राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (NIA) ने असम के धुर वामपंथी ‘एक्टिविस्ट’ अखिल गोगोई के खिलाफ दायर चार्जशीट में आरोप लगाया गया है कि वह असम में सीएए विरोधी प्रदर्शन के दौरान राज्य में रहने वाली बंगाली आबादी के खिलाफ असम के लोगों को भड़काने के फ़िराक में था।
एनआईए की चार्जशीट के हवाले से ‘आवर नॉर्थईस्ट’ की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि गोगोई ने असम में समाज के दो वर्गों के बीच हिंसा भड़काने की साजिश रची थी। चार्जशीट में एक गवाह का उल्लेख है जिसने स्वीकार किया कि अखिल गोगोई ने 9 दिसंबर 2019 को विरोध प्रदर्शनों की योजना बनाने के लिए उसे बुलाया था और उससे कुछ हिंसक गतिविधि अंजाम देने के लिए कहा था।
अखिल गोगोई और गवाह के बीच हुई इस बातचीत के बाद, दोनों उसी दिन चबुआ के लिए रवाना हो गए। एनआईए ने बताया कि अखिल गोगोई और गवाह ने 6,000 से भी अधिक लोगों की भीड़ को संबोधित किया था। गोगोई ने अपने भाषण के दौरान भीड़ को उकसाया। इसके बाद भीड़ हिंसक हो गई और पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया। पथराव के दौरान ड्यूटी पर मौजूद चबुआ का एक पुलिस अधिकारी गंभीर रूप से घायल हो गया।
चार्जशीट में राज्य में असमिया और बंगाली लोगों के बीच दुश्मनी पैदा करने की गहरी साजिश का खुलासा हुआ। चार्जशीट में कहा गया है कि अखिल गोगोई के नेतृत्व में प्रदर्शनकारी अमरावती इलाके में घरों को जलाने की योजना बना रहे थे, जो चबुआ में एक बंगाली आबादी वाला इलाका है। हालाँकि, प्रशासन द्वारा इस भयावह साजिश को विफल कर दिया गया था।
चार्जशीट में यह भी कहा गया है कि स्थिति हिंसक होने के बावजूद, अखिल गोगोई ने भीड़ को रोकने की कोशिश नहीं की बल्कि उसे और उकसाया। चार्जशीट में कहा गया है कि हिंसक भीड़ ने एक पुलिसकर्मी पर भी हमला करते हुए उसे गंभीर रूप से घायल कर दिया था।
चार्जशीट के अनुसार, हिंसा इतनी भयावह थी कि अखिल गोगोई के नेतृत्व में भीड़ द्वारा चबुआ रेलवे स्टेशन को भी जला दिया गया, जिसके चलते सार्वजनिक संपत्ति को भारी नुकसान पहुँचा।
गौरतलब है कि गुवाहाटी हाई कोर्ट ने 7 जनवरी, 2021 को अखिल गोगोई की जमानत याचिका खारिज करते हुए विशेष एनआईए कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था। हाई कोर्ट ने कहा था कि असम में ऐंटी सीएए आंदोलन के दौरान जो हुआ था वह सत्याग्रह नहीं था, बल्कि गैरकानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) में परिभाषित टेररिस्ट ऐक्ट के तहत आता है।
जस्टिस कल्याण राय सुराना और अजीत बाठकुर की बेंच ने आदेश में कहा, “हिंसा का इस्तेमाल करते हुए अखिल के नेतृत्व वाली भीड़ ने अहिंसक आंदोलन की अवधारणा को ही खारिज कर दिया था। आंदोलन के जरिए सरकारी मशीनरी को कमजोर करने, आर्थिक नाकेबंदी, समुदायों के बीच नफरत फैलाने और शांति में बाधा उत्पन्न करके सरकार के प्रति अंसतोष पैदा करने की कोशिश की गई थी।” कोर्ट ने कहा कि इस तरह की गतिविधि यूएपीए की धारा 15 के तहत आतंकी कार्य के रूप में परिभाषित है।
बता दें कि अखिल गोगोई, कृषक मुक्ति संग्राम परिषद और राइजोर दल का नेता है। संशोधित नागरिकता कानून (CAA) के खिलाफ कथित हिंसक प्रदर्शन के मामले में गोगोई को जोरहाट से दिसंबर 2019 में गिरफ्तार किया गया था और तब से वह गुवाहाटी केंद्रीय कारागार में बंद है।