Saturday, March 29, 2025
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डमी स्कूलों से की पढ़ाई तो नहीं मिलेगी ‘ बोर्ड एग्जाम’ में एंट्री… CBSE का करारा प्रहार: शिक्षा में अनुशासन और समग्र विकास की ओर बड़ा कदम, NEP-2020 के अनुरूप सुधार

CBSE द्वारा डमी स्कूलों पर प्रतिबंध और नियमित विद्यालयों में उपस्थिति को अनिवार्य बनाने का निर्णय एक बहु प्रतीक्षित सुधार है। यह कदम NEP-2020 की उस व्यापक सोच के अनुरूप है, जिसमें शिक्षा को केवल परीक्षा पास करने का माध्यम नहीं, बल्कि जीवन के लिए तैयार करने वाला एक सशक्त माध्यम माना गया है।

भारत में शिक्षा प्रणाली एक महत्वपूर्ण बदलाव के दौर से गुजर रही है। इसी क्रम में केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया है। इसके तहत ऐसे छात्रों को कक्षा 12 की बोर्ड परीक्षा में बैठने से रोक दिया जाएगा, जो किसी मान्यता प्राप्त नियमित स्कूल में नामांकित नहीं हैं। यह निर्णय तथाकथित ‘डमी स्कूलों’ के खिलाफ एक सख्त कदम है, जो शिक्षा व्यवस्था की पवित्रता बनाए रखने और छात्रों को समग्र शिक्षा प्रदान करने के लिए उठाया गया है।

यह कदम न केवल शिक्षा के मूल्यों को मजबूत करता है, बल्कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के व्यापक दृष्टिकोण के अनुरूप भी है। साथ ही, यह हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा कोचिंग संस्थानों के लिए जारी दिशा-निर्देशों और राजस्थान सरकार द्वारा प्रस्तावित कोचिंग सेंटर रेगुलेशन बिल की भावना को भी समर्थन देता है। यह सुधार शिक्षा प्रणाली में पारदर्शिता, अनुशासन और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए एक आवश्यक पहल है।

शिक्षा में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना

CBSE का यह निर्णय वर्षों से चली आ रही उस प्रवृत्ति के खिलाफ है, जिसमें मेडिकल और इंजीनियरिंग जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र डमी स्कूलों में प्रवेश लेते हैं। ये स्कूल नाममात्र के होते हैं और इनमें छात्रों को नियमित कक्षाओं में भाग लेने की आवश्यकता नहीं होती। ऐसे छात्र सिर्फ बोर्ड परीक्षा देने के लिए पंजीकृत होते हैं और पूरा समय कोचिंग संस्थानों में बिताते हैं। यह न केवल शिक्षा के मूल उद्देश्य को कमजोर करता है बल्कि बोर्ड परीक्षा प्रणाली की विश्वसनीयता को भी प्रभावित करता है।

CBSE द्वारा तय किए गए 75% उपस्थिति नियम को सख्ती से लागू करना और स्कूलों को जवाबदेह बनाना, यह सुनिश्चित करेगा कि छात्र केवल परीक्षा पास करने के लिए नहीं, बल्कि समग्र शिक्षा प्राप्त करने के लिए स्कूलों में नामांकित हों। यह कदम स्कूल प्रबंधन एवं छात्रों और माता-पिता की सामूहिक जिम्मेदारी को बढ़ाने का कार्य करेगा और शिक्षा को महज़ एक औपचारिकता की बजाय एक अनुशासित प्रक्रिया बनाएगा।

यह एक लंबे समय से अपेक्षित सुधार है, जिसे CBSE को पहले ही लागू कर देना चाहिए था। कोटा, दिल्ली, जयपुर, लखनऊ, पटना जैसे शहरों में हजारों बच्चे नियमित स्कूल छोड़कर केवल कोचिंग कक्षाओं में जा रहे हैं, जो कि सरकार की NEP और केंद्र सरकार द्वारा जारी कोचिंग संस्थान के दिशा-निर्देशों के खिलाफ एक खुला विरोध है।

