केंद्र की मोदी सरकार ने सोमवार (11 मार्च 2024) को नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) को लागू कर दिया। इसके बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने इसे अपने-अपने राज्यों में लागू करने से इनकार कर दिया है। अब ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कोई राज्य इस कानून को लागू करने से इनकार कर सकता है।
दरअसल, ममता बनर्जी ने मंगलवार (12 मार्च 2024) को कहा कि वह CAA बंगाल में लागू नहीं होने देंगी और ना ही बंगाल को डिटेंशन सेंटर बनने देंगी। उन्होंने कहा, “मैं सीएए लागू नहीं करने दूँगी। मैं लोगों के बुनियादी अधिकार छीनने नहीं दूँगी। इसके लिए मुझे अपनी जान भी कुर्बान करनी पड़ी तो मैं करूँगी।” ममता ने इस कानून को देश को बाँटने वाला बताया है।
ममता बनर्जी ने कहा, “आवेदन करते ही ऐसे लोग घुसपैठिये बन जाएँगे। यह अधिकार छीनने का खेल है। अगर आप आवेदन करते हैं तो इसकी कोई गारंटी नहीं है कि आपको नागरिकता मिलेगी या नहीं। आप अपनी संपत्ति खो देंगे। आप सरकारी योजनाओं से वंचित रहेंगे। आवेदन करने पर सारे नागरिक अधिकार छीन लिए जाएँगे। इस लिए आवेदन करने से पहले हजार बार सोचें। यह एनआरसी से जुड़ा है।”
अवैध घुसपैठियों का बचाव करते हुए ममता बनर्जी ने आगे कहा, “यह कहते हुए कि यह अधिनियम लोगों को परेशान करने के लिए बनाया गया है। संयुक्त राष्ट्र ने स्पष्ट रूप से कहा है कि शरणार्थियों को विस्थापित नहीं किया जाना चाहिए और किसी देश से बाहर नहीं निकाला जाना चाहिए। यह बुनियादी मानवता है। क्या हमने कभी देखा है कि धर्म के आधार पर नागरिकता दी जा रही है?”
वहीं, केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने भी कहा कि वे पहले ही दोहरा चुके हैं कि मुस्लिमों को दोयम दर्जे का नागरिक समझने वाले CAA कानून को केरल में किसी भी कीमत पर लागू नहीं होने देंगे। इस सांप्रदायिक कानून बताते हुए विजयन ने कहा कि इसके विरोध में पूरा केरल खड़ा नजर आएगा।
नागरिकता संशोधन अधिनियम दिसंबर 2019 में संसद के दोनों सदनों से पास हुआ था। इसके बाद देश भर में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए थे। इस कानून में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के अल्पसंख्यक- हिंदू, सिख, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के प्रताड़ित लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है। इसके लिए शर्त है कि ये लोग 31 दिसंबर 2014 तक भारत आ गए हों।
लोकसभा चुनाव 2024 को देखते हुए ममता बनर्जी बंगाल में और पिनराई विजयन केरल में इसे किसी कीमत पर लागू नहीं होने की बात भले करते हों, लेकिन यह संभव नहीं है। संविधान के अनुसार, भारतीय राज्य CAA को लागू करने से इनकार नहीं कर सकते। क्योंकि, नागरिकता का मामला राज्य का नहीं, बल्कि केंद्र का मसला है और इस कानून को संसद ने पारित किया है।
सुप्रीम कोर्ट की वकील रीना एन सिंह का कहना है कि नागरिकता कानून संघ सूची के तहत आता है, ना कि राज्य सूची के अधीन। संविधान के अनुच्छेद 246 में संघ और राज्य के बीच शक्तियों का साफ तौर पर बँटवारा किया गया है। उनका कहना है कि भारतीय राज्यों को इसे लागू करने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है। वही राज्य इसे लागू नहीं कर सकेंगे, जिन्हें इस कानून में अपवाद रखा गया है।
रीना सिंह कहती हैं, “अगर बंगाल और केरल की सरकार CAA लागू करने से इनकार करती हैं तो यह पूर्णत: असंवैधानिक होगा, क्योंकि सविंधान के अनुच्छेद 256 के अंतर्गत कोई भी राज्य संसद द्वारा पारित कानून को लागू करने से इनकार नहीं कर सकता।” उनका कहना है कि अगर किसी राज्य सरकार को लगता है कि आम लोगों के हित में नहीं है तो वह इसके खिलाफ कोर्ट जा सकती है।
रीना सिंह ममता बनर्जी और पिनराई विजयन द्वारा CAA को अपने-अपने राज्यों में लागू नहीं करने की बात को राजनीति से प्रेरित मानती हैं। उनका कहना है कि बंगाल तथा केरल की सरकारों के ऐसे बयान निरर्थक हैं। ऐसे बयान स्पष्ट करते हैं कि ये राज्य वोट बैंक की राजनीति के कारण इस तरह के बयान दे रहे हैं। इसकी कोई कानूनी अहमियत नहीं है।
बता दें कि CAA को संविधान की 7वीं अनुसूची के तहत लागू किया गया है। इन अनुसूची में रक्षा, विदेश, रेलवे, नागरिकता सहित ऐसे 97 विषय आते हैं। इन विषयों पर नियम-कानून बनाने का अधिकार केंद्र सरकार के पास है। हालाँकि, केंद्र इसके लिए राज्य सरकारों से परामर्श ले सकता है, लेकिन उनकी बात मानने के लिए बाध्य नहीं है।
गौरतलब है कि CAA लागू करने के विरोध में कई संगठनों ने कोर्ट में याचिका डाल रखी हैं। CAA के खिलाफ ऐसी कुल 220 याचिकाएँ लंबित हैं। जिन लोगों एवं संगठनों ने CAA के खिलाफ याचिका दायर की हैं, उनमें केरल की मुस्लिम लीग, टीएमसी की महुआ मोइत्रा, कॉन्ग्रेस नेता जयराम रमेश एवं देबब्रत सैकिया, AIMIM सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी, एनजीओ रिहाई मंच आदि शामिल हैं। CAA को चुनौती देने वाली केरल सरकार की भी एक याचिका लंबित है।