उत्तर प्रदेश की इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद स्थल को श्रीकृष्ण जन्मभूमि के रूप में मान्यता देने की माँग वाली याचिका पर सुनवाई करने पर सहमति दी है। इसके पहले 19 जनवरी 2021 को हाईकोर्ट ने इस याचिका को याचिकाकर्ता के अनुपस्थिति के कारण खारिज कर दी थी।
उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति प्रकाश पाडिया की खंडपीठ ने अधिवक्ता महक माहेश्वरी द्वारा दायर इस याचिका पर सुनवाई की सहमति दी। कोर्ट ने कहा कि याचिका खारिज करने के बाद इसे बहाल करने के लिए तुरंत आवेदन दिया गया था।
अपने आदेश में पीठ ने उस याचिका को बहाल कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मुख्य याचिका को याची की अनुपस्थिति में खारिज करने के आदेश को वापस लिया जाता है। मुख्य याचिका को उसके मूल नंबर पर बहाल किया जाता है।अब इस पर अगली सुनवाई 25 जुलाई को होगी।
याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर बनी मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की माँग करते हुए मंदिर की जमीन हिंदुओं को सौंपने का आग्रह किया गया है। इसके साथ ही उक्त भूमि पर मंदिर निर्माण के लिए श्रीकृष्ण जन्मभूमि जन्मस्थान के लिए एक ट्रस्ट का गठन करने की माँग भी की गई है। इसके साथ ही याचिका में मामले के निपटारे तक हिंदुओं को सप्ताह में कुछ दिन और जन्माष्टमी को मस्जिद में पूजा करने की अनुमति देने का आग्रह किया गया है।
पौराणिक इतिहास का हवाला देते हुए याचिका में कहा गया है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म राजा कंस के कारागार में हुआ था और यह जन्मस्थान शाही ईदगाह के वर्तमान ढाँचे के ठीक नीचे है। सन 1670 में मुगल आक्रांता औरंगजेब ने मथुरा पर हमला कर दिया था और केशवदेव मंदिर को ध्वस्त करके उसके ऊपर शाही ईदगाह मस्जिद बनवा दिया था। याचिका में कहा गया है कि सरकारी वेबसाइट में भी इसका जिक्र किया गया है।
याचिका में पूर्व में किए गए समझौते को लेकर कहा गया है, “ट्रस्ट मस्जिद ईदगाह के प्रबंधन समिति ने 12.10.1968 (12 अक्टूबर 1968) को सोसायटी श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ के साथ एक अवैध समझौता किया और दोनों ने संपत्ति पर कब्जा करने और हड़पने के लिए अदालत, वादी देवताओं और भक्तों के साथ धोखाधड़ी की। वास्तव में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट 1958 से गैर-कार्यात्मक है।”
बता दें कि मथुरा का मुद्दा नया नहीं है। अदालत में इस मामले में याचिकाएँ दाखिल की गई हैं और उन सुनवाई होती रही है। 13.37 एकड़ जमीन पर दावा करते हुए हिन्दू यहाँ से शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की माँग करते रहे हैं। 1935 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने वाराणसी के हिन्दू राजा को भूमि के अधिकार सौंपे थे।
साल 1951 में ‘श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट’ बना और यहाँ भव्य मंदिर के निर्माण का संकल्प लिया गया। 1958 में ‘श्रीकृष्ण जन्म सेवा संघ’ का गठन हुआ। इसी ट्रस्ट ने प्रबंधन का जिम्मा उठाया। साल 1968 का एक समझौता ही सारे विवाद की जड़ है, जिसे मंदिर और मस्जिद पक्ष की बैठक के बाद तय किया गया था। उसमें मुस्लिमों को मस्जिद के प्रबंधन के अधिकार दे दिए गए।