आखिरकार दिल्ली स्थित केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड यानी CBSE मुख्यालय ने दिल्ली के नजफगढ़, मुंडका और नांगलोई जैसे क्षेत्रों में चल रहे डमी स्कूलों के कारोबार का संज्ञान लिया है। ऐसे में मुख्य मुद्दा यह है कि CBSE के अधिकारी कितनी ईमानदारी से स्कूलों से नियमों का पालन करवाते हैं।

NEP-2020 के साथ पूर्ण समन्वय

राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का प्रमुख उद्देश्य केवल परीक्षा पास करना नहीं, बल्कि छात्रों के चिंतनशील, रचनात्मक और व्यावहारिक कौशल को विकसित करना है। यह नीति स्कूली शिक्षा को केवल पाठ्यक्रम आधारित पढ़ाई से आगे बढ़ाकर विद्यालयों को जीवन के लिए तैयार करने पर ज़ोर देती है।

CBSE द्वारा लिया गया यह निर्णय NEP-2020 के उन्हीं सिद्धांतों को सुदृढ़ करता है, जिसमें कहा गया है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल विषयों का ज्ञान प्राप्त करना नहीं है। इसका उद्देश्य नैतिक मूल्यों, नेतृत्व कौशल और सृजनात्मकता को भी विकसित करना होना चाहिए। डमी स्कूलों पर प्रतिबंध से यह सुनिश्चित होगा कि छात्र स्कूल के अनुभवात्मक शिक्षण प्रणाली, सह-पाठयक्रम गतिविधियों और सामाजिक विकास का लाभ उठा सकें।

इसके अलावा, यह निर्णय समग्र मूल्यांकन (Continuous and Comprehensive Evaluation) की नीति को भी बल देता है, जहाँ छात्र/छात्राओं का मूल्यांकन केवल बोर्ड परीक्षा में प्राप्त अंकों के आधार पर नहीं, बल्कि उनकी पूरी शैक्षणिक यात्रा के दौरान उनके प्रदर्शन और कौशल विकास पर किया जाता है।

कोचिंग संस्थानों पर प्रभाव: संतुलन बनाना अनिवार्य होगा

इस कदम का सबसे बड़ा प्रभाव देश के कोचिंग संस्थानों पर पड़ेगा, जो वर्षों से डमी स्कूल प्रणाली पर निर्भर थे। विशेष रूप से कोटा, दिल्ली, पटना और अन्य शहरों में बड़ी संख्या में छात्र डमी स्कूलों में दाखिला लेकर पूर्ण रूप से कोचिंग संस्थानों में समय बिताते थे।

हाल ही में राजस्थान सरकार ने कोचिंग सेंटर रेगुलेशन बिल पेश किया, जिसमें कोचिंग संस्थानों के कामकाज को नियमित करने, छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखने और एक संतुलित शैक्षणिक वातावरण बनाए रखने की दिशा में कड़े नियम बनाए गए हैं। यह बदलाव कोचिंग संस्थानों को अपनी रणनीति बदलने और अपने पाठ्यक्रम को अधिक व्यापक बनाने के लिए मजबूर करेगा।

अब कोचिंग सेंटर केवल परीक्षा क्रैक करने का अड्डा नहीं रहेंगे, बल्कि उन्हें एक पूरक शिक्षा प्रणाली के रूप में कार्य करना होगा। कोचिंग संस्थानों को अब छात्रों को प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षाओं के साथ-साथ आलोचनात्मक सोच, समस्या समाधान कौशल और समय प्रबंधन सिखाने पर ध्यान केंद्रित करना होगा। इससे कोचिंग संस्थाओं में भी एक उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षण प्रणाली विकसित होगी।

स्कूल प्रबंधकों के लिए चुनौती और अवसर

स्कूल मालिकों के लिए यह निर्णय जहाँ एक बड़ी चुनौती है, वहीं एक नया अवसर भी प्रस्तुत करता है। अब ऐसे स्कूलों की पहचान होगी, जो केवल डमी छात्रों को नामांकित कर रहे थे और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने में विफल थे। इस फैसले से अच्छे स्कूलों को मजबूती मिलेगी, क्योंकि वे अब अपने शिक्षण गुणवत्ता को और बेहतर बना सकते हैं।

