मनोज कुमार यादव अपने 15 साथियों के साथ दिल्ली से चल दिए। पहुँचना है उन्हें बिहार के भागलपुर। दिल्ली में अपने कमरे से निकले हुए आज चार दिन हो गए हैं। उनके पास रास्ते में खाने के लिए पैसे तक नहीं हैं। बस सबके पास अपनी-अपनी साइकल है और किसी भी तरह से अपने गाँव-घर पहुँचने का हौंसला!
बिहार के मनोज कुमार यादव से जब ऑपइंडिया ने फ़ोन के माध्यम से सम्पर्क किया तो उन्होंने बताया कि कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लॉकडाउन की घोषणा के कुछ दिन बाद ही उनके पास दिल्ली में जो एक-दो हजार रुपए थे, वो भी खर्च हो गए और राशन लेने के लिए भी उनके पास और पैसे नहीं बचे थे।
मनोज ने बताया कि जब सारे पैसे खत्म हो गए तो किसी भी तरह से अपने गाँव पहुँचना चाहते थे। इसी चाह में वो अपने साथियों के साथ साइकल लेकर घर की ओर निकल गए। आज मनोज और उनके साथियों का दल इटावा पहुँच गया है।
काम और रोजगार के लिए मनोज दिल्ली स्थित नजफगढ़ के धर्मपुर में रह रहे थे। वो मूल रूप से भागलपुर, बिहार के निवासी हैं। उन्होंने बताया कि उनके रुपए और राशन खत्म होने के बाद कुछ दिन उन्हें पास ही के इलाके में गेहूँ की कटाई करनी पड़ी।
इस दौरान दिल्ली की अरविन्द केजरीवाल सरकार द्वारा उनके लिए किसी भी प्रकार के प्रबंध नहीं किए गए और ना ही उन तक किसी ने राशन पहुँचाया। जेबखर्च या पैसे देने की बात तो दूर, उनकी समस्याओं को लेकर किसी ने सम्पर्क साधने तक की कोशिश नहीं की।
गेहूँ काटकर जोड़े चंद पैसे
गेहूँ कटाई के बाद एक दिन गोपाल और उसके साथी सड़क पर थे। तभी एक व्यक्ति, जो गरीब और बेसहारा लोगों की मदद करने को आए थे, ने उनका हाल जानना चाहा तो मनोज और उनके साथियों ने अपने गाँव लौटने की इच्छा जताई।
इस व्यक्ति ने ही उनके सभी साथियों को साइकल दिलाई और खाना खिलाया। तपती धूप में साइकल से अपने घर के लिए निकले मनोज यादव ने फोन पर बातचीत में बताया कि रास्ते में उन्हें खाने-पीने की समस्या नहीं आ रही है। क्योंकि कोई ना कोई उन्हें भोजन करवा देता है।
उन्होंने बताया कि मोबाइल वैन वाले लगातार सड़क पर मौजूद लोगों को खाना उपलब्ध करवा रहे हैं। मनोज कुछ महीने पहले ही रोजगार के लिए दिल्ली आए थे। लेकिन इसी बीच पूरा विश्व कोरोना वायरस की चपेट में आ गया, जिस कारण देशव्यापी बंद की घोषणा की गई। फिर एक दिन उन्हें खाने और घर लौटने को मजबूर होना पड़ा।
दिल्ली से बिहार जाने के लिए निकले मनोज के दल में साइकल पर कुल सोलह लोग हैं और उनका अनुमान है कि दो-चार दिन में वो अपने घर पहुँच जाएँगे।
प्रवासी मजदूर और दिल्ली की सरकार
दिल्ली की अरविन्द केजरीवाल सरकार प्रवासी श्रमिकों को उनके घर वापस भेजने के इंतजामों के बारे में झूठ ही बोलती नजर आ रही है। कभी केजरीवाल यह कहते देखे गए हैं कि दिल्ली सरकार अपने खर्च पर लोगों को घर भेज रही है तो कुछ दिन बाद सच्चाई सामने आने पर पता चलता है कि उन्होंने चुपके से इसके लिए बिहार सरकार को इसका बिल थमाया है।
लेकिन मनोज जैसे ही और भी न जाने कितने ऐसे लोग हैं, जो दिल्ली सरकार के प्रबंधों की ‘वास्तविकता‘ का शिकार हुए होंगे। यह वास्तविकता ही है कि एक ओर दिल्ली सरकार मीडिया मैनेजमेंट में जुटी हुई अपनी पीठ थपथपा रही है और दूसरी ओर श्रमिक अपने स्तर पर ही किसी तरह से प्रबंध कर घर पहुँचने का प्रयास कर रहे हैं।