घटना 2017 की है। एक लड़की स्कूल से लौट रही थी। रास्ते में उसका दुपट्टा खींचा गया। हाथ पकड़ा गया। शादी करने का प्रस्ताव दिया गया। कथित तौर पर आरोपित ने धमकी दी कि यदि उसका प्रस्ताव नहीं माना गया तो वह लड़की पर एसिड अटैक करेगा। ट्रायल कोर्ट ने आरोपित को POCSO एक्ट के तहत दोषी माना। लेकिन कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा है कि यह POCSO एक्ट के तहत यौन हमले में नहीं आता।
हाई कोर्ट का कहना है कि महिला के स्कार्फ (दुपट्टा) को खींचना, पीड़िता का हाथ खींचना और उसे शादी के लिए प्रस्ताव देना पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत ‘यौन हमला’ या ‘यौन उत्पीड़न’ की परिभाषा में नहीं आता है। जस्टिस विवेक चौधरी की खंडपीठ ने रिकॉर्ड पर साक्ष्य के मूल्यांकन में ट्रायल कोर्ट की भूमिका पर भी जोर देते हुए कहा, “इसकी वास्तविक भावना में अधिक जोर नहीं दिया जा सकता है क्योंकि ट्रायल कोर्ट न्याय के प्रशासन की बुनियादी संरचना है। यदि मूल संरचना बिना किसी आधार के है, तो सुपर स्ट्रक्चर न केवल गिरेगा, बल्कि यह एक निर्दोष व्यक्ति को न्याय से वंचित करेगा।”
पीड़ित पक्ष का आरोप था कि जब पीड़ित लड़की अगस्त 2017 में स्कूल से लौट रही थी, तब आरोपित ने उसका ‘ओरना’ (स्कार्फ/ दुपट्टा) खींच लिया और उसे शादी का प्रस्ताव दिया। इसके साथ ही उसने यह भी धमकी दी कि अगर पीड़ित लड़की ने उसके प्रस्ताव को मानने से इनकार किया तो वह उसके शरीर पर तेजाब फेंक देगा। इस मामले की सुनवाई जब ट्रायल कोर्ट में हुई तब कोर्ट ने सबूतों की सराहना करते हुए कहा था कि पीड़ित लड़की का दुुपट्टा खींचने और उससे शादी करने के लिए जोर देने का आरोपित का तरीका यौन हमले के इरादे से किया गया था।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने यह भी माना कि आरोपित ने हाथ खींचकर यौन उत्पीड़न किया और शादी के लिए अवांछित और स्पष्ट यौन प्रस्ताव दिए। ट्रायल जज ने आरोपी को पॉक्सो अधिनियम की धारा 8 और 12, भारतीय दंड संहिता की धारा 354, 354बी, 506 और 509 के तहत अपराध करने का दोषी ठहराया।
वहीं सबूतों की समीक्षा करते हुए, कलकत्ता हाई कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की गवाही में असमानताएँ थीं। अदालत के मुताबिक शिकायतकर्ता के चाचा ने FIR में इस बात का जिक्र नहीं किया था कि आरोपित ने पीड़िता का हाथ खींचा। मगर 10 दिनों के बाद CRPC की धारा 164 के तहत दर्ज किए गए अपने बयान में पीड़िता ने पहली बार बताया कि आरोपित ने उसका हाथ खींचा था।
पीड़िता के बयान में विसंगतियाँ पाए जाने के बाद हाई कोर्ट ने इस केस को अलग प्रकार से देखा और कहा, “यहाँ तक कि यह मानते हुए कि अपीलकर्ता ने ‘ओरना’ को खींचने और पीड़ित का हाथ खींचने का कथित कार्य किया है और उसे शादी करने का प्रस्ताव दिया है, ऐसा कार्य यौन उत्पीड़न या यौन उत्पीड़न की परिभाषा में नहीं आता है। इसीलिए वह भारतीय दंड संहिता की धारा 506 के साथ धारा 354 ए के तहत अपराध करने के लिए उत्तरदायी हो सकता है।”
आगे कोर्ट ने कहा, “इसलिए अपीलकर्ता को भारतीय दंड संहिता की धारा 354, 354बी और 509 के तहत आरोप से दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। कोर्ट ने अपीलकर्ता को पॉक्सो अधिनियम की धारा 8 और 12 के तहत आरोप के लिए भी दोषी नहीं ठहराया।”
गौरतलब है कि पिछले दिनों बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक आदेश में कहा था कि किसी नाबालिग के ब्रेस्ट को बिना ‘स्किन टू स्किन’ कॉन्टैक्ट के छूना POCSO एक्ट के तहत यौन शोषण की श्रेणी में नहीं आएगा बल्कि IPC की धारा 354 के तहत छेड़छाड़ का अपराध माना जाएगा। हालाँकि बाद में सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा था कि पॉक्सो एक्ट में स्किन टू स्किन टच जरूरी नहीं है।