इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि पत्रकार से यह उम्मीद नहीं की जाती कि वह किसी का जीवन खतरे में डालकर उस घटना का नाटकीकरण करे और खबर को भयावह दिखाए। हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी टीवी पत्रकार शमीम अहमद की जमानत याचिका को खारिज करते हुए की। शमीम पर बीते साल एक व्यक्ति को उत्तर प्रदेश विधानसभा भवन के सामने आत्मदाह करने के लिए उकसाने का आरोप है ताकि वह इस घटना को अपने कैमरे में कैद कर सके।
जस्टिस विकास कुँवर श्रीवास्तव ने कहा कि एक पत्रकार का काम है आसपास घटने वाली घटनाओं पर नजर बनाए रखना। उसके बारे में पूरी जानकारी बिना किसी छेड़छाड़ के लोगों तक पहुँचाना। उन्होंने यह भी कहा कि किसी पत्रकार से यह अपेक्षा नहीं रहती है कि वह घटनाओं का नाटकीकरण करेगा और किसी के जीवन को संकट में डालकर खबर बनाने का प्रयास करेगा।
जस्टिस श्रीवास्तव ने 21 जून को दिए गए अपने आदेश में यह भी कहा कि उपलब्ध सबूतों और मामले में दर्ज किए गए बयानों से प्रथम दृष्ट्या यही तथ्य सामने आता है कि आरोपित शमीम अहमद ने मृतक को यह कहते हुए उकसाया कि अगर वह यूपी विधानसभा भवन के सामने आत्महत्या का प्रयास करेगा तो उसकी बात जल्दी सुनी जाएगी।
क्या है मामला?
आत्मदाह करने वाला सुरेन्द्र चक्रवर्ती लखनऊ के उदयगंज इलाके में जावेद खान के यहाँ किराए से रहता था। जावेद अपना घर खाली कराना चाहता था। लेकिन सुरेन्द्र ने आर्थिक तंगी का हवाला देकर घर खाली करने में असमर्थता जताई। इसके बाद 19 अक्टूबर 2020 को मकान मालिक ने कथित तौर पर उससे गाली-गलौच की। इसी दौरान आरोपित पत्रकार शमीम अहमद ने सुरेंद्र को खुद को आग लगाने और घटना को कवर करने का वादा किया।
उसने सुरेंद्र से कहा कि यदि वह ऐसा करेगा तो मामला सबके सामने आ जाएगा और उस घर से निकलने के लिए जावेद मजबूर नहीं कर पाएगा। कथित तौर पर इसी झाँसे में आ सुरेंद्र ने खुद को आग लगा ली और 24 अक्टूबर 2020 को अस्पताल में उसकी मौत हो गई। मामले में जावेद खान को भी आरोपित बनाया गया था।