Friday, November 22, 2024
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केरल सरकार ने शूटिंग की नहीं दी अनुमति, सेंसर बोर्ड ने कई सीन काट डाले: मोपला नरसंहार पर फिल्म बनाने वाले निर्देशक ने बताई पूरी कहानी, मिल रही धमकियाँ

रामसिम्हा ने ऑपइंडिया को बताया कि केवल सेंसर बोर्ड के कट्स ही फिल्म में बाधा नहीं बन रहे थे, बल्कि कई अन्य समस्याएँ भी सामने आईं। जैसे, वह फिल्म के हिंदी संस्करण के लिए एक नाम रजिस्टर करना चाहते थे। हालाँकि, वह भी बेहद मुश्किल साबित हुआ।

साल 1921 में मालाबार में मोपला मुस्लिमों द्वारा हिंदुओं का नरसंहार किया जाना भारत के इतिहास के सबसे काले अध्यायों में से एक है। एक अनुमान के अनुसार, मालाबार नरसंहार में मोपला मुस्लिमों ने 10,000 से अधिक हिंदुओं का नरसंहार किया था। यह नरसंहार मोहनदास करमचंद गाँधी द्वारा शुरू किए गए खिलाफत आंदोलन का प्रत्यक्ष परिणाम था। इस नरसंहार के बाद हमलावरों को ही पीड़ित के रूप में दिखाया गया। साथ ही, हिन्दुओं पर हुए अत्याचार और नरसंहार को पूरी तरह से छिपाने का प्रयास किया गया।

इस नरसंहार के बाद से वामपंथियों ने यह दिखाने का प्रयास किया है कि मालाबार नरसंहार एक ‘किसान विद्रोह’ था, जहाँ गरीब मुस्लिम अपने अधिकारों की माँग करते हुए हिन्दू जमींदारों के खिलाफ खड़े हुए थे। वामपंथी यह कहते रहे हैं कि यह नरसंहार सांप्रदायिक नफरत के कारण नहीं हुआ था। बल्कि, मुसलमानों द्वारा सामना किए गए उत्पीड़न का परिणाम था।

वास्तव में, वामपंथियों ने हमेशा ही सच को छिपाने का प्रयास किया है। इस मामले में भी कुछ ऐसा ही है क्योंकि सच्चाई कुछ और है। दीवान बहादुर सी. गोपालन नायर द्वारा लिखित पुस्तक ‘द मोपला रिबेलियन 1921’ में, उन्होंने बताया है कि मोपला नरसंहार से पहले भी कई बार मुस्लिमों ने धार्मिक उन्माद के चलते हिन्दुओं की हत्याएँ की थीं। सी. गोपालन नायर ने पुस्तक में बताया है कि कैसे मुस्लिम कभी-कभी अपने “हाल इलकम” (धार्मिक उन्माद) में चले जाते हैं और न केवल हिंदुओं की हत्या करते थे, बल्कि उनके मंदिरों को भी अपवित्र करते थे।

उस समय, मिस्टर टीएल स्ट्रेंज को मालाबार में स्पेशल कमिश्नर के रूप में भेजा गया था। स्ट्रेंज को मालाबार सिर्फ इसलिए भेजा गया था क्योंकि वह मुस्लिमों द्वारा उन्मादी हिंसा के पीछे के कारणों का पता लगा सकें। 1852 की अपनी एक रिपोर्ट में, स्ट्रेंज ने इस थ्योरी को साफ तौर से खारिज कर दिया था कि हिंदुओं के खिलाफ मुस्लिमों द्वारा किए गए अपराध ‘किसान विद्रोह’ के परिणाम थे। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि हिन्दू जमींदारों ने किसानों के साथ अच्छा व्यवहार किया और हिंदुओं के खिलाफ हिंसा इस्लामी नफरत का ही परिणाम थी।

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि हिंदुओं के मालाबार नरसंहार के बारे में वामपंथियों द्वारा सेट किए गए नैरेटिव को जिसने भी तोड़ने का प्रयास किया है, उसे भारी विरोध का सामना करना पड़ा है। इसलिए, ऐसी आशंका पहले से ही जताई जा रही थी कि रामसिम्हा (जिन्हें पहले अली अकबर के नाम से जाना जाता था) की आगामी फिल्म को इसी तरह के विरोध का सामना करना पड़ेगा।

