पश्चिम बंगाल स्थित कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) ने एक फैसले में कहा है कि यौन उत्पीड़न (Sexual Molestation) की शिकार पीड़िता के स्तन विकसित नहीं होने पर भी इसे गलत इरादे से छूना यौन अपराध की श्रेणी में आएगा। कोर्ट ने कहा कि इसमें ये साबित होना चाहिए कि आरोपित ने यौन इरादे से पीड़िता के विशेष अंग को छुआ था। इस मामले में कोर्ट ने आरोपित को पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) की धारा 7 के तहत दोषी माना।
सुनवाई के दौरान आरोपित के वकील ने कोर्ट में दलील देते हुए कहा कि पीड़िता के स्तनों को छूने का सवाल ही नहीं है, क्योंकि इस मामले चिकित्सा अधिकारी ने अपना बयान दिया था कि लड़की के स्तन विकसित नहीं हुए थे। हालाँकि, इस दलील पर कोर्ट सहमत नहीं दिखा।
इस पर न्यायमूर्ति विवेक चौधरी ने कहा कि यह महत्वहीन है कि 13 साल की लड़की के स्तन विकसित हुए हैं या नहीं। लड़की के शरीर के विशेष अंग को स्तन कहा जाएगा, भले ही मेडिकल कारणों से उसके स्तन विकसित नहीं हुए हों। पॉक्सो एक्ट की धारा 7 की व्याख्या करते हुए जस्टिस चौधरी ने कहा कि किसी बच्चे के लिंग, योनि, गुदा या स्तन को छूना या बच्चे को यौन इरादे से छूना यौन उत्पीड़न का अपराध है।
दरअसल, हाईकोर्ट साल 2017 के एक मामले की सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। इस मामले में 13 साल की एक बच्ची की माँ की ने पुलिस को दी गई शिकायत में अपनी बेटी के साथ यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। बच्ची की माँ ने अपनी शिकायत में कहा था कि जब पीड़िता घर में अकेली थी, तभी आरोपित आया और उसे गलत तरीके से छुआ और उसके चेहरे को चूमा। इस मामले में निचली अदालत ने आरोपित को दोषी ठहराया था।
पीड़िता को चूमने की मंशा पर सवाल उठाते हुए अदालत ने कहा, “पीड़ित लड़की ने कहा है कि आरोपित ने उसके शरीर के विभिन्न हिस्सों को छुआ और उसे चूमा। एक वयस्क आदमी जो पीड़ित लड़की से किसी तरह संबंधित नहीं है, उसे उसके घर में चूमने के लिए क्यों जाएगा, वो भी तब जबकि उसके अभिभावक घर में मौजूद नहीं थे।” कोर्ट ने कहा कि संपर्क और आसपास की परिस्थितियों से किसी व्यक्ति के यौन इरादे का पता लगाया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि यौन इरादे का कोई प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं हो सकता है। इस मामले में आरोपित का शिकायतकर्ता के घर में उसके और उसके पति की अनुपस्थिति में प्रवेश करना, पीड़ित लड़की के शरीर को छूना और उसे चूमना यह दर्शाता है कि आरोपित का यौन इरादा था।