इसके साथ ही, यह निर्णय स्कूलों को डिजिटल लर्निंग, प्रयोगात्मक शिक्षा और नवाचार आधारित शिक्षण तकनीकों को अपनाने के लिए भी प्रेरित करेगा। स्कूल यदि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और बेहतर शिक्षण सुविधाओं पर ध्यान देंगे तो उन्हें भी इसका लाभ मिलेगा और वे छात्र/छात्राओं एवं उनके माता-पिता के लिए अधिक आकर्षक बनेंगे।

प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्रों पर प्रभाव

शुरुआत में यह निर्णय उन छात्रों के लिए चुनौतीपूर्ण लग सकता है, जो केवल प्रतियोगी परीक्षाओं पर ध्यान केंद्रित करना चाहते हैं। हालाँकि, दीर्घकालिक दृष्टि से यह बदलाव उनके समग्र विकास के लिए अत्यंत लाभकारी साबित होगा। जब छात्र नियमित रूप से स्कूल जाएँगे तो उन्हें केवल परीक्षा की रणनीति ही नहीं, बल्कि जीवन के लिए आवश्यक कौशल भी विकसित करने का अवसर मिलेगा।

स्कूलों में शिक्षकों से संवाद, परियोजना कार्यों में भागीदारी, और सह-पाठयक्रम गतिविधियों के माध्यम से वे समस्या समाधान, टीम वर्क, आत्मनिर्भरता और नेतृत्व क्षमता जैसे गुणों को विकसित कर सकेंगे। इसके अलावा, यह निर्णय राज्य कोटा प्रणाली के दुरुपयोग को भी रोकेगा, जहाँ छात्र अपनी 12वीं की परीक्षा किसी विशेष राज्य से देकर वहाँ के मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश लेने की कोशिश करते थे। इससे प्रतियोगी परीक्षा प्रणाली अधिक पारदर्शी होगी और केवल योग्य उम्मीदवारों को ही लाभ मिलेगा।

निष्कर्ष: एक मजबूत और निष्पक्ष शिक्षा प्रणाली की ओर अग्रसर भारत

CBSE द्वारा डमी स्कूलों पर प्रतिबंध और नियमित विद्यालयों में उपस्थिति को अनिवार्य बनाने का निर्णय एक बहु प्रतीक्षित सुधार है। यह कदम NEP-2020 की उस व्यापक सोच के अनुरूप है, जिसमें शिक्षा को केवल परीक्षा पास करने का माध्यम नहीं, बल्कि जीवन के लिए तैयार करने वाला एक सशक्त माध्यम माना गया है।

इस फैसले से न केवल छात्रों की शिक्षा प्रणाली को मजबूती मिलेगी, बल्कि कोचिंग संस्थान और स्कूल प्रबंधक भी अधिक उत्तरदायी बनेंगे। अब कोचिंग संस्थानों को परीक्षा-केंद्रित अध्ययन के बजाय छात्रों को समग्र रूप से विकसित करने की दिशा में कार्य करना होगा। वहीं स्कूलों को उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करने और नवीनतम शिक्षण तकनीकों को अपनाने के लिए प्रेरित किया जाएगा।

छात्रों के लिए यह निर्णय एक महत्वपूर्ण संदेश है कि शिक्षा केवल अंकों तक सीमित नहीं है, बल्कि एक संपूर्ण विकास यात्रा है। उन्हें अब परीक्षा की तैयारी के साथ-साथ अन्य कौशलों को भी सीखने का अवसर मिलेगा, जिससे वे न केवल एक अच्छे प्रतियोगी बल्कि एक अच्छे नागरिक भी बन सकेंगे। इस बहु प्रतीक्षित सुधार का दूरगामी प्रभाव भारतीय शिक्षा प्रणाली पर पड़ेगा और एक नई पीढ़ी को तैयार करने में मदद करेगा, जो ज्ञान, अनुशासन और नैतिक मूल्यों से परिपूर्ण होगी।

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Shashi Prakash Singh
Shashi Prakash Singh
Shashi Prakash Singh is a known educationist who guided more than 20 thousand students to pursue their dreams in the medical & engineering field over the last 18 years. He mentored NEET All India toppers in 2018. actively involved in social work which supports the education of underprivileged children through Blossom India Foundation.

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