Saturday, November 16, 2024
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इस्माइल मारा गया, मरने वाला था अजमल कसाब भी… उस दिन संजय गोविलकर न होते तो 26/11 होता ‘हिंदू आतंकवाद’

हाथ में कलावा, समीर चौधरी नाम की ID, ‘हिंदू आतंकी’ की तरह मरना था कसाब को, लेकिन संजय गोविलकर के एक फैसले ने पाकिस्तानी साजिश को किया नाकाम।

लोग आज भी 26 नवंबर 2008 के उस दिन को नहीं भूले हैं, जब पाकिस्तानी आतंकियों ने देश की आर्थिक राजधानी मुंबई को बंधक बना लिया था। इतना ही नहीं इस आतंकी हमले का दोष हिंदुओं के सिर पर डालने की भी पूरी तैयारी की गई थी। लेकिन मुंबई पुलिस इंस्पेक्टर संजय गोविलकर के सूझबूझ ने इसे विफल कर दिया था। उनके कारण ही पाकिस्तानी आतंकवादी मोहम्मद अजमल आमिर कसाब जिंदा पकड़ा गया था। इसका खुलासा मुंबई पुलिस के कमिश्नर रहे राकेश मारिया ने अपनी एक किताब में किया है।

इससे पता चलता है कि अगर उस दिन आतंकवादी कसाब जिंदा नहीं पकड़ा जाता तो भारत समेत पूरी दुनिया इस घटना को ‘हिंदू आतंकवाद’ मान रही होती। 26/11 हमले को अंजाम देने वाला पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा ने इसे भारत के ही हिंदुओं की ओर से किए गए आतंकवादी हमले का रूप देने की बेहद खतरनाक साजिश रची थी।

अजमल कसाब को हिंदू बनाकर मुंबई की सड़कों पर खून बहाने के लिए उतारा गया था। उसके हाथ में कलावा (लाल धागा) बँधा था और उसे एक हिंदू नाम दिया गया। कसाब समेत सभी 10 हमलावरों को नकली आईकार्ड के साथ हिंदू बनाकर मुंबई भेजा। कसाब को समीर चौधरी जैसा हिंदू नाम दिया गया, ताकि मारे जाने के बाद उसकी पहचान हिन्दू के तौर पर हो और ऐसा लगे कि इस हमले में ‘हिंदू आतंकवाद’ का हाथ था।

ऐसा होने पर यह प्रचारित किया जाता कि ‘भगवा आतंकवाद’ के नाम पर लोगों का खून बहाया जा रहा है। इसके पीछे आरएसएस है। इतना ही नहीं, कुछ विदेशों से पोषित पत्रकार और समाजिक कार्यकर्ता इस थ्योरी को सच साबित करने के लिए समीर चौधरी का घर और पता ठिकाना ढूँढ़ने में लग जाते और आखिरकार उसे समीर चौधरी साबित कर ही दिया जाता। मगर गोविलकर की होशियारी और सतर्कता ने उसकी कलई खोल दी और पाकिस्तान की ‘हिंदू आतंकवाद’ की प्लॉटिंग धरी की धरी रह गई।

हमले के समय गोविलकर डीबी मार्ग पुलिस थाने में तैनात थे। उन्हें गिरगाँव चौपाटी पर नाकाबंदी करने को कहा गया था। यहीं पर उनकी टीम की भिड़ंत अजमल कसाब और उसके साथी इस्माइल के साथ हुई थी। दोनों आतंकी एक छीनी हुई स्कोडा कार से वहाँ पहुँचे थे। आतंकियों की फायरिंग में कॉन्स्टेबल तुकाराम ओंबले बलिदान हो गए। ओंबले ने अपने सीने पर 40 गोली खाई थी। पुलिस की जवाबी फायरिंग में इस्माइल मारा गया। साथी को घायल देख अन्य पुलिसकर्मी भी बौखला गए और उसे मारने के लिए आगे बढ़े। पुलिसकर्मी कसाब को भी मारने आगे बढ़े लेकिन गोविलकर ने उन्हें समझाया और सलाह दी कि उसे मत मारो, वही तो सबूत है।

गोविलकर ने इस सारे घटनाक्रम पर कहा था, “अगर एक पल की भी देरी हुई होती तो कसाब भी पुलिस की गोली से मारा जाता। कसाब के जिंदा पकड़े जाने से ही उस रात पता चल सका कि आतंकी पाकिस्तान से आए थे और मुंबई पर हमला करने की साजिश पाकिस्तान में रची गई थी।” ये तमाम जानकारी उस रात न मिल पाती अगर संजय गोविलकर कसाब को जिंदा न पकड़वाते। गोविलकर को इस बहादुरी के लिए राष्ट्रपति पदक से भी नवाजा गया था।

मजहबी कट्टरपंथ के बचाव में अक्सर आपने ‘आतंकवादियों का कोई धर्म नहीं होता’ वाली दलील सुनी होगी। पर क्या 26/11 हमले में शामिल रहा कसाब यदि ‘समीर चौधरी’ बनकर ही मरा होता तो क्या यही ‘बुद्धिजीवी’ और कॉन्ग्रेसी तब भी कहते कि आतंकवाद का धर्म नहीं होता? यकीनन नहीं। वे हिंदुओं को बदनाम करने का प्रोपेगेंडा हाथों हाथ लेते।

इसके बावजूद कॉन्ग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने आरएसएस पर साजिश का आरोप लगाया था। हिंदू विरोधी अजीज बर्नी ने ‘26/11 RSS की साज़िश’ नाम की किताब लिखी थी। खास बात ये है कि इस किताब का विमोचन दिग्विजय सिंह ने ही किया था। वैसे भी ‘हिंदू आतंकवाद’ कॉन्ग्रेस का पसंदीदा टू लाइनर रहा है और दिग्विजय सिंह इसके चैंपियन रहे हैं। वह कई बार हिंदू आतंकवाद की थ्योरी प्लांट करने की नाकाम कोशिश भी कर चुके हैं।

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