बिहार में कुल मिला कर लगभग साढ़े चार लाख शिक्षक हैं जो नियोजित हैं। इनका वेतन वेतन लगभग 25-30 हजार रुपए के क़रीब है। इनके अलावा लगभग दस हजार पुराने शिक्षक हैं, जिनका वेतन 85-90 हजार रुपए है। फिलहाल नियोजित शिक्षक पूर्ण हड़ताल में हैं। स्कूल पूरी तरह बंद हैं। पिछली बार 2015 मे भी शिक्षकों ने सेवा शर्त नियमावली के लिए हड़ताल किया था तब सरकार ने दो महीने में ही सेवा शर्त नियमावली लागू करने का वादा किया था। ये अब तक पूरा नहीं हुआ। शिक्षक आक्रोश में हैं।
बिहार एकमात्र राज्य हैं जहाँ TET पास कर के आए अभ्यर्थियों का भी नियोजन शिक्षामित्रों की तरह पंचायत द्वारा अल्प वेतन पर कराया गया। आज वे शिक्षमित्रों से जूनियर हैं। बिहार में 2002, 2005, 2007, 2009, 2011, 2013-14 में शिक्षक नियोजन हुआ। सन 2002 और 2005 में 1500 के वेतन पर मात्र 11 महीने के लिए शिक्षकों का नियोजन हुआ था। 2006 में उन सब को परमानेंट कर दिया गया और उनका नियत वेतन 5000 रुपए हो गया। फिर धीरे धीरे बढ़ते बढ़ते वेतन 9000 तक हुआ। 2015 में सरकार ने उन्हें एक 5200-20200 का अधूरा वेतनमान दिया, जो अब तक दिया जा रहा है। जो लड़के TET पास कर के आए, उन्हें भी इसी वेतनमान के अधीन रखा गया।
अब आक्रोशित शिक्षक पुराने शिक्षकों वाला वेतनमान माँग रहे हैं। पटना हाईकोर्ट ने अक्टूबर 31, 2017 को शिक्षकों के पक्ष में निर्णय भी दिया था। लेकिन, सरकार सुप्रीम को र्टगई और वहाँ निर्णय बदल दिया गया। आम लोगों में एक मत यह भी है कि शिक्षक मन से काम नहीं करते, और अधिकांश अयोग्य हैं। जब ऑपइंडिया ने कुछ प्रदर्शनकारी शिक्षकों से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि यह कुछ हद तक सही भी है, पर इसके लिए पूरी व्यवस्था को ठप नहीं किया जा सकता। उनसे काम कराना सरकार की जिम्मेवारी है। उनका कहना है कि काम न करने के लिए केवल शिक्षक दोषी नहीं, सरकार भी दोषी है।
कहा जा रहा है कि शिक्षा विभाग को सबसे अधिक मध्याह्न भोजन ने प्रभावित किया है। शिक्षकों का कहना है कि हेडमास्टर उसी के संचालन में रह जाते हैं, निरीक्षण करने आए अधिकारी भी वही जाँच करते हैं क्योंकि वहीं से ‘माल’ निकलता है। इस चक्कर मे पठन-पाठन व्याधित हो रहा है। शिक्षकों बताते हैं कि जब तक मध्याह्न भोजन को हेडमास्टर से अलग नहीं किया जाता, कोई उपाय नहीं।
प्राइमरी स्कूल में कार्यरत सर्वेश तिवारी ने अपने फेसबुक पोस्ट में इस समस्या पर बात करते हुए लिखा:
“बिहार में पिछले 25 दिनों से लगभग साढ़े चार लाख शिक्षक हड़ताल पर हैं। राज्य के सारे प्राथमिक विद्यालयों के करोड़ों बच्चों की शिक्षा बाधित है। सरकार चुप है। कहीं कोई सुगबुगाहट नहीं। शिक्षकों की माँगें कितनी जायज या नाजायज हैं, इसका निर्णय तब होगा जब सरकार उनके प्रतिनिधियों से बात करे। पर अबतक कोई वार्ता नहीं हुई है।”
“कितना अजीब है न! सरकारें शिक्षा जैसे विषय पर इतनी उदासीन कैसे हो सकती हैं? शिक्षकों की माँगों से असहमति हो सकती है, पर छात्रों के भविष्य से नहीं होनी चाहिए। शिक्षकों की कुल 11 माँगें हैं। उनमें एक माँग देख लीजिए। सन 2005 में कुछ लड़कियों की शिक्षक के पद पर अपने गाँव में नियुक्ति हुई। बाद में चालीस किलोमीटर दूर किसी गाँव में उनका विवाह हो गया। विवाह हुए चौदह-पन्द्रह वर्ष हो गए, पर वह शिक्षिका कभी दस दिन ससुराल नहीं रही। कैसे रहे? नौकरी तो मायके के गाँव में है, और स्थानांतरण की व्यवस्था नहीं है। आप अंदाजा लगाइए कि उसका जीवन कितना नरक बन गया होगा।”
उन्होंने आगे लिखा:
“पाँच साल पहले सरकार ने कहा था कि दो महीने में ही हम सेवा शर्त नियमावली ला देंगे। शिक्षकों के पाँच वर्ष बीत गए पर सरकार के दो महीने पूरे नहीं हुए। यह है सरकार! शिक्षक कुछ और नहीं माँग रहे, यही सेवा शर्त नियमावली माँग रहे हैं। शिक्षक स्वाभिमान की लड़ाई लड़ रहे हैं। शिक्षक सरकार की उस मानसिकता के विरुद्ध लड़ रहे हैं जिसके कारण सरकार हमेशा यह कह देती है कि शिक्षक हमारे राज्यकर्मी नहीं है। तनिक सोचिए तो, यदि शिक्षक सचमुच राज्यकर्मी नहीं हैं, तो सरकार कितनी असंवैधानिक है जो शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण कार्य में भी अपने कर्मी नहीं रखी है।”
इसी पर बात करते हुए उन्होंने आगे बताया:
“शिक्षक सरकार की इसी नीचता के विरुद्ध लड़ रहे हैं। सरकार कह रही है कि हम वेतन बढ़ा देते हैं, पर शिक्षकों से बात नहीं करेंगे। सच पूछिए तो सरकार की इसी तानाशाही के विरुद्ध लड़ रहे हैं शिक्षक। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की तानाशाही को केवल शिक्षक ही नहीं देख रहे, समय देख रहा है। अपने पन्द्रह वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने शिक्षा व्यवस्था को तो लगभग लगभग मार ही दिया है। उन्हें समय शायद ही क्षमा करे।”