दिल्ली में सीएए विरोध के नाम पर हुई हिंदू विरोधी दंगे की आग सातवें दिन ठंडी तो पड़ गई, लेकिन इस हिंसा में पीड़ित लोगों की आँखों के आँसू थमने का नाम नहीं ले रहे। कोई अपनों के अंतिम दर्शन करने के इंतजार में आँसू बहा रहा है तो कोई अपनों के न मिलने के गम में। कुछ ऐसी ही कहानी है हिंदू विरोधी दंगों के बीच गायब हुए धर्मेंन्द्र वर्मा की। सात दिन से धर्मेंद्र के परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है।
दिल्ली में चाँद बाग से शुरू हुई हिंदू विरोधी हिंसा के सात दिन बाद ऑपइंडिया की टीम दंगा पीड़ितों से मुलाकात करती हुई बृजपुरी पहुँची। कुछ हिंदू पीड़ित अपने घरों पर ताला लटकाकर जा चुके हैं तो शेष हिंदू पीड़ित अपने घरों में पिछले सात दिनों से डर के मारे कैद हैं। कुछ ऐसा ही देखने को मिला सात दिन पहले दंगों के बीच गायब हुए धर्मेन्द्र के यहाँ। हिंदू बहुल इस इलाके की गली में सन्नाटा पसरा हुआ था। कुछ लोग जरूरी काम से ही घरों से निकलते दिखाई दे रहे थे। हम पूछताछ करते हुए दंगों के बीच गायब हुए धर्मेद्र वर्मा के यहाँ पहुँच गए। दरवाजे से आवाज देने के बाद ऊपर परिवार के कुछ सदस्य एक के बाद एक नीचे की ओर झाँके तो हमने उन्हें अपना परिचय देते हुए बात करने और घटना के संबंध में अधिक जानकारी लेने की इच्छा जताई।
परिवार के मौजूद सदस्य बेटे की चिंता में बदहवास माँ को पकड़कर सीढ़ियों से नीचे लेकर आते हैं, लेकिन वह कुछ भी बोलने में असमर्थ थीं। इसके बाद मौजूद बड़े भाई धीरेन्द्र वर्मा ने बताया, “मुस्लिम महिलाओं का सीएए के विरोध में बीते रविवार को ही धरना शुरू हो गया था। उसी दिन शाम करीब पाँच बजे छोटा भाई धर्मेन्द्र वर्मा बाहर घूमने की बात कहकर घर से निकल गया। देर शाम को जानकारी मिली कि जाफराबाद की ओर हिंसा शुरू हो गई है। रात के करीब आठ बज चुके थे, लेकिन ध्यान में आया कि छोटा भाई अभी तक घर नहीं लौटा है। इसके बाद हम परिवार के लोग परेशान उसे ढूँढने के लिए निकल पड़े। देर रात तक हमें उसका कोई सुराग नहीं लग सका।”
बड़े भाई धीरेन्द्र के मुताबिक अगले दिन सुबह से ही वो धर्मेन्द्र को खोजने निकड़ पड़े। इसी बीच सोमवार को इलाके में हालात इतने बेकाबू हो गए थे कि उन्हें मजबूरन खाली हाथ अपने घरों को वापस लौटना पड़ा। इसके बाद उन्होंने अपने आस-पास जानने वाले और दूर रह रहे सगे-संबंधियों मे फोन करके पता किया। यहाँ तक कि उन्होंने जीटीबी अस्पताल में जाकर वहाँ घायल लोगों में और वहाँ रखे शवों में भी धर्मेन्द्र की पहचान की, लेकिन कोई सुराग नहीं लग सका। घर में धर्मेंद्र की माँ और छोटे भाई का रो-रोकर बुरा हाल है।
धीरेंद्र आगे बताते हैं, “सोमवार को बाहर का माहौल इतना खराब हो चुका था कि हम चाहकर भी नहीं निकल सकते थे। इतना ही नहीं हम तीन दिनों तक सभी भूखे-प्यासे, रोते-बिलखते अपने घरों में कैद रहे। थोड़ा माहौल शांत हुआ तो हमने पुलिस को लिखित में धर्मेन्द्र के ग़ायब होने की जानकारी दी। पुलिस ने हमें हर संभव मदद का भरोसा दिया, लेकिन आज सात दिन हो गए और धर्मेन्द्र का अभी तक कोई अता-पता नहीं चला है।”
वहीं आस-पास में खड़े लोगों ने बताया कि धर्मेन्द्र के ग़ायब होने के बाद उसकी माँ ने चार दिनों तक खाना नहीं खाया। तबियत ज्यादा खराब होने पर लोगों ने उनको जबरदस्ती खाना खिलाया है। इतना ही नहीं, धर्मेन्द्र की माँ को देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे वह किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित हैं। धीरेन्द्र ने बताया कि वो पूरे दिन माँ की देखभाल करते हैं, उनको संभालते हैं। जबकि धर्मेंद्र के पिता वीरसहाय हर रोज सुबह बिना कुछ खाए-पिए अपने बेटे को खोजने निकलते हैं, लेकिन देर रात हताश होकर खाली हाथ घर लौट आते हैं।
दरअसल बृजपुरी इलाके में रहने वाला 15 वर्षीय धर्मेन्द्र वर्मा (पुत्र वीरसहाय) अपने तीन भाइयों में दूसरे नंबर का था। परिवार की माली हालत खराब होने के कारण वो एक फैक्ट्री में पिछले कुछ दिनों से पढ़ाई छोड़कर काम सीखने के लिए जाता था। धर्मेन्द्र के पिता और उसके बड़े भाई धीरेन्द्र एक फैक्ट्री में मजदूर का काम करके अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं।
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