उम्मीद के मुताबिक ही, गत 27 जून को खबर सामने आई कि केरल के सेंसर बोर्ड ने फिल्म निर्माता अली अकबर उर्फ ​​​​रामसिम्हा की आगामी मलयालम फिल्म ‘पुझा मुथल पूझा वरे’ को एक सार्टिफिकेट देने से इनकार कर दिया है। इस फिल्म की कहानी, मालाबार में हुए हिन्दुओं के नरसंहार के इर्द-गिर्द घूमती है। 

ऐसा माना जाता है कि रामसिम्हा की फिल्म को सार्टिफिकेट मिलना इतना कठिन नहीं था। लेकिन, जब बार-बार इस्लामवादियों के आचरण से परेशान होकर (खासतौर से सीडीएस विपिन रावत के निधन पर कट्टर मुस्लिमों के जश्न मनाने के बाद) उन्होंने हिन्दू धर्म अपना लिया था, तबसे कई चीजें उनके लिए समस्याजनक हो चुकी हैं।

रामसिम्हा का कहना है, “हिंदुओं के मालाबार नरसंहार पर एक फिल्म रिलीज हो रही थी जिसमें हत्यारों का महिमामंडन किया गया था। फिल्म ‘वरियमकुन्नन’ वरियमकुनाथ कुन्हमेद हाजी और अली मुसलियार के जीवन पर आधारित थी। 1920 के दशक की शुरुआत में केरल में हजारों हिंदुओं का नरसंहार करने के लिए जिहादी जिम्मेदार हैं। जब इस फिल्म की घोषणा की गई, तो कई लोगों ने मुझसे एक ऐसी फिल्म बनाने के लिए संपर्क किया, जो हिंदू समुदाय के साथ हुई सच्चाई का प्रतिनिधित्व करती हो। तभी मैंने इस फिल्म को बनाने का फैसला किया।”

रामसिम्हन की यह फिल्म पूरी तरह से क्राउड फंडिंग पर आधारित है। रामसिम्हा कहते हैं, “लोगों ने मुझे इस फिल्म को बनाने के लिए पैसे दिए थे। मैंने लोगों के योगदान से ही 1.4 करोड़ रुपये इकट्ठे किए।”

यहाँ, यह बताना जरूरी है कि मलयालम निर्देशक आशिक अबू ने विवादास्पद मलयालम अभिनेता पृथ्वीराज सुकुमारन को अपनी पीरियड फिल्म ‘वरियमकुन्नन’ के लिए कास्ट किया था। हालाँकि, हंगामे के बाद यह खबर सामने आई कि अब यह फिल्म ठंडे बस्ते में चली गई है। जून 2020 में, विवादास्पद मलयाली अभिनेता पृथ्वीराज सुकुमारन ने नई फिल्म की घोषणा करते हुए फेसबुक पर एक पोस्ट किया था, जिसमें उन्होंने जिहादियों की तारीफ की थी।

पृथ्वीराज सुकुमारन ने फिल्म के पोस्टर को शेयर करते हुए कहा था, “वरियमकुनाथ एक ऐसे साम्राज्य के खिलाफ खड़े हुए, जिसने दुनिया के एक चौथाई हिस्से पर शासन किया।” कई लोगों ने इस फिल्म के खिलाफ आरोप लगाते हुए आपत्ति जताई थी कि फिल्म एक आतंकवादी को अंग्रेजों के खिलाफ “विद्रोह” करने वाले के रूप में दिखा कर उसे अपराध से मुक्त करने का प्रयास है।

रामसिम्हा (अली अकबर) ने ऑपइंडिया से बात करते हुए कहा, “शुरू से ही केरल सेंसर बोर्ड में पार्वती नाम की एक क्षेत्रीय अधिकारी फिल्म के खिलाफ थी। रजिस्ट्रेशन होने के समय से ही, वह मेरे खिलाफ थी। सॉफ्टवेयर ई-प्रमाण में फिल्म को रजिस्टर करने में लगभग डेढ़ महीने का समय लगा। बार-बार यह कहा जाता रहा कि फिलहाल यह जाँच के दायरे में है। हालाँकि, जब मैंने कहा कि अब मैं हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाऊँगा, उन्होंने जल्द ही रजिस्ट्रेशन कर दिया। इसके बाद उन्होंने स्क्रीनिंग के लिए बुलाया। लेकिन, स्क्रीनिंग के बाद बिना बताए ही उन्होंने रिवीजन कमेटी, मुंबई को फिल्म का सुझाव भेज दिया।”

