दिवंगत अभिनेता इरफान खान के बेटे बाबिल इन दिनों सोशल मीडिया पर ‘डरे हुए मुस्लिम’ की तरह बर्ताव कर रहे हैं। वह सोशल मीडिया पर बता रहे हैं कि अगर वह सत्ताधारियों के ख़िलाफ़ लिखेंगे तो उनका करियर खतरे में पड़ जाएगा।
अपने इंस्टाग्राम पर बाबिल खान ने लगातार कुछ पोस्ट डाले हैं। इनमे पढ़ा जा सकता है कि रक्षाबंधन के लिए छुट्टी और बकरीद के लिए छुट्टी न पाकर वह निराश हैं। वह लिखते हैं कि यह सब हमारे देश की सेकुलर रचना के ख़िलाफ़ है। बाबिल लिखते हैं कि वे नहीं चाहते कोई उन्हें उनके मजहब से जज करे। वह भी अन्य भारतीयों की तरह ही मनुष्य हैं।
इरफान खान के बेटे को दुख ये है कि बकरीद जो शुक्रवार को पड़ रही है उसकी छुट्टी निरस्त कर दी गई है, जबकि रक्षा बंधन जो सोमवार को पड़ रहा है उसकी छुट्टी दी जा रही है। उनका यह भी दावा है कि सेकुलर भारत में इस तरह धार्मिक विभाजन बहुत खतरनाक हो रहा है। आगे वे बताते हैं कि उनके दोस्तों ने उनके मजहब के कारण उनसे बात करना बंद कर दिया है।
अब इस मामले में दिलचस्प बात ये है कि जिस देश और सरकार से वह बकरीद की छुट्टी न मिलने पर मलाल मना रहे है, उसी देश की केंद्र सरकार ने सरकारी छुट्टियों में ईद उल अधा को शामिल किया है। लेकिन रक्षाबंधन इस सूची में शामिल नहीं है।
हम देख सकते हैं कि 14 सरकारी छुट्टियों के बीच 4 छुट्टियाँ इस्लामिक त्योहार पर दी गई है। इनमे 3 ईद और 1 मुहर्रम की हैं। जबकि हिंदुओं के पर्वों में सिर्फ़ दिवाली को सरकारी छुट्टियों में रखा गया है। होली भी यहाँ वैकल्पिक छुट्टियों की सूची में है। वहीं, राखी को ये भी स्थान प्राप्त नहीं है।
इसके बावजूद भी बाबिल लिख रहे हैं कि जो लोग सत्ता में है वह धार्मिक विभाजन करवा रहे हैं। हम देख सकते हैं कि महाराष्ट्र सरकार ने 2020 की छुट्टियों की सूची में बकरीद को सरकारी छुट्टियों की लिस्ट में डाला हुआ है। बावजूद इसके कि वो 1 अगस्त यानी शनिवार के दिन पड़ रही है। लेकिन राखी इस लिस्ट में नहीं है।
ऐसे में शनिवार के दिन पड़ने वाली ईद के लिए सरकार को दोषी ठहराना आखिर कहाँ तक उचित है। वो भी तब जब ये त्योहार पूरी तरह से चाँद दिखने पर निर्भर करता हो और जामा मस्जिद के शाही मौलवी तक ने इसके लिए 1 अगस्त की तारीख को सुनिश्चित किया हो।
उल्लेखनीय है कि इरफान खान की दुखद मौत के बाद भी इस्लामिक कट्टरपंथी अपनी मजहबी घृणा का प्रदर्शन करने से बाज नहीं आए थे। इसकी वजह है इरफ़ान खान द्वारा इस्लाम की कुरीतियों और मजहबी कट्टरता पर बेबाकी से रखे गए विचार थे।