दशकों पुराने विवाद और 134 साल चली कानूनी लड़ाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार (नवंबर 9, 2019) को राम मंदिर मामले पर फैसला सुना दिया। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पाँच सदस्यीय संविधान पीठ ने एकमत से अयोध्या को भगवान राम का जन्मस्थान मानते हुए पूरी जमीन रामलला विराजमान को सौंपकर मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त कर दिया। वहीं मुस्लिम पक्षकारों को मस्जिद बनाने के लिए अलग से 5 एकड़ जमीन देने का भी निर्णय सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने 1045 पन्नों में अपना फैसला सुनाया। लेकिन इस बात का खुलासा नहीं किया गया कि इस फैसले को किसने लिखा। सामान्यत: जब एक पीठ द्वारा किसी विषय पर फैसला दिया जाता है, तो निर्णय को लिखने वाले न्यायाधीश का नाम इसमें दिया जाता है। लेकिन अयोध्या के फैसले को किसने लिखा है, इसका जिक्र नहीं किया गया है।
अयोध्या मामले में 1045 पन्नों का फैसला किसने लिखा? #AyodhyaCase #supremecourt https://t.co/w0HRQd5vUk
— लाइव लॉ हिंदी (@LivelawH) November 9, 2019
बता दें कि मामले की सुनवाई कर रहे इस संवैधानिक पीठ में सीजेआई रंजन गोगोई के अलावा जस्टिस बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर शामिल थे। 1045 पेज के फैसले में 929 पेज के आगे 116 पेज परिशिष्ट के रूप में जोड़े गए हैं। 116 पृष्ठों के परिशिष्ट में यह कहा गया है कि विवादित स्थल हिंदू भक्तों की आस्था और विश्वास के अनुसार भगवान राम का जन्म स्थान है। हालाँकि इन्हें जिस जज ने लिखा है, उनका नाम नहीं बताया गया है।
इस बात को लेकर कानून के जानकार भी आश्चर्य जाहिर कर रहे हैं कि फैसला लिखने वाले जज का नाम नहीं लिखा गया है, उसे गुप्त रखा गया है। बता दें कि इससे पहले मौजूदा समय के फैसलों में ऐसा कोई वाकया नहीं रहा, जब सुप्रीम कोर्ट के किसी भी फैसला लिखने वाले जज का नाम न दिया गया हो।