रामसिम्हा का कहना है कि जब वह मुंबई पहुँचे तो रिवीजन कमेटी में 9 लोगों की सुनवाई हो रही थी। रिवीजन कमेटी ने कहा कि फिल्म में थोड़ी सी भी हिंसा होने के कारण इसे जो सर्टिफिकेट दिया जाएगा वह A सर्टिफिकेट होगा। रिवीजन कमेटी ने कुछ मामूली कटौती का भी सुझाव दिया जिसे रामसिम्हा ने स्वीकार कर लिया।

रिवीजन कमेटी की इस मीटिंग के बाद, जब रामसिम्हा फिल्म में हुई कटिंग की लिस्ट मिलने का इंतजार कर रहे थे। इस दौरान, उन्हें केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) से नोटिस मिला कि रिवीजन कमेटी की एक और मीटिंग होनी है। इस नोटिस के बाद से रामसिम्हा थोड़े घबराए हुए थे क्योंकि उन्हें रिवीजन कमेटी की दूसरी मीटिंग का कारण समझ नहीं आया था। इसके बाद, रामसिम्हा के सूत्रों ने उन्हें बताया कि फिल्म को रिवीजन कमेटी की पहली टीम द्वारा पास किया गया था। लेकिन, उस कमेटी द्वारा कुछ ‘गलतियाँ’ हुईं हैं जिस कारण दूसरी मीटिंग हो रही है। रामसिम्हा कहते हैं, जब वे रिवीजन कमेटी की दूसरी मीटिंग में लिए पहुँचे तो पैनल में कोई भी मलयाली सदस्य नहीं था।

फिल्म में केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) द्वारा सेंसर किए गए कुछ सीन्स में से एक वो सीन था जहाँ थुवूर के कुएँ में हुई घटना को दिखाया गया था। दरअसल, 25 सितंबर, 1921 को, उत्तरी केरल में थुवूर और करुवायकांडी के बीच बंजर पहाड़ी पर खिलाफत नेताओं में से एक, चंब्रासेरी इम्बिची कोइथंगल ने 4000 लोगों के साथ एक रैली की थी। इस रैली के दौरान, 40 से अधिक हिंदुओं को पकड़ लिया गया और उनके हाथ पीछे करके बाँध दिए गए थे। इसके बाद 40 में से 38 लोगों की हत्या कर दी गई थी। 38 में से 3 को गोली मार दी गई। जबकि, बाकी लोगों का सिर काटकर थुवूर कुएँ में फेंक दिया गया था।

थुवूर कुएँ की घटना के अलावा, ऐसे कई सीन थे जिन्हें सेंसर बोर्ड द्वारा काट दिया गया। रामसिम्हा ने उदहारण देते हुए ऑपइंडिया को बताया है, फिल्म में, एक संवाद था जो अल-दौला (इस्लामी राज्य) के बारे में बताता थ।, इस साम्राज्य को कुंजाहमद हाजी द्वारा मालाबार में स्थापित किया गया था। ऐसा बताया जाता है कि यह स्पष्ट रूप से एक ‘स्वतंत्र क्षेत्र’ था जिसे इस्लामवादियों ने स्थापित किया था और उन्होंने हिंदुओं पर जजिया भी लगाया था। 

सीबीएफसी की दूसरी मीटिंग में एक महिला (सेंसर बोर्ड की सदस्य) ने रामसिम्हा (अली अकबर) से शरीयत और इस्लाम के बारे में कुछ सवाल किए और फिर उस संवाद को पूरी तरह से कट कर दिया।

अकबर ने ऑपइंडिया को बताया कि 1921 में हिन्दुओं के नरसंहार के दौरान बड़े पैमाने पर हत्याएँ हुईं थीं। हिंदुओं का जबरन धर्मांतरण हुआ, हिंदुओं की आस्था का अपमान करने के लिए जानबूझकर गायों की हत्याएँ की गईं, कई हजार लोगों के सिर काट दिए गए और मंदिरों को धराशायी कर दिया गया। फिल्म में, ऐसे कई सीन थे जहाँ उन्होंने हिंदुओं के जबरन धर्मांतरण और इस्लामवादियों द्वारा मंदिरों को तोड़े जाने को प्रदर्शित किया था। इन सभी सीन को सेंसर बोर्ड ने भी अस्वीकार कर दिया। एक अन्य सीन में, गोहत्या दिखाए बिना, इस्लामवादियों द्वारा गायों का वध करने का संकेत दिया गया था, लेकिन उस सीन को भी हटा दिया गया।

