्ते पर हैं।

साल 2023 में भी ऑपइंडिया के लेखकों द्वारा लिखे कई ऐसे लेख थे जिन्हें आप पाठकों ने सराहा और पसंद किया। वर्ष के खत्म होने से पहले एक बार उनमें से टॉप 10 पर सरसरी निगाह डालते हैं।

1. MP निकम्मे, फिर भी कैसे गहराया मोदी मैजिक

भारतीय जनता पार्टी की तीन राज्यों में हुई जीत के बाद चारों ओर मोदी मैजिक की चर्चा थी और 2024 के परिणामों में पार्टी की जीत को लेकर कयास लगने लगे थे। ऐसे में अजीत झा ने अपने इस लेख में निष्पक्ष होकर बताया था कि ऐसा नहीं है भाजपा में निकम्मे सांसद नहीं है।

कुछ हैं जो पद मिलने के बाद जनता के लिए कुछ नहीं करते… लेकिन फिर भी मोदी मैजिक अगर इतने सालों में और गहराया है तो उसका कारण है पीएम मोदी द्वारा शुरू की वो तमाम योजनाएँ जिससे देश का हर वंचित वर्ग लाभान्वित हुआ। इस लेख में उन्होंने योजनाओं के नाम के साथ आँकड़े भी दिए, जिससे समझा जा सकता है कि ये योजनाएँ सिर्फ कहने को शुरू नहीं हुईं। इन पर काम भी हुआ और लोगों को फायदा भी पहुँचा।

2. दीवाली पर रवीश कुमार का ज्ञान

रवीश कुमार के हर प्रोपेगेंडा को तोड़ने के क्रम में इस साल भी हमने कोई कसर नहीं छोड़ी। हाल में वह दिवाली के मौके पर पटाखे फोड़ने पर तंज कसते हुए नजर आए थे, ऐसे में अनुपम कुमार सिंह ने उनके हर तंज के पीछे छिपी कुंठा को उभारते हुए तर्कों के साथ रवीश के पाखंड की पोल खोली थी।

अपने लेख में उन्होंने बताया था कि रवीश कुमार को फेफड़ों की याद तभी आती है जब हिंदू त्योहार आएँ। बकरीद पर जब करोड़ों बकरे काटे जाते हैं तो उन्हें कोई ज्ञान देना नहीं सूझता। यहाँ तक जब मुस्लिम भीड़ खुलेआम सिर तन से जुदा बोलते हुए सड़कों पर आ जाती है तब भी उन्हें कोई चिंता नहीं सताती। उन्हें समस्या तभी होती है जब हिंदू आवाज उठा लें या फिर अपने त्योहार मनाने की बात करें।

3. काश हर लड़की की किस्मत श्वेता नंदा जैसी होती

हाल में अमिताभ बच्चन ने अपना एक बंगला ‘प्रतीक्षा’ अपनी बेटी श्वेता के नाम किया था। ऐसे में उनके इस कदम की हर जगह सराहना हुई थी। इस तरह का फैसला देख रचना वर्मा ने भी अपने लेख में इस बात पर प्रकाश डाला था कि आमतौर पर जिस समाज में लड़कियों की शादी के बाद उन्हें पराया समझा जाने लगता है वहाँ अमिताभ के इस फैसले की क्या वैल्यू है। इससे समाज में कितना पॉजिटिव संदेश जाएगा। लेख में उन्होंने अपना परिवारिक अनुभव भी साझा किया है और उम्मीद की है कि अगर हर लड़की की किस्मत श्वेता नंदा जैसी हो जाए तो क्या बात होगी।

4. जातिगत जनगणना के नाम पर ठगने चले थे राहुल गाँधी

अपने बेबुनियाद बातों के जरिए राजनीति में दोबारा काबिज होने की कोशिशों में जुटे राहुल गाँधी कई बार ऐसी बात कर देते हैं जिसकी वजह से जगह-जगह फजीहत झेलनी पड़ती है। इस साल उन्होंने जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाया था और कुछ दावे किए थे जिनसे लगे कि कॉन्ग्रेस सरकार ने अपने कार्यकाल में बहुत कुछ किया था लेकिन मोदी सरकार ने जनगणना नहीं कराई।

श्रवण शुक्ला ने उनके इसी दावे का पोस्टमॉर्टम करते हुए बताया था कि कॉन्ग्रेस जिस सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना 2011 (एसईसीसी) की बात कर रही है, उसके आँकड़े गलत हैं। उन आँकड़ों का कहीं उपयोग नहीं किया जा सकता है। इस बारे में केंद्र सरकार ने 2021 में सुप्रीम कोर्ट को हलफनामा भी दिया था। 

5. हिंदुत्व के मुद्दे पर ‘ट्रू इंडोलॉजी’ बनाम देवेंद्र फडणवीस

सावित्रिबाई फुले को लेकर ट्रू इंडोलॉजी नाम के ट्विटर हैंडल से एक ट्वीट पिछले साल हुआ था जो जुलाई 2023 में वायरल हुआ। उसमें दावा था कि फुले को भारत की पहली महिला शिक्षक बताना ऐतिहासिक रूप से सही नहीं है। ट्वीट वायरल होने के बाद उनका विरोध हुआ और कॉन्ग्रेस नेता ने तो उनकी परेड निकलवाने तक की बात कही।

ये सुनने के बाद बीजेपी के उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा था कि परेड तो छोड़ दो, मैं तो कहता हूँ सार्वजनिक रूप से फाँसी दे दो। लेकिन सिर्फ यह कहने से कुछ हासिल नहीं होगा। हमें देश के कानूनों का पालन करना होगा।”

