Friday, May 3, 2024
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’26/11 RSS की साजिश’: जानें कैसे कॉन्ग्रेस के चहेते पत्रकार ने PAK को क्लिन चिट देकर हमले का आरोप मढ़ा था भारतीय सेना पर

उस समय कॉन्ग्रेस की ऐसी ही थ्योरी को आगे बढ़ाने वालों में एक नाम हिंदू विरोधी अजीज़ बर्नी का था। बर्नी, उस समय रोजनामा राष्ट्रीय सहारा, बज़्म-ए-सहारा, आलामी सहारा जैसे सहारा प्रकाशनों के समूह संपादक थे। उसने उस दौरान आरएसएस पर लग रहे आरोपों को साबित करने के लिए ‘26/11 RSS की साज़िश’ नाम से एक किताब प्रकाशित की थी।

पूरा देश जब 26/11 के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार मान रहा था उस समय केवल कॉन्ग्रेस के नेता ही ऐसे थे, जो मुंबई में हुए आतंकी हमले को RSS से जोड़ने में जुटे थे। हमले के 12 साल बाद आज ये किसी से छिपा नहीं है कि कॉन्ग्रेस नेताओं ने RSS को दोषी ठहराने के लिए काल्पनिक भगवा आतंक की कॉन्सपिरेसी थ्योरी को बढ़ावा दिया।

उस समय कॉन्ग्रेस की ऐसी ही थ्योरी को आगे बढ़ाने वालों में एक नाम हिंदू विरोधी अजीज़ बर्नी (Aziz Burney) का था। बर्नी, उस समय रोजनामा राष्ट्रीय सहारा, बज़्म-ए-सहारा, आलामी सहारा जैसे सहारा प्रकाशनों के समूह संपादक थे। उसने उस दौरान आरएसएस पर लग रहे आरोपों को साबित करने के लिए ‘26/11 RSS की साज़िश’ नाम से एक किताब प्रकाशित की थी।

इस किताब को प्रमाणिकता दिलवाने के लिए कॉन्ग्रेस नेता दिग्विजय सिंह खुद इसका लोकार्पण करने एक नहीं बल्कि दो बार समारोह में पहुँचे थे। एक दफा दिल्ली और दूसरी बार मुंबई में।

तस्वीर साभार: पोस्टकार्ड न्यूज

इस बुक की रिलीज में दिग्विजय सिंह ने महाराष्ट्र एटीएस चीफ हेमंत करकरे को लेकर बयान दिया था। उन्होंने दावा किया था कि मुंबई में हुए आतंकी हमले में वीरगति प्राप्त होने से 2 घंटे पहले महाराष्ट्र एटीएस चीफ करकरे ने उन्हें फोन पर बताया था कि चूँकि वह मालेगाँव विस्फोट मामले की जाँच कर रहे हैं, इसलिए उन्हें हिंदूवादी संगठनों से धमकी मिली है। और, इस तरह दिग्विजय ने मुंबई हमले को पाकिस्तान से जोड़े बिना सीधा हिन्दुओं व आरएसएस पर सारा इल्जाम मढ़ दिया था।

बर्नी की इस किताब में उसके उर्दू अखबार में प्रकाशित सैंकड़ों संपादकीय और लेख थे। इस किताब का अंग्रेजी नाम, “26/11: Biggest attack in India’s history” था। अपने लेखों में बर्नी ने मुंबई हमले से पाकिस्तान को क्लिन चिट देते हुए लिखा था कि इस हमले में आईएस या लश्कर-ए-तैयबा नहीं, बल्कि आरएसएस के लोग शामिल थे, जिन्हें Mossad और CIA का समर्थन प्राप्त था।

भारतीय सेना को बताया मुंबई हमले का जिम्मेदार

अपने एक लेख में तो अजीज़ ने भारतीय सेना को 26/11 के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया था। साल 2009 की शुरुआत में लिखे गए उस लेख में बर्नी का दावा था कि एटीएस चीफ हेमंत को भारतीय सेना ने मारा। इतना ही नहीं आगे बर्नी ने आरोप लगाए थे कि इस हमले में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का भी हाथ था।

एक अन्य लेख में बर्नी ने दावा किया था कि मुंबई पुलिस बल के कांस्टेबलों ने सीएसटी रेलवे स्टेशन पर गोलीबारी की थी और कुछ भाजपा स्वयंसेवक जिन्होंने कसाब को गिरफ्तार किया था, वह उसे सीसीटीवी कैमरे के सामने लेकर आए थे।

यहाँ बता दें कि कसाब की सबसे ज्यादा वायरल तस्वीर का सच यह है कि उसे श्रीराम वर्नेकर ने क्लिक किया था। वह टाइम्स ऑफ इंडिया के फोटो जर्नलिस्ट थे। वर्नेकर को उस तस्वीर के लिए बाद में अवार्ड भी मिला था। इस तस्वीर को खींचते वक्त एक आतंकी की नजर कैमरा फ्लैश पर भी पड़ी थी और उसने TOI की इमारत पर गोली दागी थी।

साभार: Befitting facts

हर ओर से 26/11 हमले में पाकिस्तान की भूमिका को दरकिनार करने वाले अजीज़ को कॉन्ग्रेस का बेहद करीबी माना जाता है, जिनके पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से काफी मैत्रीपूर्ण संबंध थे।

साल 2007 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अजीज़ को उसके उर्दू भाषा अखबार रोजनामा राष्ट्रीय सहारा के लिए उत्कृष्ट अवार्ड दिया था। कॉन्ग्रेस में अजीज़ को सेकुलरिज्म का चमचमाता प्रतीक माना जाता था। वह साल 2009 में डॉ मनमोहन सिंह के फ्रांस और मिस्र दौरे के दौरान प्रतिनिधि मंडल में शामिल होकर गए थे। इतना ही नहीं, कहा ये भी जाता है कि बर्नी ने यूपीए के कार्यकाल में राज्यसभा का नॉमिनेशन पाने का प्रयास किया था।

अजीज़ बर्नी को झूठा प्रॉपगेंडा फैलाने के लिए माँगनी पड़ी थी माफी

बता दें कि मुंबई हमले में आरएसएस को लेकर फैलाया जा रहा झूठ और अजीज़ का ये फर्जी प्रोपगेंडा ज्यादा दिन नहीं चल सका था। साल 2009 के अगस्त में उसे देश विरोधी लेख लिखने के लिए सत्र न्यायालय में घसीटा गया था। अपने लेखों में उसने मुंबई हमले में आरएसएस को जिम्मेदार बताने के लिए कई विवादित बातें लिखी थीं।

उसके ख़िलाफ मुंबई के एक सामाजिक कार्यकर्ता विनय जोशी ने शिकायत की थी और करीब एक साल बाद उसने आरएसएस को मुंबई हमले से जोड़ने के लिए एक पन्ने का माफीनामा लिखा था। हालाँकि, आरएसएस ने इसे खारिज कर दिया था और जब कोर्ट में भी साबित हो गया कि अजीज़ के पास अपने दावों को साबित करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं हैं, तब उसने किताब का नाम तक बदलने का प्रस्ताव सामने रखा था।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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