Sunday, September 1, 2024
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मंदिर की जमीन पर मस्जिद कमेटी ने कर लिया था कब्जा, 2 दशक बाद 10 एकड़ जमीन कलेक्टर ने वापस ली

रिपोर्ट की मानें तो कलेक्टर ने अभी भी उस याचिका पर प्रतिक्रिया नहीं दी है जिसमें मंदिर के तालाब को वापस पाने की माँग की गई है। यह तालाब उसी मंदिर का है और करीब 2.5 एकड़ जमीन पर है।

चेन्नई के विरुगंबक्कम (Virugambakkam) इलाके में अरुलमिगु सुंदरा वरदराज पेरुमल मंदिर (Arulmigu Sundara Varadharaja Perumal temple) की 10 एकड़ जमीन कलेक्टर ने मस्जिद कमेटी से वापस ले ली है

स्वराज्य की खबर के मुताबिक, दो दशक पहले स्थानीय मस्जिद कमेटी ने इस पर अपना कब्जा किया था। कब्जे के बाद से ही श्रद्धालु व मंदिर से जुड़े कार्यकर्ता जमीन वापस पाने की कोशिशों में जुटे थे।

रिपोर्ट की मानें तो कलेक्टर ने अभी भी उस याचिका पर प्रतिक्रिया नहीं दी है जिसमें मंदिर के तालाब को वापस पाने की माँग की गई है। यह तालाब उसी मंदिर का है और करीब 2.5 एकड़ जमीन पर है। रिपोर्ट बताती हैं कि 1997 में तालाब को खाली किया गया था। मगर, कुछ स्वार्थी लोगों ने तालाब व उसके आसपास की 14 एकड़ जमीन को हथियाने का प्रयास किया, जबकि यह जमीन सुनगुवार ब्राह्मण समुदाय के लोगों ने दान में दी थी।

बावजूद इसके, स्थानीय मस्जिद समिति ने सरकारी कर्मचारियों की मदद से अपने नाम पर कब्जे वाली 3 एकड़ जमीन को पंजीकृत करने में कामयाबी कर ली। जिसे जानने के बाद जल्द ही, हिंदू मुन्नानी और मंदिर कार्यकर्ता मामले में शामिल हो गए।

मंदिर उपासक सोसायटी के अध्यक्ष टी आर रमेश ने मामले में जनहित याचिका दायर की और मद्रास उच्च न्यायालय ने उनकी दलीलों को स्वीकार करते हुए पंजीकरण रद्द कर दिया। फिर हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने भी बरकरार रखा।

हालाँकि, बाद में मामले की जाँच का काम जिलाधिकारी को सौंपा गया। जिसके मद्देनदर उन्होंने मस्जिद कमेटी के प्रतिनिधियों को बुलवाया। लेकिन इस पूछताछ के लिए वे उपस्थित नहीं हुए। नतीजतन 2 साल बाद भी इस पर कोई निष्कर्ष नहीं निकला।

इसके बाद घटनाक्रमों से अनजान, मंदिर कार्यकर्ता जेबमणि मोहनराज ने मंदिर के तालाब को पुनः प्राप्त करने के लिए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। दूसरी बार भी केस उसी जज के पास गया जिन्होंने पिछली बार फैसला सुनाया था। न्यायाधीश ने मामले की सुनवाई करते हुए कलेक्टर को तुरंत अपनी जाँच पूरी करके यह निर्धारित करने के लिए निर्देशित किया कि क्या वहाँ एक तालाब मौजूद है?

बता दें, कलेक्टर ने इस मामले में जो फैसला सुनाया है उसमें जमीन को तालुक बोर्ड को देने की बात है। क्योंकि साल 1910 के रिकॉर्ड में जमीन उन्हीं के नाम है। जिसका मतलब है कि फैसले में वह जमीन मंदिर को वापस नहीं मिली। इससे उसके स्वामित्व पर अब भी सवाल है। वहीं तालाब को लेकर कोई फैसला नहीं आया है। स्वराज्य की माने तो मोहनराज ने मद्रास हाई कोर्ट ने इस मामले पर दोबारा याचिका डाली है।

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ऑपइंडिया स्टाफ़
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कार्यालय संवाददाता, ऑपइंडिया

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