फडणवीस के इस बयान के बाद कई लोगों ने इसका गलत अर्थ समझ लिया और भाजपा-आरएसएस की सोच पर सवाल उठाने लगे। हालाँकि ऐसे टाइम राहुल रौशन ने एक विस्तृत लेख लिखकर समझाया कि क्यों भाजपा किसी कीमत पर महाराष्ट्र में सावित्रीबाई फुले का विरोध नहीं कर सकती।

6. बिग बॉस में चुम्मा चाटी

फैमिली शो के नाम पर बिग बॉस में दिखाया जाने वाला कंटेंट धीरे-धीरे आपत्तिजनक होता जा रहा है। इसी मामले पर जयन्ती मिश्रा ने तब लेख लिखा था जब ओटीटी सीजन में आकांक्षा पुरी ने जैद हदीद के साथ ऑन कैमरा लिप लॉक किया। उन्होंने अपने लेख में बताया था कि ये अश्लीलता कोई नई नहीं है। इससे पहले इसी शो में चुम्मा-चाटी, मसाज देने और सुहागरात जैसे सीन हो चुके हैं।

7. केजरीवाल को नहीं दिखा गड्ढे में डूबकर हुई अजीत की मौत

दिल्ली को विश्वस्तरीय राजधानी बनाने का वादा करने वाले केजरीवाल मुसीबत के समय में इसी दिल्ली पर ध्यान भी नहीं देते। ऐसा इस बार तब देखने को मिला जब दिल्ली में मॉनसून आने के बाद कई इलाके काफी प्रभावित हुए और हर्ष विहार में गड्ढे में पानी भर जाने से एक अजीत नाम के व्यक्ति की मौत हो गई।

उस समय सुधीर गहलोत ने पाठकों का इस घटना पर ध्यान दिलवाया और अरविंद केजरीवाल को लिखा कि शायद उन्हें अपने शीशमहल में बैठकर दिल्ली की हालत नहीं दिखती, लेकिन आम जनता बारिश से बुरी तरह प्रभावित है। कभी गड्ढों में पानी भर जाता है तो कभी नालों का पानी बाहर आ जाता है।

8. ‘एक मोहल्ला-एक होलिका’ और ‘एक मोहल्ला-एक बकरा’

दीवाली की तरह होली पर भी कुछ एक्टिविस्ट हिंदुओं को तरह-तरह के ज्ञान देने निकलते हैं। इस बार का प्रपंच होली पर पानी की बर्बादी के साथ-साथ होलिका दहन को लेकर भी था। प्रदूषण का हवाला देकर राय दी जा रही थी कि लोग एक मोहल्ले में एक होलिका जलाएँ…। ऐसे में अनुपम कुमार सिंह ने उन्हें तर्कों के साथ लताड़ा और पूछा कि क्या आज जो इतनी चिंता होली त्योहार पर जताई जा रही है वो चिंता बकरीद पर भी होगी? क्या ‘एक मोहल्ला-एक होलिका’ की तरह ‘एक मोहल्ला-एक बकरा’ काटने का प्रस्वात दिया जाएगा।

9. विपक्ष बाँटना चाहता था हिंदुओं को जाति में, भाजपा ने जवाब दिया

भारतीय जनता पार्टी पर जातीय भेदभाव करने का आरोप लगाने वाला विपक्ष इस बार तब हैरान रह गया जब पार्टी ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में अपनी ओर से सीएम नाम की घोषणा की। ये हैरानी क्यों थी इसे श्रवण शुक्ला के विस्तृत लेख से समझा जा सकता है।

इस लेख में उन्होंने बताया है कि किस तरह से विपक्ष हिंदुओं को जाति में बाँटने की राजनीति में जुटा है। हालाँकि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने ये उदाहरण दिया कि चाहे जनजातीय समाज हो या फिर ओबीसी हर किसी को बराबर समान अधिकार हैं। उन्होंने बताया है कि किन बातों के दम पर भाजपा मजबूत होती जा रही है और कैसे इंडी गठबंधन चाहकर भी मोदी मैजिक का मुकाबला नहीं कर सकता।

10. कौन खा गए बिहार के रोजगार

बिहार में रोजगार का मुद्दा हमेशा सुर्खियों में रहता है। सवाल उठता है कि आखिर क्यों वहाँ के नवयुवकों को कमाने के लिए पलायन करना पड़ता है। कोई पार्टी वहाँ सरकार बनाने के लिए बड़ी तादाद में जॉब देने के वादे करती है लेकिन फिर होता क्या है ये किसी से छिपा नहीं है।

इसी विषय पर अजीत झा ने मार्च में हैरान करने वाले तथ्यों के साथ लेख लिखा था। इसमें उन्होंने बताया था कि आज के राजनेता कह देते हैं कि बिहार में उद्योग संभव नहीं लेकिन हकीकत ये है कि एक समय में बिहार में बड़े-बड़े कारखाने हुआ करते थे। मगर आज उसमें से किसी का नाम नहीं बचा है। कारखाने खंडहर बन गए हैं।

वह बताते हैं कि इस हालात के लिए कोई एक जिम्मेदार नहीं है। लेकिन पिछले कुछ दशकों में जो मजबूरी में पलायन बढ़ा है उसकी जिम्मेदारी सीधे तौर पर कॉन्ग्रेस, लालू यादव के जंगलराज और नीतीश कुमार के कथित सुशासन की ही है।

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