नाम: रेणु थरानी। उम्र: 80 साल। आय: 1.70 लाख सालाना। स्विस बैंक में जमा: 4 करोड़ डॉलर।
करीब 14 हजार रुपए की मासिक आमदनी से आप पूरी जिंदगी में कितना बचा पाएँगे? रेणु थरानी ने तो इसी कमाई से करीब 2 अरब रुपए स्विस बैंक अकाउंट में जमा भी कर लिए।
असल में स्विस बैंक एचएसबीसी के खाते जब लीक हुए तो उसमें रेणु थरानी का भी नाम था। पता चला कि एक खाता 2004 में जीडब्ल्यू इन्वेस्टमेंट्स नाम से खोला गया। उसमें चार करोड़ डॉलर जमा हैं। उस समय के हिसाब यह रकम करीब 196 करोड़ रुपए थी।
रविवार को इनकम टैक्स अपीलेट ट्राइब्यूनल (आईटीएटी) की मुंबई शाखा ने इस मामले में अहम फैसला सुनाया।आईटीएटी ने रेण को संपत्ति पर टैक्स के साथ पेनाल्टी भी अदा करने का आदेश दिया है।
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक 80 वर्षीय रेणु थरानी का एचएसबीसी जेनेवा में अकाउंट है। स्विस बैंक में थरानी फैमिली ट्रस्ट के नाम के इस बैंक की एकमात्र विवेकाधीन लाभार्थी हैं। केमन आइलैंड आधारित जीडब्ल्यू इन्वेस्टमेंट के नाम पर इसे जुलाई 2004 में खोला गया था।
इस कंपनी ने व्यवस्थापक के रूप में फंड को फैमिली ट्रस्ट को ट्रांसफर कर दिया। थरानी ने 2005-06 में दाखिल आईटी रिटर्न में इसकी जानकारी नहीं दी। इस मामले को दोबारा 31 अक्टूबर 2014 को खोला गया। इस दौरान थरानी ने एक शपथपत्र देकर यह भी कहा कि उनका एचएसबीसी जेनेवा में कोई बैंक अकाउंट नहीं है ना ही वह जीडब्ल्यू इन्वेस्टमेंट बैंक में डायरेक्टर या शेयरहोल्डर थीं।
उन्होंने खुद को नॉन रेजिडेंट बताया और दावा किया कि यदि कोई राशि है भी तो उनसे टैक्स नहीं लिया जा सकता है। 2005-06 के आईटी रिटर्न में थरानी ने बताया था कि उनकी सालाना आमदनी महज 1.7 लाख रुपए है। उन्होंने इसमें बेंगलुरु का पता दिया था और अपना टैक्सपेयर स्टेटस भारतीय बताया था।
इस पर जब आईटीएटी बेंच को शक हुआ तो उसने सवाल खड़ा किया कि ऐसा कैसे हो सकता है कि वह तब एनआरआई रेजिडेंशियल स्टेटस के फर्स्ट ईयर में हों और इतने काम कम टाइम में 200 करोड़ रुपए खाते में जमा हो गए।
पीठ ने कहा कि यदि थरानी की आयकर रिटर्न को ध्यान में रखा जाए तो जितना धन उनके स्विस बैंक खाते में है उसे कमाने के लिए उन्हें 11 हजार 500 साल लगे होंगे। पीठ ने कहा कि करदाता मदर टेरेसा की तरह कोई सार्वजनिक पर्सनैलिटी नहीं हैं कि कोई भी उनके खाते में 4 मिलियन डॉलर जमा कराए। केमेन आइलैंड भी परोपकारी कामों के लिए नहीं जाना जाता, बल्कि मनी लॉन्ड्रिंग के लिए उसकी पहचान है।
ITAT पीठ ने कहा थरानी ने कन्सेंट वेवर फॉर्म पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं, जो आयकर विभाग को सक्षम बनाता है कि वह विदेशी बैंकों से संबंधित जानकारी हासिल करे। वह विभाग की ओर से प्राप्त विवरण की सत्यता से इनकार नहीं कर सकती हैं।