ऐसे सीन के अलावा, ऑपइंडिया को बताया गया कि सेंसर बोर्ड ने अली अकबर (रामसिम्हा) से कहा था कि “अल्ला हु अकबर” और “नारा-ए-तकबीर” के नारे इतनी बार नहीं दिखाए जाएँ।

यह साफ था कि फिल्म में जिस तरह से कट लगाए जा रहे हैं, वह मोपला मुस्लिमों द्वारा हिंदुओं पर किए गए अत्याचार और नरसंहार का वास्तविक रूप सामने नहीं आने देना चाहते थे। रामसिम्हा को संदेह है कि सेंसर बोर्ड केरल की उस अधिकारी के प्रभाव में था। रामसिम्हा को लगता है वह अधिकारी एक कम्युनिस्ट है जो कि इस नरसंहार को लेकर कम्युनिस्टों द्वारा गढ़ी गई थ्योरी (जमीदारों के प्रति मुस्लिमों का विद्रोह) को टूटने नहीं देना चाहती थी इसलिए वह फिल्म के कई सीन कटवा रही थी। इस बात की पुष्टि ऐसे भी हो जाती है कि जब फिल्म में हिंदू राजाओं के परिवार को “देवता” के रूप में दिखाया तो तो सेंसर बोर्ड ने जोर देकर कहा कि उन्हें “जमींदारों” के रूप में ही दिखाया जाना चाहिए।

रामसिम्हा को इस फिल्म में हुए सभी कटों की पूरी सूची मिल चुकी है। उनका कहना है कि फिल्म में जिस तरह से कट लगाए गए हैं यदि फिल्म ठीक वैसे ही दिखाई गई तो इसका मतलब यह होगा कि मोपला मुस्लिमों ने हिन्दुओं पर अत्याचार तो किया, लेकिन यह फिल्म में दिखाया ही नहीं गया। सीधी बात यह है कि फिल्म में लगे कट्स इस वामपंथियों के “किसान विद्रोह” के नैरेटिव को और मजबूत कर देंगे। टीजी मोहनदास ने फिल्म में लगे अभी कट्स की पूरी सूची ट्विटर पर भी अपलोड की है।

रामसिम्हा ने ऑपइंडिया से बात करते हुए कहा, “फिल्म में लगे कट के साथ फिल्म को दिखाना केवल कट्टर मुस्लिमों की भलाई होगी। मोपला मुस्लिमों द्वारा हिन्दुओं पर किए गए अत्याचार जैसा दिखाया जाना इस फिल्म में कुछ भी नहीं बचा है।”

उन्होंने, यह भी कहा कि फिल्म की वास्तविक कहानी और सार को बदलने के अलावा, केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) ने अपनी रिवीजन कमेटी की बैठक के दौरान उन्हें फिल्म के डायरेक्टर के रूप में अपने मुस्लिम नाम अली अकबर का उपयोग करने के लिए मजबूर किया था।

ऑपइंडिया से हुई एक्सक्लुसिव बातचीत में रामसिम्हा ने कहा, “मुझे लगता है कि उन्हें यह समस्या है कि एक मुस्लिम व्यक्ति हिन्दू धर्म में परिवर्तित हो गया और हिंदुओं के मालाबार नरसंहार पर एक फिल्म बना रहा है। शायद वे नहीं चाहते कि समाज में ऐसा संदेश जाए।”

उन्होंने आगे कहा “इतने सारे लोग पेन नेम्स (उपनाम) का उपयोग करते हैं। इतने सारे कलाकार और टेक्नीशियन अलग-अलग नामों का उपयोग करते हैं। अगर मैं अली अकबर को निर्माता नाम के रूप में उपयोग करना चाहता हूँ लेकिन निर्देशक के रूप में मेरा हिन्दू नाम उपयोग करना चाहता हूँ तो उन्हें समस्या क्यों होनी चाहिए? उनसे फिल्म की समीक्षा करने की अपेक्षा की जाती है, न कि नामों पर निर्णय लेने के लिए।”  

इस बातचीत को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा, “मुझे संदेह है कि केरल सेंसर बोर्ड की पार्वती ने सीबीएफसी (केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड) की रिवीजन कमेटी से कहा था कि ये कटौती होनी चाहिए। मुझे पीएफआई जैसे इस्लामी संगठनों के भी कुछ दबाव का संदेह है। 

