Monday, October 7, 2024
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रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दिन छुट्टी घोषित करने के खिलाफ बॉम्बे हाईकोर्ट पहुँच गए कानून के 4 छात्र, जज ने फटकार कर खारिज कर दी याचिका

हाईकोर्ट ने कहा कि ये निर्णय कार्यकारी निर्णय है। ये निर्णय धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है और ये शक्ति के प्रयोग का मनमाना मामला भी नहीं है। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की ओर से 2019 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या जन्मभूमि फैसले पर सवाल उठाने पर फटकार भी लगाई।

बॉम्बे हाई कोर्ट ने लॉ की पढ़ाई कर रहे 4 छात्रों की याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें महाराष्ट्र सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी कि सोमवार (22 जनवरी, 2024) को अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन के दिन राज्य में छुट्टी रहेगी। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि यह छुट्टी संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 25 का उल्लंघन करती है, जो धर्म की स्वतंत्रता और सभी नागरिकों के लिए समानता की गारंटी देता है। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि यह छुट्टी धार्मिक भेदभाव को बढ़ावा देगी।

शिवांगी अग्रवाल और अन्य बनाम भारत संघ और अन्य मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति जी.एस. कुलकर्णी और न्यायमूर्ति नीला गोखले की पीठ ने याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि छुट्टी एक नीतिगत निर्णय है और इसे चुनौती देने का कोई कानूनी आधार नहीं है। कोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ताओं ने यह नहीं दिखाया कि छुट्टी से किसी व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन हुआ है।

‘बार एंड बेंच’ की रिपोर्ट के मुताबिक, हाईकोर्ट ने कहा कि ये निर्णय कार्यकारी निर्णय है। ये निर्णय धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है और ये शक्ति के प्रयोग का मनमाना मामला भी नहीं है। हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की ओर से 2019 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोध्या जन्मभूमि फैसले पर सवाल उठाने पर फटकार भी लगाई। हाई कोर्ट ने कहा, ‘याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट की बुद्धिमत्ता पर सवाल उठाए हैं, जो कि खास मकसद से किया गया है। ऐसे आरोप कोई भी बुद्धिशील इंसान नहीं लगा सकता।’ हाई कोर्ट ने कहा कि ऐसा लगता है कि ये याचिका राजनीति से प्रेरित है और इसे प्रचार की चाहत रखने वालों की तरफ से दायर की गई है।

हाई कोर्ट ने पीआईएल के पीठ के सामने आने से पहले ही मीडिया में आ जाने को लेकर भी कड़ी टिप्पणी की। कोर्ट ने पूछा कि ये लीक कैसे हो गई। हालाँकि याचिकाकर्ताओं ने कहा कि ये पीआईएल सुबह से इस फाइल से उस फाइल की तरफ जा रही है, ऐसे में ये कैसे लीक हुई, इस बारे में उन्हें जानकारी नहीं है। इस मामले में हाई कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी, साथ ही हिदायत भी दी कि कानून का छात्र होने के नाते याचिककर्ताओं को अपने विवेक का अच्छे से इस्तेमाल करना चाहिए।

हाई कोर्ट ने ये भी कहा कि याचिकाकर्ताओं ने केंद्र सरकार की 1968 की अधिसूचना को भी चुनौती दी है, लेकिन उस अधिसूचना को ही याचिका के साथ संलग्न नहीं किया है। ये याचिका महाराष्ट्र नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (एमएनएलयू), गवर्नमेंट लॉ कॉलेज (जीएलसी), मुंबई और एनआईआरएमए लॉ यूनिवर्सिटी, गुजरात से एलएलबी कर रहे चार कानून छात्रों, शिवांगी अग्रवाल, सत्यजीत साल्वे, वेदांत अग्रवाल, खुशी बंगिया द्वारा दायर की गई थी। इस मामले में गनीमत ये रही कि हाई कोर्ट ने लॉ कर रहे छात्रों पर कोई जुर्माना नहीं लगाया। लेकिन हाई कोर्ट ने ऐसे मामलों में व्यक्तिगत रूप से पेश होने को लेकर भी सावधानी बरतने की सलाह दी।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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