यह पूछे जाने पर कि, केरल सेंसर बोर्ड और रिवीजन कमेटी, दोनों ही केंद्र सरकार के अधीन हैं। ऐसे में उन्हें यह क्यों लगता है कि उनकी फिल्म के लिए दबाव डाला जा रहा है? रामसिम्हा ने कहा, “आपको ‘द कश्मीर फाइल्स’ के उस डॉयलॉग को याद रखना होगा – सरकार किसी की भी हो सकती है लेकिन सिस्टम अभी भी उनका है। साथ ही, मुझे लगता है कि केंद्र सरकार आर्थिक विकास में अधिक रुचि रखती है और इस प्रक्रिया में, वे महत्वपूर्ण सांस्कृतिक मुद्दों की अनदेखी करते हैं।”

मोपला मुस्लिमों द्वारा किए गए हिन्दुओं के नरसंहार पर फिल्म बनाते समय रामसिम्हा के सामने आयीं कई समस्याएँ

रामसिम्हा ने ऑपइंडिया को बताया कि केवल सेंसर बोर्ड के कट्स ही फिल्म में बाधा नहीं बन रहे थे, बल्कि कई अन्य समस्याएँ भी सामने आईं। जैसे, वह फिल्म के हिंदी संस्करण के लिए एक नाम रजिस्टर करना चाहते थे। हालाँकि, वह भी बेहद मुश्किल साबित हुआ। रामसिम्हा इस फिल्म के हिंदी संस्करण का नाम, “1921: पूझा मुथल पूझा वरे” को पंजीकृत करना चाहते थे, जो “1921: नदी से नदी तक” का अनुवाद है। हालाँकि, जब उन्होंने यह नाम रजिस्टर कराने की कोशिश की तो वह पहले ही किसी और ने ले लिया था।

रामसिम्हा कहते हैं, “मैंने नाम के 20 अलग-अलग नामों रजिस्टर करने की कोशिश की, मालाबार नरसंहार से लेकर हर बदलाव के बारे में सोच सकते हैं। हालाँकि, सभी किसी और के द्वारा पहले ही रजिस्टर किए गए थे। मुझे यह ऐसा लग रहा था जैसे कोई यह चाहता हो कि मैं फिल्म के लिए हिन्दी नाम की तलाश न करूँ।” रामसिम्हा को लगता है कि कोई जानबूझकर फिल्म के सभी संभावित नाम रजिस्टर्ड करा रहा है, इसलिए वो कोई भी हिन्दी नाम रजिस्टर नहीं करा सके।

रामसिम्हा ने आगे कहा कि केरल पुलिस और केंद्रीय खुफिया अधिकारियों ने उनसे संपर्क किया है, उन्हें सूचित किया है कि वह गंभीर खतरे में हैं। उन्होंने बताया, “फिल्म के खबरों में आने के बाद, यहाँ यहां तक ​​कि जब मैं फिल्म की शूटिंग कर रहा था, तब भी धमकियाँ मिल रही थीं। केंद्रीय एजेंसियाँ ​​मेरे घर आईं और सुरक्षा के लिहाज से मुझे आठ कैमरे लगाने के लिए कहा था।”

रामसिम्हा ने कहा, “यहाँ तक ​​​​कि जब मैं फिल्म की शूटिंग कर रहा था, तब भी राज्य सरकार ने मुझे शूटिंग की अनुमति देने से इनकार करके फिल्म को रोकने की कोशिश की थी। राज्य की ओर से मुझे पब्लिक प्लेसों में शूटिंग की अनुमति नहीं दी गई, जिसके बाद मुझे निजी क्षेत्रों में जाकर फिल्म की शूटिंग करनी पड़ी।” 

उन्हें मिल रही धमकियों के बारे में रामसिम्हा कहते हैं, “कट्टरपंथी इस्लामवादियों ने फिल्म में काम करने वाले कलाकारों को भी धमकी दी थी, उन्हें फिल्म के साथ अपना जुड़ाव खत्म करने के लिए कहा था। रामसिम्हा आगे कहते हैं, “जिस दिन उन्हें (इस्लामवादियों को) मौका मिलेगा, वे मुझे खत्म कर देंगे, सुरक्षा के लिए सिर्फ मेरे कृष्ण हैं।”

बता दें, रामसिम्हा को पहले अली अकबर के नाम से जाना जाता था। लेकिन, उन्होंने हिन्दू धर्म अपनाने के साथ ही अपना नाम रामसिम्हा रख लिया है। रामसिम्हा ने अब सीबीएफसी (केंद्रीय फ़िल्म प्रमाणन बोर्ड) द्वारा उनकी फिल्म पर की गई कटिंग को लेकर न्याय की गुहार लगाने के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का फैसला किया है।

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